साइंस सिटी ने अनुवांशिक तौर पर जेनेटिक मॉडिफिकेशन आग्रेजम का निरीक्षण व प्रभावों के विषय पर करवाया वेबिनार

साइंस सिटी ने अनुवांशिक तौर पर जेनेटिक मॉडिफिकेशन आग्रेजम का निरीक्षण व प्रभावों के विषय पर करवाया वेबिनार

कपूरथला/चन्द्र शेखर कालिया: पुष्पा गुजराल साइंस सिटी की ओर से अंतरराष्ट्रीय जैविक विभिन्नता दिवस मनाने के लिए तैयार किए प्रोग्राम अनुसार 1 मई से 22 मई तक 22 कार्यों की शुुरु की गई मुहिम के अधीन गतिविधियां व वेबिनारों क आयोजन किया जा रहा है। यह मुहिम जैविक विभिन्नता को बचाने व धरती को सेहतमंद रखने के उद्देश्य से चलाई जा रही है। इसी मुहिम के तहत अनुवंशिक तौर पर जेनेटिक मॉडिफिकेशन आग्रेजम का निरीक्षण व प्रभावों के विषय पर एक वेबिनार का आयोजन किया गया। वेबिनार में राष्ट्रीय खेतीबाड़ी विज्ञानी अकेडमी के सचिव व ग्लोबल प्लांट कौंसल के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर के मेंबर डा.प्रो.के.सी बांसल मुख्य प्रवक्ता के तौर पर शामिल हुए। 

डा.बांसल ने जानकारी देते हुए बताया कि खेती के पौधे संशोधित जीवों की एक सबसे बढ़िया उदाहरण है। खेतीबाड़ी में अनुवंशिक इंजीनियरिंग तकनीकें जहां खेती की फसलों की पैदावार बढ़ाने, भोजन या दवाईयों के उत्पादन लागत घटाने में सहायक हो, वहीं इनसे कीटनाशक दवाईयों की घटती जरुरत ने पौष्टिक तत्वों की रचना, कीड़ों व बीमारियों की रोधकता, भोजन सुरक्षा व दुनिया की बढ़ती जनसंख्या के लिए डाक्टरी सहूलतों में बढ़ौतरी हुई है। इसके अलावा ऐसी तकनीकों से थोड़े समय दौरान पकने वाली फसलों में बेहद तरक्की की हुई है और यह फसलें एलुमिनियम, बोर्न, नमक, सूखा, ठंड व अन्य पर्यावरण तबदीली को भी सहन कर सकती है। पैदावार को बढ़ाने व बीमारियों के खतरों को घटाने के लिए बहुत से जानवरों को भी अनुवंशिक तौर पर इसके घेरे में लाया जा रहा है। 

साइंस सिटी की डायरेक्टर जनरल डा.नीिलमा जेरथ ने कहा कि कुछ वर्षों के दौरान सिंथेटिक तकनीकें अनुकूल तकनीकों के एक ऐसे साधन के तौर पर उभर कर सामने आई है, जिनके जरिए लोग डीएनए का अध्ययन, व्याख्यान, संसोधन व डिजाइन तैयार करने के योग्य बना है। इनसे ही धरती के जीवों की प्रजातियों व पर्यावरण तक पहुंच कर इन सैलों व रुपों पर कार्यों के प्रभावों बारे तेजी से पता लगाया जाता है। इसके अलावा अनुवंशिक तौर पर उन्नत फसलों ने संभाल के ऐसे तरीकों को अपनाया है, जिनसे कीटनाशक दवाईयों के प्रयोग को घटा कर जड़ी बूटियों के लिए शाखाओं का वातावरण पैदा किया जा रहा है। इन तकनीकों के पर्यावरण व हमारी सेहत पर अधिक से अधिक सकारात्मक प्रभाव होने चाहिए। यदि कोई नाकारात्मक प्रभाव है तो उसे कम करने के लिए हर टेक्नोलॉजी का प्रयोग बड़े ध्यान व सावधानी से करना चाहिए। 

इससे पहले इस मुहिम के तहत कारोबारी घराणों का सामाजिक व्यवहार व जि्मेवारी के ‌िवषय पर भी एक वेबिनार का आयोजन िकया गया। इस वेबिनार में कन्या महाविद्यालय कालेज जालंधर की सहायक प्रोफेसर डा.नरिंदरजीत कौर ने जानकारी देते हुए बताया कि बहुत से कारोबारी जैव विभिन्नता पर निर्भर है। निर्भरता का स्तर अलग-अलग क्षेत्रों के लिए अलग-अलग हो सकता है। लेकिन जैविक विभिन्नता का नुक्सान हम सबके लिए खतरा है। यदि विभिन्नता को बचाने के लिए आवश्यक कदम न उठाए गए तो इससे भोजन सप्लाई की कमी के साथ-साथ हमारे अर्थव्यवस्था को बड़ा नुक्सान सहन करना पड़ सकता है। उन्होंने कहा कि श्रृंगार (कॉस्मेटिक) व दवाईयों के उद्योग आदि में बहुत से हानिकारक रसायण के प्रयोग करने से पर्यावरण को नुक्सान पहुंच सकता है। इसलिए इन उद्योगों को शाकाहारी बदलाव ढूंढने चाहिए।