राष्ट्रीय सेविका समिति की बहनों ने मिल मनाया मकर संक्रांति उत्सव

राष्ट्रीय सेविका समिति की बहनों ने मिल मनाया मकर संक्रांति उत्सव

नालागढ़ में विवेकानंद शिक्षा कुंज में हुआ कार्यक्रम

बददी/सचिन बैंसल:राष्ट्र सेवा समिति की नालागढ़ इकाई ने मकर संक्रांति का कार्यक्रम धूमधाम से मनाया। इसमें नगर व आसपास की बहनों को आमंत्रित किया गया था। शाखा में श्लोक, अमृत वचन, गीत, क्विज और बौद्धिक लिया गया । प्रार्थना के पश्चात भजन और देश भगती के गीत हुए । फिर प्रसाद स्वरूप खिचड़ी और लडडू बांटे गए । नालागढ़ में मकर संक्रांति के उपलक्ष पर कार्यक्रम हुआ जिसमें नगर बौद्धिक प्रमुख सपना कुमारी ने मकर संक्रांति बड़े सभी को बताया। इसमें पंकज वशिष्ठ, इंदु वैद्य, दीपिका जैन, रीता ठाकुर, विनू मित्तल, भगवती भारतीया, सुमति सिंगल, रेनू ठाकुर, बिंदु , कंचन , गीता आदि शामिल रहे। कार्यक्रम उपरांत खिचड़ी प्रसाद बांटा गया तथा उपस्थित संख्या 38 रही। राष्ट्र सेविका समिति की नगर बौद्विक प्रमुख सपना बताया कि भारत देश में अलग-अलग त्योहारों को अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है। यहां लगभग हर दिन ही कोई न कोई त्योहार मनाया जाता है। लोग बड़े ही उत्साह और धूमधाम से इन पर्वों को मनाते हैं। जैसे- साल की शुरुआत हो चुकी है और आज देश मकर संक्रांति का त्योहार मना रहा है। इस पर्व को मनाने की अपनी मान्यताएं हैं और लोगों की आस्था भी। कोई भी पर्व सिर्फ एक त्योहार के रूप में नहीं होता बल्कि, ये ही है जो लोगों को आपस में जोड़े रखता है और आपसी भाईचारे को भी बढ़ाता है। ऐसा ही कुछ मकर संक्रांति के त्योहार में भी नजर आता है।

अगर यूं कहा जाए कि ये पर्व अनेकता में एकता का संदेश देना वाला पर्व है, तो शायद इसमें कोई दो राय न हो। हर साल 14 जनवरी को धनु से मकर राशि व दक्षिणायन से उत्तरायण में सूर्य के प्रवेश के साथ यह पर्व संपूर्ण भारत सहित विदेशों में भी अलग-अलग नामों से मनाया जाता है। वहीं देश के दक्षिणी इलाकों में इस पर्व को पोंगल के रूप में मनाने की परंपरा है। फसल कटाई की खुशी में तमिल हिंदुओं के बीच हर्षोल्लास के साथ चार दिवस तक मनाये जाने वाले पोंगल का अर्थ विप्लव या उफान है। इस दिन तमिल परिवारों में चावल और दूध के मिश्रण से जो खीर बनाई जाती है, उसे पोंगल कहा जाता है।यह दिन श्रद्धा, भक्ति, जप, तप, अर्पण व दान-पुण्य का दिन माना जाता है। हिंदू धर्मावलंबियों के लिए मकर संक्रांति का महत्व वैसा ही जैसा कि वृक्षों में पीपल, हाथियों में ऐरावत और पहाडों में हिमालय का है। भले मकर संक्रांति का पर्व देश के विभिन्न प्रदेशों में अलग-अलग नामों से मनाया जाता हों पर इसके पीछे समस्त लोगों की भावना एक ही है। इंसान को शिखर पर पहुंच कर भी अभिमान नहीं करना चाहिए, यह पतंग भलीभांति समझाती है। जिस प्रकार पतंग भले कितनी ही क्यों न ऊंचे आकाश में उड़े पर उसे खींचने वाली डोर इंसान के हाथ में ही रहती है। वैसे ही इंसान भी भले कितना ही अकूत धन-दौलत के अभिमान की हवा के बूते विलासिता व ऐश्वर्य के आसमान में उडे, लेकिन उसके सांसों की डोर भी परमपिता परमेश्वर अविनाशी के हाथों में ही रहती है। पतंग हो या इंसान, दोनों का माटी में विलीन होना तय है, इसलिए इंसान को भूलकर भी अपने जड़ों और संस्कारों से दूर होकर कोई भी अमानवीय कृत्य नहीं करना चाहिए।