नई दिल्ली: चीन के विदेश मंत्री वांग यी अपने भारत दौर पर आज अफगानिस्तान गए हैं। भारत की संवेदनशीलता को देखते हुए उन्होंने दिल्ली से सीधे इस्लामाबाद जाने से परहेज किया। वह काबुल में होने वाले त्रिपक्षीय सम्मेलन में हिस्सा लेंगे। अफगानिस्तान चीनी विदेश मंत्री के अलावा पाकिस्तान के विदेश मंत्री का भी स्वागत करेगा। इस त्रिपक्षीय सम्मेलन में चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे के काबुल तक विस्तार और आर्थिक सहयोग पर भी इस दौरान चर्चा होगी। भारत भी इस बैठक पर नजर रखे हुए हैं।
अफगानिस्तान की मांग
चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने इससे पहले अफगानिस्तान के कार्यवाहक विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी के साथ भी बात की थी। वांग यी जो की सीपीईसी केंद्रीय समिति के पॉलिटिकल ब्यूरो के सदस्य भी हैं वो व्यापक क्षेत्रीय दौरे पर हैं। चीनी विदेश मंत्री 21 अगस्त को पाकिस्तान का दौरा करेंगे। रिपोर्ट्स की मानें तो चार साल पहलेे सत्ता में आने के बाद अफगान और तालिबान की अगुवाई में यह हाई लेवल की मीटिंग होने वाली है। इस मीटिंग का मकसद अंतरराष्ट्रीय वैधता की कोशिश को मजबूत करना है। अफगानिस्तान के विदेश मंत्रालय के उप प्रवक्ता ने एक्स पर शेयर की पोस्ट में कहा है कि – तीनों देशों के बीच राजनीतिक, आर्थिक और क्षेत्रीय सहयोग के साथ इस दौरान कई अहम मुद्दों पर चर्चा होने वाली है।
चीन विदेश मंत्री पहुंचे काबुल
इस बैठक में पाकिस्तान के उप प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री इशाक डार, चीनी विदेश मंत्री वांग यी, तालिबान के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी भी शामिल होने वाले हैं। इस बैठक का मकसद वैश्विक मंच पर तालिबान की वैधता की कोशिश को बढ़ावा देता और प्रमुख क्षेत्रीय देशों में औपचारिक मान्यता न मिलने के बाद भी वह इस बैठक में शामिल होने के लिए तैयार हैं। रुस हाल ही में अफगानिस्तान में तालिबान प्रशासन को औपचारिक तौर पर मान्यता देने वाला पहला देश बना है। वहीं बीजिंग ने तालिबान की सत्ता मेें वापसी को तेजी के साथ अपनाया है और कूटनीतिक नजरिए से अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए, अफगानिस्तान के विशाल खनिज संसाधनों का दोहन करने और अपने बेल्ट एंड रोड इंफ्रास्ट्रक्चर पहल को आगे बढ़ाने में भी मदद मिलेगी। वांग ने 2022 में काबुल का दौरा भी किया है। वहां उन्होंने व्यापार को बढ़ावा देने और देश की अर्थव्यवस्था को पुननिर्माण के लिए संयुक्त प्रयासों पर भी चर्चा की है।
भारत के लिए चिंता का विषय बनी बैठक
भारत के लिहाज से यह बैठक चिंता का विषय बन चुकी है। ऐसा इसलिए है क्योंकि भारत लगातार CPEC का कड़ा विरोध कर रहा है। यह कॉरिडोर पाक अधिकृत कश्मीर से गुजरता है और यह भारत की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का उल्लंघन है। ऐसे में इस प्रोजेक्ट से अफगानिस्तान के जुड़ने के बाद पाकिस्तान कब्जे वाले क्षेत्र पर अपना दावा मजबूत कर सकते हैं जो भारत कभी भी नहीं बर्दाश्त कर पाएगा।
इसके अलावा अफगानिस्तान में भारत के कई डेवलेपमेंट प्रोजेक्ट्स चल रहे हैं। इस समझौते से भी झटका लग सकता है। भारत ने अफगानिस्तान में करीबन 3 अरब डॉलर से ज्यादा का निवेश किया है। अफगानिस्तान में सड़क, पावर प्लांट्स, डैम यहां तक कि संसद भवन के निर्माण जैसे इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट भी भारत का निवेश है। यदि अफगानिस्तान CPEC से जुड़ेगा तो भारत का प्रतिद्वंदी चीन उसको बेदखल कर देगा। इससे पूरे क्षेत्र में आतंकवाद का खतरा भी बढ़ सकता है क्योंकि इस प्रोजेक्ट में पहले ही पाकिस्तान की हिस्सेदारी मजबूत है।