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विपत्ति में जो साथ दे वही सच्चा मित्र: गणेश दत्त शास्त्री 

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गांव बदोली में चल रही सात दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा का हुआ समापन

ऊना/ सुशील पंडित : गांव बदोली में चल रही सात दिवसीय श्रीमद भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के सातवें दिन कथा व्यास गणेश दत्त शास्त्री जी ने विभिन्न प्रसंगों पर प्रवचन दिए। राजा परीक्षित को मोक्ष की प्राप्ति कैसे हुई उसकी कथा सुनाई। तक्षक सर्प कैसे राजा परीक्षित को डसने के लिए पहुंचा इस बारे विस्तार से बताया।उन्होंने सातवें दिन श्रीकृष्ण भगवान की अलग-अलग लीलाओं का वर्णन किया गया। मां देवकी के कहने पर छह पुत्रों को वापस लाकर मां देवकी को वापस देना सुभद्रा हरण का आख्यान कहना एवं प्रमुखता से सुदामा चरित्र का वर्णन करते हुए कथा व्यास ने बताया कि मित्रता कैसे निभाई जाए यह भगवान श्रीकृष्ण- सुदामा जी की मित्रता से समझ सकते हैं ।

उन्होंने कहा कि सुदामा जी अपनी पत्नी के आग्रह पर अपने मित्र द्वारिकाधीश से मिलने के लिए द्वारिका पहुंचे। सुदामा द्वारिकाधीश के महल का पता पूछते हुए महल की ओर बढ़ने लगे। द्वार पर द्वारपालों ने सुदामा को भिक्षा मांगने वाला समझकर रोक दिया। तब उन्होंने कहा कि वह कृष्ण के बाल सखा हैं इस पर द्वारपाल महल में गए और प्रभु से कहा कि कोई उनसे मिलने आया है और अपना नाम सुदामा बता रहा है जैसे ही द्वारपाल के मुंह से द्वारकाधीश ने सुदामा का नाम सुना, तो द्वारकाधीश सुदामा सुदामा कहते हुए तेजी से द्वार की तरफ भागे। द्वार पर पहुंचकर सामने सुदामा को देखकर उन्होंने उसे अपने सीने से लगा लिया। सुदामा ने भी कन्हैया कन्हैया कहकर उन्हें गले लगाया। दोनों की ऐसी मित्रता देखकर सभा में बैठे सभी लोग अचंभित हो गए। कृष्ण सुदामा को अपने राज सिंहासन पर बैठाया। उन्हें कुबेर का धन देकर मालामाल कर दिया। जब जब भी भक्तों पर विपदा आ पड़ी है। प्रभु उनका तारण करने अवश्य आए हैं।

कथा व्यास गणेश दत्त शास्त्री जी ने कहा कि जो लोग बाकी दिन की कथा नहीं सुन पाए हैं उन्हें इस कथा का श्रवण करने से पूरी कथा सुनने का पुण्य लाभ प्राप्त हो सकता है।  कथा के अंतिम दिन कथा व्यास ने गुरु भक्ति की कथा बताई। उन्होंने कहा कि पापों का नाश करने के लिए भगवान धरती पर अवतार लेते हैं। धरती पर आने के बाद भगवान भी गुरु की भक्ति करते हैं। उन्होंने कहा कि सच्चे गुरु के आशीर्वाद से जीवन धन्य हो जाता है। कलयुग में माता-पिता और गुरु भक्ति करने से पापों का नाश होता है।

जब सत्संग में जाएं तो सिर्फ कान न खोलें बल्कि आंख भी खोल कर रखें। मनुष्य को आत्मचिंतन और आत्म साक्षात्कार की आवश्यकता है। कथा केवल सुनने के लिए नहीं है बल्कि इसे अपने जीवन में उतारें इसका अनुसरण करें। भगवत भजन करने से व्यक्ति स्वयं तो आत्मविश्वासी होता ही है, दूसरों में भी विश्वास जागता है। आत्मविश्वास में कमी आने पर हम हर प्रकार से संपन्न होते हुए भी हमें कार्य की सफलता पर संशय रहता है।समापन के अवसर पर उन्होंने श्रद्धालुओं से आह्वान किया कि प्रतिदिन माता-पिता का आदर करें, सूर्य को अर्घ्य अर्पण करें, भगवान को भोग लगाएं, गाय को रोटी दें और अपने आत्मविश्वास को हमेशा कायम रखें। अपनी संपत्ति का कुछ हिस्सा अच्छे कार्यों के लिए अवश्य निकालें। उन्होंने भगवत गीता के प्रथम और अंतिम श्लोक के साथ इस कथा का समापन किया। 

कथा व्यास गणेश दत्त शास्त्री जी ने बताया कि वास्तविकता में कोई भी धार्मिक कथा समाप्त नहीं होती, विश्राम लेती है और फिर दोबारा शुरू हो जाती है। डेरा बाबा रूद्र नंद के पीठाधीश्वर सतगुरु सुग्रीवानंद जी की असीम अनुकंपा से यह कथा विश्राम ले पाई है उनका कोटि-कोटि धन्यवाद करते हुए यह कथा पूर्णतः की और प्राप्त हुई। गांव बदोली के ठाकुरद्वारा मंदिर के प्रांगण में आयोजित सात दिवसीय कथा शांतिपूर्ण माहौल में संपन्न हुई। अंत में भागवत भगवान की आरती की गई और लंगर में प्रसाद वितरण किया गया।

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