पंजाबः फर्जी पुलिस मुठभेड़ में CBI कोर्ट ने दो पूर्व पुलिस अधिकारियों को ठहराया दोषी

पंजाबः फर्जी पुलिस मुठभेड़ में CBI कोर्ट ने दो पूर्व पुलिस अधिकारियों को ठहराया दोषी

तरनतारन: सीबीआई कोर्ट मोहाली ने आज तरनतारन के करीब 30 साल पुराने फर्जी एनकाउंटर पर फैसला सुनाया है। सीबीआई की विशेष अदालत ने दो पुलिस कर्मियों को दोषी ठहराया है। दोषियों में पूर्व थानेदार शमेशर सिंह व जगतार सिंह शामिल हैं। दोनों को आईपीसी की धारा 302, 120 व 218 के तहत दोषी ठहराया गया है। अदालत ने दोनों को पुलिस कस्टडी में भेज दिया है। दोषियों को सोमवार को सजा सुनाई जाएगी।

इस केस के दो आरोपियों की ट्रॉयल के दौरान मौत हो चुकी है। अदालत में पुलिस द्वारा बताई गई कहानी पूरी तरह झूठी साबित हो गई। थाना सदर तरनतारन की पुलिस ने तीस साल पहले दावा किया था कि 15 अप्रैल 1993 को सुबह साढ़े चार बजे जब वह उबोके निवासी हरबंस सिंह को हथियारों की रिकवरी के लिए जा रहे थे, तो तीन आतंकियों ने पुलिस पर हमला कर दिया। इस दौरान पुलिस ने अपने बचाव की कोशिश की। क्रॉस फायरिंग में हरबंस सिंह व एक अन्य अज्ञात आतंकी की मौत हो गई थी।

इस संबंध में अमृतसर के थाना सदर में 302, 307 और 34 आईपीसी, असला एक्ट व टाडा एक्ट की धारा पांच के तहत अज्ञात लोगों पर केस दर्ज किया गया था। हालांकि मृतक हरबंस के भाई परमजीत सिंह को यह सारा मामला संदिग्ध लगा। उन्होंने अपने मृतक भाई को इंसाफ दिलाने के लिए कानूनी जंग शुरू कर दी। वह इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट तक गए। जिसके बाद सीबीआई ने हरबंस सिंह के भाई परमजीत सिंह की शिकायत पर कार्रवाई शुरू की।

सीबीआई की जांच में यह कहानी फर्जी पाई गई। इसके बाद 1999 में केस की पड़ताल के बाद सीबीआई ने पुलिस अधिकारियों के खिलाफ केस दर्ज किया। साथ ही केस की जांच शुरू हो गई। केस दर्ज करने के तीन साल 2002 में सीबीआई ने थाने के तत्कालीन एसएचओ, एसआई शमशेर सिंह, एएसआई जागीर सिंह और एएसआई जगतार सिंह व थाने में तैनात सभी मुलाजिमों पर आरोप पत्र दाखिल किया गया। करीब 11 महीने बाद 13 दिसंबर 2002 में आरोपियों पर आरोप तय किए गए। जब यह कार्रवाई हो गई तो इसी बीच केस की सुनवाई पर अदालत में स्टे लग गया। साल 2006 से लेकर 2022 तक मामले की सुनवाई रुकी रही। इसी समय के बीच मामले के दो आरोपियों पूरन सिंह व जागीर सिंह की मौत हो गई। इस केस में कुल 17 गवाहों ने अपने बयान दर्ज करवाए थे। जिसके बाद सभी पक्षों को सुनने के बाद तीस साल बाद अदालत ने आरोपियों को दोषी करार दिया।