पिपलू मेले पर चढ़ा पुरातन संस्कृति का रंग, टोलियां व टमक बनी मेले की शान

पिपलू मेले पर चढ़ा पुरातन संस्कृति का रंग, टोलियां व टमक बनी मेले की शान

ऊना/सुशील पंडित: प्रदेश के तीन जिलों की सांस्कृतिक मिलन का प्रतीक यह मेला आज भी प्राचीन रंग में रंगा हुआ नजर आता है तथा लोगों की आस्था में वह जोश आज भी यथावथ बना हुआ है। प्रतिवर्ष ज्येष्ठ माह की निर्जला एकादशी को आयोजित होने वाले इस मेले में ऊना, हमीरपुर तथा कांगड़ा जिलों के अतिरिक्त प्रदेश व प्रदेश के बाहर से हजारों श्रद्धालु भगवान नरसिंह के दर्शनों के लिए यहां पहुंचते हैं। मेले के दौरान जहां स्थानीय लोग अपनी नई फसल को भगवान नरसिंह के चरणों में चढ़ाते हैं, तो वहीं भगवान का आशीर्वाद भी प्राप्त कर धन्य होते हैं। मेले के दौरान सदियों से बजती आ रही टमक की धमक आज भी पिपलू मेला में वैसे ही है, जैसे सैंकडों वर्ष पूर्व रही है। लोग आज भी टमक की मधुर धुन में रंगे हुए नजर आते हैं।

मेले के दौरान इलाके के विभिन्न स्थानों से आई अलग-अलग टोलियां वाद्ययंत्रों के साथ पीपल के पेड़ की परिक्रमा करती हैं। कई टोलियां मौजूद दौर में भी इस पुरातन परंपरा को संजो कर रख रही हैं। कोलका की टोली में शामिल राजेश शर्मा, नरेंद्र शर्मा, ठाकुर मेहर चंद, ठाकुर जोगराज, सूंका राम तथा कुलवंत सिंह आदि ने कहा कि उनके पूर्वज इसी प्रकार से पिपलू में आते थे तथा वह इस पंरपरा को आज भी निभा रहे हैं, ताकि आने वाली पीढ़ी को पुरानी पंरपराओं के बारे में पता चल सके।

वहीं पारम्परिक वाद्य यंत्रों के साथ भजन गायन और नृत्य करते हुए बलासा राम के नेतृत्व में गांव छपरोह तथा भगवान दास के नेतृत्व में गांव हरोट की मंडलियों ने भजन गायन के साथ साथ डांस करते हुए आमजन को भी थिरकने पर मजबूर कर दिया। इन धार्मिक मंडलियों के मुखियाओं ने बताया कि वह पीढ़ी दर पीढ़ी अपनी धार्मिक परंपरा को निभा रहे हैं।

उल्लेखनीय है कि पिपलू मेले में आने वाली धार्मिक मंडलियां कई दशकों से दूर दराज क्षेत्रों से पैदल चलकर आती हैं तथा अतीत की मान्यताओं व परंपराओं के अनुसार नरसिंह मंदिर में आकर श्रद्धा से नतमस्तक होती हैं।