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Nobel Prize 2025: फिजिक्स क्षेत्र में इन तीन वैज्ञानिकों को मिलेगा नोबेल पुरस्कार

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नई दिल्ली: फिजिक्स के नोबेल पुरस्कार की घोषणा हो गई है। रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ सांइसेज की ओर से दोपहर 3:15 बजे विजेताओं का नाम घोषित किया गया है। इस साल यह अवॉर्ड अमेरिका के जॉन क्लार्क, माइकल डेवोरेट, जॉन मार्टिनिस को मिला है। इन तीनों को इलेक्ट्रिक सर्किट में मैक्रोस्कॉपिक क्वांटम मैकेनिकल टनलिंग और ऊर्जा क्वांटाइजेशन की खोज के लिए दिया गया है।

क्वांटम तकनीक समझने में मिलेगी मदद

तीन वैज्ञानिकों ने एक इलेक्ट्रिकल सर्किट के साथ इस्तेमाल किए। इसमें उन्होंने एक ऐसी प्रणाली में क्वांटम मैकेनिकल टनलिंग और क्वांटाइज्ड एनर्जी लेवल दोनो का प्रदर्शन किया। यह दोनों ही हाथ में पकड़ने लायक थी। ये खोज क्वांटम क्रिप्टोग्राफी, क्वांटम कंप्यूटर और क्वांटम सेंसर सहित क्वांटम तकनीक को और अच्छे से समझने में मदद करेगी।


वैसे तो क्वांटम मैकेनिक्स के नियम बहुत ही छोटे-छोटे कणों पर लागू होते हैं। इनके व्यवहार को माइक्रोस्कोपिक कहते हैं क्योंकि ये इतने छोटे होते हैं कि सामान्य माइक्रोस्कोप से भी दिखाई नहीं देती लेकिन अब इन वैज्ञानिकों ने पहली बार बिजली के सर्किट में बड़े पैमाने पर क्वांटम टनलिंग और एनर्जी के स्तरों की खोज की है।

अब तक 118 साइंटिस्ट को मिल चुके हैं फिजिक्स में पुरस्कार

नोबेलप्राइज डोट ओआरजी के अनुसार, 1901 से अब तक 118 वैज्ञानिकों को भौतिकी पुरस्कार दिए जा चुके हैं। इनमें सबसे कम उम्र के विजेता 25 साल के लॉरेंस ब्रैग (1915) थे। वहीं 96 साल के आर्थर अश्किन (2018) में ये सम्मान हासिल करने वाले सबसे ज्यादा उम्र के वैज्ञानिक थे। पहले भारतीय जिन्हें इस श्रेणी में पुरस्कार मिला था वह सर सीवी रमन थे। उन्हें 1930 में यह सम्मान दिया गया। उनकी खोज ने बताया था कि जब लाइट किसी पदार्थ से टकराती तो उसका रंग बदल सकता है। इसको रमन इफेक्ट कहते हैं। उनकी यह खोज आज लेजर औऱ मेडिकल तकनीकों में इस्तेमाल की जाती है। दूसरे भारतीय मूल के अमेरिकी वैज्ञानिक सुब्रह्राण्य चंद्रशेखर थे। इनको 1983 में तारों के जीवन और मृत्यु की खोज के लिए सम्मानित किया गया था। उन्होंने ही यह बताया था कि बड़े तारे अंत में ब्लैक होल बन सकते हैं। 6 से 13 अक्टूबर के बीच अलग-अलग श्रेणियों में नोबेल प्राइज दिए जाते हैं।

10 अक्टूबर को दिया जाएगा पुरस्कार

बीते दिन चिकित्सा क्षेत्र में मैरी ई. ब्रंकॉ, फ्रेड राम्सडेल और शिमोन साकागुची को दिया गया है। इन्हें यह प्राइज पेरीफेरल ऑटोइम्यून टॉलरेंस के क्षेत्र में की गई रिसर्च के लिए दिया गया है। विजेता को 11 मिलियन स्वीडिश क्रोना, सोने का मेडल और सर्टिफिकेट मिलेंगे। यदि से ज्यादा वैज्ञानिक जीत जाते हैं तो यह प्राइज मनी उनके बीच में बंट जाएगा। पुरस्कार 10 दिसंबर को स्टॉकहोम में दिया जाएगा।

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