सर्वप्रथम भगवान शंकर ने माता पार्वती को सुनाई थी श्री राम कथा

सर्वप्रथम भगवान शंकर ने माता पार्वती को सुनाई थी श्री राम कथा

ऊना की पंचायत झंबर में हरि अनंत, हरि कथा अनंता का रहस्य बताते हुए बोले आचार्य तरुण डोगरा

ऊना /सुशील पंडित : देवभूमि हिमाचल प्रदेश के जिला ऊना उपमंडल के तहत पड़ती ग्राम पंचायत झंबर में 5 अप्रैल से 13 अप्रैल तक चल रहे वार्षिक धार्मिक श्री रामकथा अनुष्ठान में जिला के सुप्रसिद्ध कथावाचक आचार्य तरुण डोगरा जी ने उपस्थित श्रोताओं को मंत्रमुग्ध करते हुए भगवान श्री राम द्वारा रचित रामायण के रहस्य बताते हुए कहा कि कहते हैं हरि अनंत, हरि कथा अनंता। सबसे पहले श्रीराम की कथा हनुमानजी ने लिखी थी फिर महर्षि वाल्मीकि जी ने। क्योंकि वाल्मीकि जी भी श्री राम के ही काल समय के ऋषि थे। उन्होंने राम और उनके जीवन को देखा था। वे ही अच्छी तरह जानते थे कि राम क्या और कौन हैं? उन्होंने बताया कि जब श्री राम कथा का सवाल लिखने का आया, तब नारद मुनि ने उनकी सहायता की।

कहते हैं कि राम के काल में देवता धरती पर आया-जाया करते थे और वे धरती पर ही हिमालय के उत्तर में रहते थे और रामायण के बाद राम से जुड़ी हजारों कथाएं प्रचलन में आईं और सभी में राम की कथा में थोड़े-बहुत रद्दोबदल के साथ ही कुछ रामायणों में ऐसे भी प्रसंग मिलते हैं, जिनका उल्लेख वाल्मीकि रामायण में नहीं मिलता है। तरुण डोगरा ने बताया कि श्री राम की कथा को वाल्मीकि के लिखने के बाद दक्षिण इसे भारतीय लोगों ने अलग- अलग तरीके से लिखा है। वहीं दक्षिण भारतीयों के जीवन में राम का बहुत महत्व है। क्योंकि कर्नाटक व तमिलनाडु में राम ने अपनी सेना का गठन किया था। तमिलनाडु में ही श्रीराम ने रामेश्वरम् ज्योतिर्लिंग की स्थापना की थी।
उन्होंने बताया कि वाल्मीकि रामायण और बाकी की रामायण में जो अंतर देखने को मिलता है वह इसलिए कि वाल्मीकि रामायण को तथ्यों और घटनाओं के आधार पर लिखा गया था, जबकि अन्य रामायण को श्रुति (सुनने) के आधार पर लिखा गया है। जैसे बुद्ध ने अपने पूर्व जन्मों का वृत्तांत कहते हुए अपने शिष्यों को रामकथा सुनाई थी, जैसे बहुत समय बाद तुलसीदास जी को उनके गुरु ने सोरों क्षेत्र में रामकथा सुनाई थी। इसी तरह जनश्रुतियों के आधार पर हर देश ने अपनी रामायण को अपने-अपने लिखा है।

आचार्य तरुण डोगरा ने बताया कि सर्वप्रथम श्रीराम की कथा भगवान श्री शंकर ने माता पार्वती जी को सुनाई थी। उस कथा को एक कौवे ने भी सुन लिया। उसी कौवे का पुनर्जन्म कागभुशुण्डि के रूप में हुआ था। और काकभुशुण्डि को पूर्व जन्म में भगवान शंकर के मुख से सुनी वह रामकथा पूरी की पूरी याद थी। उन्होंने यह कथा अपने शिष्यों को सुनाई। और इस प्रकार रामकथा का प्रचार-प्रसार हुआ है। तथा भगवान शंकर के मुख से निकली श्रीराम की यह पवित्र कथा अध्यात्म रामायण के नाम से विख्यात है।

उन्होंने बताया कि इसके अलावा एक कथा और प्रचलित है। कहते हैं कि सर्वप्रथम रामकथा हनुमानजी ने लिखी थी और वह भी शिला पर। यह रामकथा वाल्मीकिजी की रामायण से भी पहले लिखी गई थी और 'हनुमन्नाटक' के नाम से प्रसिद्ध है। ऐसे में वैदिक साहित्य के बाद जो रामकथाएं लिखी गईं, उनमें वाल्मीकि रामायण सर्वोपरि है। यह इसी कल्प की कथा है और ग्रंथों में यही प्रामाणिक है। तरुण डोगरा ने बताया कि वाल्मीकि जी ने राम से संबंधित घटनाचक्र को अपने जीवनकाल में स्वयं देखा या सुना था इसलिए उनकी रामायण सत्य के काफी निकट है, लेकिन उनकी रामायण के सिर्फ 6 ही कांड थे। उत्तरकांड को बौद्धकाल में जोड़ा गया है जबकि उत्तरकांड का वाल्मीकि रामायण से कोई संबंध नहीं है। उन्होंने बताया कि अद्भुत रामायण संस्कृत भाषा में रचित 27 सर्गों का काव्य-विशेष है और कहा जाता है कि इस ग्रंथ के प्रणेता भी वाल्मीकि थे। इस दौरान सेंकड़ों की तादाद में उपस्थित श्रोता श्री राम कथा ज्ञान गंगा का रहस्य जानकर भाव-विभोर हो उठे।