भक्ति व प्रभु सुमिरन से कभी भी भय नहीं होता, स्वास्थ्य और ज्ञान के बाद तीसरी विभूति है- स्वभाव: आचार्य तरुण डोगरा

भक्ति व प्रभु सुमिरन से कभी भी भय नहीं होता, स्वास्थ्य और ज्ञान के बाद तीसरी विभूति है- स्वभाव: आचार्य तरुण डोगरा

ऊना/सुशील पंडित: हिमाचल प्रदेश के जिला ऊना, उपमंडल स्थित ग्राम पंचायत झंबर में चल रहे श्री राम कथा महायज्ञ के पांचवें दिन क्षेत्र के सुप्रसिद्ध कथावाचक आचार्य तरुण डोगरा जी ने अपने मुखारविंद से अलौकिक प्रवचनों की अमृत बर्षा करते हुए कहा कि श्री राम चरित्र मानस पर आधारित हम जो कुछ चाहते हैं, उसके लिए हमें कठिन मेहनत करनी होगी, बिना संघर्ष के हम कुछ भी हासिल नहीं कर सकते। हमें मजबूत और दृढ संकल्पित होना होगा, अगर कोई हमें रोकने या भटकाने की कोशिश करता है, तो हमें खुद पर विश्वास होना चाहिये कि हम जो भी कर रहे हैं वो सही है। हम जो चाहते हैं, उसे हासिल करने के लिए जो कुछ करते हैं उस पर पूरा विश्वास करना होगा, क्योंकि भगवान श्री राम ने भी दृढ़ निश्चय और संकल्प के साथ रावण पर विजय प्राप्त की थी। उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि हम सभी एक टीचर हैं, हम जो कुछ कर रहे हैं और सीख रहे हैं अगर उस पर पूरा ध्यान लगाएगें, सकारात्मक भावना अपनाएंगे, रिस्क लेने से ना डरेंगे, तो भगवान द्वारा रचित चमत्कार हमारे दरवाजे पर दस्तक जरूर देगा। उन्होने कहा कि हमें अपने अंदर एक ऐसी जगह तलाशनी है, जहाँ भगवान श्री राम की अपार कृपा से खुशियां और आनंद ही आनंद हो। उन्होने कहा कि स्वास्थ्य और ज्ञान के बाद तीसरी विभूति है- स्वभाव। इन तीनों को ही मिलाकर पूर्ण व्यक्तित्व का निर्माण होता है। अपने सब कार्यो में व्यवस्था, नियमितता, सुंदरता, मनोयोग तथा जिम्मेदारी का रहना स्वभाव का प्रथम अंग है। दूसरा अंग है- दूसरों के साथ नम्रता, मधुरता, सज्जनता, उदारता एवं सहृदयता का व्यवहार करना, और तीसरा अंग जब यथोचित रुप से विकसित होते हैं तो उसे स्वस्थ स्वभाव कहा जाता है। यह तीनों बातें भी मन की स्थिति पर ही निर्भर करती हैं और ऐसा श्रीराम चरित्र मानस में लिखा गया है। 

कथावाचक आचार्य तरुण डोगरा जी ने कहा कि मन एक देवता है। इसे ही शास्त्रों में प्रजापति कहा गया है। वहीं, वेदांत में भी बतया गया है कि हर व्यक्ति की एक स्वतंत्र दुनिया है और वह उसके मन के द्वारा सृजन की हुई है। मनुष्य की मान्यता, भावना, निष्ठा, रुचि एवं आकांक्षा के अनुरुप ही उसे सारा विश्व दिखाई पड़ता है। उन्होने कहा कि अगर यह दृष्टिकोण बदल जाए तो मनुष्य का जीवन भी उसी आधार पर परिवर्तित हो जाता है। इस मन देवता की सेवा, पूजा का एक ही प्रकार है, मन को समझा-बुझाकर उसे सन्मार्ग पर लाया जाए। उन्होने कहा कि जिस प्रकार भगवान श्री कृष्ण द्वारा अर्जुन को भागवत गीता का ज्ञान देते हुए कहा गया है कि यदि यह सेवा कर ली जाए तो सामान्य व्यक्ति भी महापुरुष बन सकता है। उसके वरदान का चमत्कार प्रत्यक्ष रूप से देख सकता है, और इस तथ्य की सुनिश्चितता में रत्तीभर भी संदेह की गुंजायश के लिए स्थान नहीं है कि जो हम सोचते हैं सो करते हैं और जो करते हैं सो भुगतते हैं मन ही हमारा मार्गदर्शक है, वह जिधर ले चलता है, शरीर उधर ही जाता है। उन्होने कहा कि यह मार्गदशक यदि कुमार्गगामी है तो विपत्तियों और वेदनाओं के जंजाल में फँसा देगा और यदि सुमार्ग पर चल रहा है तो शांति और समृद्धि के सत्परिणाम उपलब्ध होना सुनिश्चित है। ऐसे अपने इस भाग्य विधाता की ही सेवा हम क्यों न करें? इस मार्गदर्शन को ही क्यों न पूजें? 

पूर्व मंत्री वीरेंद्र कंवर ने किया रामकथा का रसपान

वहीं इस धार्मिक अनुष्ठान में पूर्व भाजपा सरकार में पूर्व मंत्री रहे एवं जिला ऊना के विधानसभा क्षेत्र कुटलैहड़ से पिछले लगातार 20 वर्षों से क्षेत्र का नेतृत्व कर चुके जुझारू नेता वीरेंद्र कंवर भी डुबकी लगाने पहुंचे और उन्होंने श्री रामकथा ज्ञान गंगा का रसपान करते हुए भगवान श्री राम से समग्र विश्व सुख-शांति के लिए कामना की।