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एक साथ सावन सोमवार और कामिका एकादशी, बन रहे ये 4 खास योग, जानें कैसे करें पूजा

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धर्म: कल सावन सोमवार का दूसरा और कामिका एकादशी का व्रत है। यह व्रत धार्मिक दृष्टि से बहुत ही खास है। इस दिन भगवान शिव को समर्पित सोमवार और साथ में भगवान विष्णु को प्रिय कामिका एकादशी का संयोग एक साथ बन रहा है। इस दुर्लभ संयोग के साथ कई शुभ योग भी बन रहे हैं ऐसे में यह दोनों ही योग इस दिन को और भी खास बनाते हैं। इस दिन व्रत रखकर यदि आप भगवान विष्णु और शिव जी की पूजा करते हैं तो सुख-शांति, समृद्धि, यश, लाभ की प्राप्ति होगी। इसके साथ ही सभी इच्छाएं भी पूरी होगी।

बन रहे कई खास योग

दृक पंचागों के अनुसार, 21 जुलाई को श्रावण महीने के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि सुबह 09:38 तक रहेगी। इसके बाद द्वादशी तिथि शुरु होगी। नक्षत्र रोहिणी रात 09:07 तक, इसके बाद मृगशीर्षा रहेगा। सूर्य कर्क राशि में रहेंगे और वृद्धि योग शाम को 06:38 तक रहेगा। वृद्धि योग के साथ ध्रुव योग का भी दुर्लभ संयोग बनेगा। इसके साथ ही इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग और अमृत सिद्धि योग का दुर्लभ संयोग भी बन रहा है। यह संयोग भगवान विष्णु और शिव की कृपा प्राप्त करने के लिए बहुत ही खास अवसर है।

इस वजह से खास है सावन सोमवार

भगवान शिव की पूजा के लिए सावन सोमवार का दिन बेहद ही महत्वपूर्ण माना जाता है। सावन मास खासतौर पर सोमवार शिव को बहुत ही प्रिय है। इस व्रत में जलाभिषेक, बेलपत्र, धतूरा आदि शिव को चढ़ाना बहुत ही कल्याणकारी माना जाता है। यह व्रत मनोकामना पूरी करने के साथ-साथ वैवाहिक सुख, रोग नाश और आध्यात्मिक उन्नति के लिए किया जाता है। सावन सोमवार के अलावा सावन की प्रमुख तिथियों का व्रत करने से भी जीवन के सभी कष्टों से छुटकारा मिलता है और सभी कार्य सिद्ध होते हैं।

एक साथ पड़ेंगे दोनों व्रत

सावन सोमवार और कामिका एकादशी व्रत का दिन भगवान शिव और विष्णु दोनों की कृपा प्राप्त करने का श्रेष्ठ मौका होता है। ऐसा संयोग बहुत ही दुर्लभ होता है और यह बेहद फलदायक भी माना जाता है। दोनों व्रत करने वाले को संपूर्ण भौतिक और आधात्मिक लाभ, कर्मों की शुद्धि और मोक्ष मार्ग की प्राप्ति का योग बनता है। जब कामिका एकादशी सोमवार को पड़े तो वह सभी तीर्थों के स्नान से भी ज्यादा पुण्य देने वाली होती है।

इसलिए खास है कामिका एकादशी

महाभारत काल में खुद भगवान कृष्ण ने युद्धिष्ठिर को कामिका एकादशी के महत्व को बताया था। यह व्रत देवशयनी एकादशी के बाद पहली एकादशी का होता है। जब भगवान विष्णु योगनिद्रा में रहते हैं। इस दिन भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा से सुख-समृद्धि, पापों से मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति होती है। ब्रह्माजी ने नारदजी को बताया था कि सिर्फ इस कथा को सुनने से ही महायज्ञ का फल मिलता है। इसके अलावा इस दिन गंगा में स्नान करने का भी खास महत्व बताया गया है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस व्रत को करने से न सिर्फ भगवान विष्णु और पितरों का आशीर्वाद मिलता है बल्कि बिगड़े हुए काम भी बनने लगते हैं। इस दिन यदि श्रद्धालु भक्ति भाव से भगवान शिव और नारायण की पूजा करें तो उनके जीवन के कष्ट भी दूर होते हैं।

ऐसे करें भगवान शिव और भगवान विष्णु की पूजा

इस दिन सुबह उठकर स्नान करके साफ कपड़े पहनें। इसके बाद भगवान विष्णु को पंचामृत जल से स्नान करवाएं। उन्हें हल्दी, चंदन लगाएं और फुल, तुलसी पत्र और भोग चढ़ाएं। इसके बाद दीप, धूप जलाकर कल्याण के लिए प्रार्थना करें और कथा सुनें। इसके बाद विष्णु सहस्नाम का पाठ करें और एकादशी व्रत की कथा सुनें। तुलसी के दर्शन और पूजा करने से ही आपके सारे पापों का नाष होगा। व्रत का पारण अगले दिन 22 जुलाई को सुबह 05:37 के बाद में करें। माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु के साथ ही शिव जी की पूजा करें। शिवजी को दूध, जल, घी, शहद और जल से स्नान करवाने के बाद इत्र, भस्म, जनेऊ, बेल पत्र, भांग, फूल और फल आदि चढ़ाएं। इसके बाद कपूर से आरती करें।

 

 

 

 

 

 

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