वॉशिंगटन डीसीः अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने शिक्षा विभाग बंद करने से जुड़े आदेश (एग्जीक्यूटिव ऑर्डर) पर दस्तखत कर दिए हैं। ट्रम्प ने दस्तखत करने के बाद कहा कि अमेरिका लंबे समय से छात्रों को अच्छी शिक्षा नहीं दे रहा है। उन्होंने कहा कि अमेरिका किसी भी देश की तुलना में शिक्षा पर सबसे ज्यादा खर्च करता है, लेकिन सफलता की बात आती है तो देश लिस्ट में सबसे निचले स्थान पर है। शिक्षा विभाग सुधार में फेल रहा। अब यह हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा।
हालांकि, आदेश में कहा गया कि दिव्यांग बच्चों के लिए ग्रांट और फंडिंग जैसे जरूरी प्रोग्राम जारी रहेंगे। ये प्रोग्राम अन्य एजेंसियों को सौंपे जाएंगे। ट्रम्प ने भाषण के दौरान अमेरिकी शिक्षकों की तारीफ की और कहा कि उनका ध्यान रखा जाएगा।
ट्रम्प ने कहा कि शिक्षा विभाग कोई बैंक नहीं है। ऐसे काम कोई और जिम्मेदार संस्था करेगी। अब से इस पर शिक्षा विभाग का अधिकार नहीं होगा, बल्कि राज्यों और स्थानीय समुदायों को इसकी जिम्मेदारी मिलेगी। साल 2024 में शिक्षा विभाग का बजट 238 बिलियन डॉलर (20.05 लाख करोड़ रुपये) का था। यह देश के कुल बजट का करीब 2% है। विभाग के पास लगभग 4,400 कर्मचारी हैं। यह बाकी सारे विभागों की तुलना में सबसे कम है।
ट्रम्प के आदेश पर साइन करने के बाद शिक्षा विभाग ने एक बयान जारी किया और इसे ऐतिहासिक बताया। इस फैसले से अमेरिकी छात्रों की आने वाली पीढ़ियां मुक्त होंगी और वे बेहतर शिक्षा हासिल कर पाएंगे।
वहीं, अमेरिकन काउंसिल ऑन एजुकेशन के अध्यक्ष टेड मिशेल ने ट्रम्प के इस कदम की निंदा की है। उन्होंने इसे एक राजनीतिक नाटक करार दिया और कहा कि इस फैसले से फंडिंग में कमी आएगी जिससे विभाग में कर्मचारियों की संख्या में कटौती होगी। इससे देश में हायर एजुकेशन को नुकसान पहुंचेगा।
ट्रम्प का आरोप है कि अमेरिकी स्कूल बच्चों को रेडिकल और एंटी अमेरिकन बना रहे हैं। ट्रम्प स्कूल से जेंडर डिस्फोरिया को खत्म करना चाहते हैं। कोई व्यक्ति जो जन्म के समय महिला के रूप में पहचाना गया (जैविक लिंग), लेकिन खुद को पुरुष के रूप में महसूस करता है (लिंग पहचान) उसे जेंडर डिस्फोरिया कहते हैं। ऐसे में वह खुद के पुरुष होने का दावा कर सकता है। ट्रम्प इसे ‘ट्रांसजेंडर पागलपन’ कहते हैं।
