पंजाबः मेडिकल कालेज के डॉक्टरों ने रचा इतिहास, दुर्लभ बीमारी की मरीज का हुआ सफल ऑपरेशन

पंजाबः मेडिकल कालेज के डॉक्टरों ने रचा इतिहास, दुर्लभ बीमारी की मरीज का हुआ सफल ऑपरेशन

अमृतसरः सरकारी मेडिकल कालेज के डॉक्टरों ने इतिहास रचा दिया। दरअसल, ल्यूटेम्बेचर सिंड्रोम से ग्रस्त विश्व की 24वीं मरीज रिपोर्ट हुई है। पंजाब में पहली बार महिला मरीज का सफल ऑपरेशन किया गया। विश्व भर में अब तक इस बीमारी से ग्रस्त केवल 23 मरीज रिपोर्ट हुए हैं, 24वीं मरीज अमृतसर से संबंधित है और अमृतसर में उसे उपचार मिला है। खास बात यह है कि यह रोग महिलाओं को ही होता है और अमृतसर में भी 48 वर्षीय महिला इससे पीड़ित पाई गई। महिला का उपचार आयुष्मान भारत स्वास्थ्य बीमा योजना के अंतर्गत निश्शुल्क हुआ है। मेडिकल कॉलेज स्थित हृदय रोग विभाग के प्रोफेसर डा. परमिंदर सिंह मंगेड़ा व उनकी टीम ने तीन घंटे की सर्जरी के बाद महिला की जान बचाई। डा. परमिंदर सिंह के अनुसार ल्यूटेम्बेचर सिंड्रोम का शिकार करोड़ों में एक महिला होती है।

बलविंदर कौर नामक यह महिला जब मेडिकल कॉलेज से संबंधित गुरुनानक देव अस्पताल में आई थी तब उसे सांस लेने में तकलीफ थी। वह निमोनिया से भी पीड़ित थी। धड़कनें तेज हो रही थीं। मेडिसिन विभाग के डाक्टरों ने उपचार शुरू किया, पर मर्ज समझ नहीं आया। ऐसे में उसे हृदय रोग विभाग में स्थानांतरित किया गया। यहां ईको कार्डियोग्राफी जांच में स्पष्ट हुआ कि महिला एएसडी (एंट्रल सेप्टल डिफेक्ट) व माइक्रोमैक्स माइट्रल सिनोनिम्स रोग से ग्रस्त है। उसके हृदय में जन्म से छेद था। डॉ. मंगेड़ा के अनुसार ये दोनों बीमारियां इस बात का प्रमाण थीं कि महिला ल्यूटेम्बेचर सिंड्रोम का शिकार है।

डा. मंगेड़ा ने इस बीमारी पर शोध कर रहे देश विदेश के डाक्टरों के शोध पत्र पढ़े थे। इन शोध पत्रों एवं अपने अनुभव के आधार पर उन्होंने अपनी टीम के साथ महिला का आपरेशन शुरू किया। आपरेशन में परकोटेनियस तकनीक का प्रयोग किया गया। पैर के रास्ते से एंजियोग्राफी की गई। इसके बाद डॉक्टर हृदय की माइट्रल वाल्व तक पहुंचे। इसे बैलून से खोलकर हृदय का छेद डिवाइस से बंद किया गया। आपरेशन की प्रक्रिया तीन घंटे तक चली। डा. परमिंदर ने दावा कि कि पंजाब में यह पहला केस है और पहली ही बार यह सर्जरी की गई है। डा. मंगेड़ा के अनुसार यह बीमारी जन्मजात होती है। उदाहरण के तौर पर जब दिल में छेद होता है तो माइट्रल वाल्व सिकुड़ जाता है।

उपचार न करवाने पर यह ल्यूटेम्बेचर सिंड्रोम तक पहुंच जाता हैं। इसमें हृदय काम करना बहुत कम कर देता है। निजी अस्पतालों में इस आपरेशन पर साढ़े तीन से चार लाख का खर्च आता है, पर इस महिला का आयुष्मान कार्ड के माध्यम से निश्शुल्क हुआ है। इससे पूर्व महिला ने पीजीआइ चंडीगढ़ के चार बार चक्कर लगाए। वहां के डाक्टरों ने चार वर्ष बाद का समय दिया था। डा. परमिंदर के अनुसार ल्यूटेम्बेचर सिंड्रोम यह दुनिया का 24वां मामला है। 1916 इस सिंड्रोम से पीड़ित मरीज को फ्रांस ल्यूटम बाकर नामक वैज्ञानिक ने डायग्नोस किया था। उन्हीं के नाम पर इस सिंड्रोम का नाम ल्यूटेम्बेचर रखा गया है। तब इस बीमारी का उपचार नहीं था, लिहाजा मरीज की मौत हो गई। 1992 में यूके के डॉक्टर रियूज ने पहली बार इस रोग का शिकार मरीज का सफल ऑपरेशन किया था।