बिजनेसः भारतीय रुपया एक बार फिर डॉलर के मुकाबले ऑल-टाइम लो पर पहुंच गया।डॉलर के मुकाबले अब तक के सबसे निचले स्तर 90.58 पर आ गया है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार यह 15 दिसंबर को 9 पैसे कमजोर होकर ओपन हुआ है। लगातार विदेशी फंड्स की निकासी ने रुपए पर दबाव बनाया है। रुपया 2025 में अब तक 5% से ज्यादा कमजोर हो चुका है। 1 जनवरी को रुपया डॉलर के मुकाबले 85.70 के स्तर पर था, जो अब 90.58 के लेवल पर पहुंच गया है।
रुपए में गिरावट का मतलब है कि भारत के लिए चीजों का इम्पोर्ट महंगा होना है। इसके अलावा विदेश में घूमना और पढ़ना भी महंगा हो गया है। US प्रेसिडेंट डोनाल्ड ट्रम्प ने भारतीय आयात पर 50% टैरिफ लगाया हैं, जो भारत की GDP ग्रोथ को 60-80 बेसिस पॉइंट्स गिरा सकता है और फिस्कल डेफिसिट बढ़ा सकता है। इससे निर्यात घट सकता है।
कैसे तय होती है करेंसी की कीमत?
डॉलर की तुलना में किसी भी अन्य करेंसी की वैल्यू घटे तो उसे मुद्रा का गिरना, टूटना, कमजोर होना कहते हैं। अंग्रेजी में करेंसी डेप्रिसिएशन कहते हैं। हर देश के पास फॉरेन करेंसी रिजर्व होता है, जिससे वह इंटरनेशनल ट्रांजैक्शन करता है। फॉरेन रिजर्व के घटने और बढ़ने का असर करेंसी की कीमत पर दिखता है। अगर भारत के फॉरेन रिजर्व में डॉलर, अमेरिका के रुपए के भंडार के बराबर होगा तो रुपए की कीमत स्थिर रहेगी। हमारे पास डॉलर घटे तो रुपया कमजोर होगा, बढ़े तो रुपया मजबूत होगा।