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गंगा पुत्र देवव्रत द्वारा विवाह न करने की भीष्म प्रतिज्ञा लेने पर उनका नाम पड़ा था भीष्म: डॉ सुमन शर्मा

हिमुडा कालौनी चल रही कथा के पंचम दिवस पर कथा व्यास ने सुनाई शांतनु की कथा

सत्यवती की सुंदरता पर मोहित हो गए थे ऋषि पराशर, दिया था ये वरदान

ऊना/ सुशील पंडित: उपमंडल बंगाणा के हिमुडा कालौनी में बाबा पहाड़िया मंदिर कमेटी के सौजन्य से चल रही श्री मद देवी भागवत कथा के पंचम दिवस पर कथा व्यास आचार्य डॉ सुमन शर्मा ने प्रवचन करते हुए कहा कि माता सत्यवती से अपने पिता के विवाह के लिए गंगा पुत्र देवव्रत ने जीवन भर विवाह न करने की प्रतिज्ञा ली थी। जिस कारण उनका नाम भीष्म पड़ गया। महाभारत काल में ऐसी कई घटनाएं घटी हैं, जिनका महाभारत के युद्ध से भी कोई-न-कोई संबंध रहा है। कथा व्यास ने कहा कि शांतनु की तरह ही पराशर ऋषि भी सत्यवती की सुंदरता पर मोहित हो गए थे, जिसके चलते उन्होंने सत्यवती को वरदान भी दिया था। यह भी महाभारत काल की एक महत्वपूर्ण घटना रही है, क्योंकि अगर यह घटना न हुई होती, तो आज महाभारत का स्वरूप कुछ और होता।

कथा व्यास आचार्य डॉ सुमन शर्मा ने कहा कि ऋषि पराशर एक विद्वान और सिद्ध ऋषि थे। एक दिन धीवर नामक एक मछुआरे की नाव पर बैठकर नदी पार कर रहे थे, तभी उनकी नजर मछुआरे की पुत्री सत्यवती पर पड़ी, जो उसी नाव पर मौजूद थी। उन्होंने कहा कि  सत्यवती की सुंदरता को देखकर ऋषि पराशर उन पर मोहित हो गए और उन्होंने सत्यवती को अपने मन की बात बताई। इसपर सत्यवती ने कहा कि में मछुआरे की पुत्री हूं और आप एक सिद्ध ऋषि हैं, ऐसे में हमारा मिलन अनैतिक होगा। कथा व्यास ने कहा कि सत्यवती की चिंता को भांपते हुए पराशर ऋषि ने उस स्थान पर एक कृत्रिम आवरण तैयार कर दिया, जिससे वहां उन दोनों को कोई नहीं देख सकता था। साथ ही उन्होंने सत्यवती को यह वरदान दिया कि संतान उत्पन्न करने के बाद भी तुम्हारी कौमार्यता प्रभावित नहीं होगी।

इसी के साथ मछुआरों के साथ रहने के कारण सत्यवती के शरीर से हमेशा मछली की दुर्गंध आती थी, जिस कारण उसे मत्स्यगंधा भी कहा जाता था। ऐसे में पराशर ऋषि ने सत्यवती को यह वरदान भी दिया कि अब उसकी यह दुर्गंध एक अत्यंत मोहक सुगंध में बदल जाएगी। कथा व्यास ने कहा कि सत्यवती और ऋषि पाराशर की एक संतान भी उत्पन्न हुई, जिसका नाम कृष्णद्वैपायन रखा गया। आगे चलकर यही महर्षि वेदव्यास बने, जो आज महाभारत के रचयिता के रूप में जाने जाते हैं।

वहीं आगे चलकर महर्षि वेदव्यास ही धृतराष्ट्र, पांडु और विदुर के जन्म का कारण बने, जो महाभारत की महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक है। बही कथा व्यास आचार्य डॉ सुमन शर्मा ने सनातन धर्म की रक्षा ओर धर्म के मार्ग पर चलने का संदेश दिया। उन्होंने कहा कि प्रभु सिमरन ही मनुष्य को भव सागर पार करवा सकता है। ओर प्रभु सिमरन से मनुष्य सफलता की मंजिल को प्राप्त करता है। कथा विराम के बाद सभी श्रद्धालुओं को भंडारे का प्रसाद वितरण किया गया। ओर भारी संख्या में श्रद्धालुओं ने कथा श्रवण करके भंडारे का प्रसाद ग्रहण किया।

ज्ञात रहे बंगाणा हिमुडा कलौनी में प्रथम बार हो रही श्री मद देवी भागवत कथा को सुनने के लिए श्रोतागणों की भीड़ देखी जा रही है। हालांकि इससे पहले श्री मद भागवत कथा श्री राम कथा होती आई है। लेकिन इस बार आयोजकों द्वारा श्री मद देवी भागवत कथा सुनाने के लिए कथा व्यास आचार्य डॉ सुमन शर्मा जी से निवेदन किया है। इस मौके पर अंकुश वर्जाता, हंसराज वर्जाता,ज्योति वर्जाता, विनोद कुमार सेंटी, आर बी राणा, माया देवी मदन गोपाल बोहरा, राजन सोनी,बिंदू सोनी, अजमेर सिंह कुटलैहडिया,रणबीर पठनीया, कुशला  पठानीया, विनोद कुमार शर्मा, अंजू शर्म, बबीता कुटलैहडिया, शिव कुमार वर्जाता,सुमन वर्जाता, रक्षा सोनी,मधु बोहरा,सुशील बाबा,सुरेन्द्र राणा, राकेश शर्मा,बलदेव शास्त्री,नरेंद्र शर्मा, कमल देव शास्त्री, कुलदीप शर्मा,विवेकशील शर्मा,मदन गोपाल डॉ केशवानंद शर्मा आदि सैकंडों श्रद्धालुओं ने  भाग लिया।

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