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Homereligiousये है धनतेरस का इतिहास, आयुर्वेद से भी जुड़ा है त्योहार

ये है धनतेरस का इतिहास, आयुर्वेद से भी जुड़ा है त्योहार

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धर्मः कार्तिक माह (पूर्णिमान्त) की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन पूरे देश में धनतेरस मनाया जाता है। इस त्योहार को दिवाली की शुरुआत भी बताया जाता है। वहीं भारत सरकार ने धनतेरस को राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया है। इसके पीछे भी बहुत बड़ा इतिहास छिपा हुआ है।

वहीं जैन आगम में धनतेरस को ‘धन्य तेरस’ या ‘ध्यान तेरस’ भी कहते हैं। भगवान महावीर इस दिन तीसरे और चौथे ध्यान में जाने के लिये योग निरोध के लिए चले गए थे। 3 दिन के ध्यान के बाद योग निरोध करते हुए दीपावली के दिन निर्वाण को प्राप्त हुए। तभी से यह दिन धन्य तेरस के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

2025 में धनतेरस 18 अक्टूबर यानि आज मनाया जा रहा है। आज लोग पूजा पाठ करेंगे और घर में कोई सोने-चांदी की चीज भी खरीदेंगे जो घर में खुशहाली और समृद्धि का प्रतीक मानी जाती है। कई लोग धनतेरस के इतिहास से जागरूक नहीं है, जिसके बारे में आज इस आर्टिकल के माध्यम से जानकारी देंगे। ये जानकारी पटकथाओं और ज्योतिष शास्त्रों से ली गई है जो केवल सूचना के लिए है।

ये है मान्यता

मान्यता है कि समुद्र मंथन के दौरान इस दिन भगवान धन्वंतरि हाथ में अमृत कलश और आयुर्वेद की पुस्तक लेकर प्रकट हुए थे। भगवान धन्वंतरि के नाम पर ही इस पर्व का नाम धनतेरस पड़ा, क्योंकि उस दिन कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि थी। इसी कारण इस दिन भगवान धन्वंतरि की पूजा की जाती है, जिन्हें आयुर्वेद का जनक और स्वास्थ्य, समृद्धि व दीर्घायु का देवता माना जाता है। हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, भगवान धन्वंतरि भगवान विष्णु के अवतार हैं। वे आयुर्वेद के देवता और चिकित्सा शास्त्र के प्रवर्तक माने जाते हैं। पुराणों में बताया गया है कि उनका प्रादुर्भाव समुद्र मंथन के दौरान हुआ था।

देवताओं और असुरों के बीच अमृत प्राप्ति के लिए समुद्र मंथन किया गया था, उसमें भगवान धन्वंतरि अमृत का कलश लेकर प्रकट हुए थे। इस कारण उन्हें अमृत का प्रतीक और जीवन रक्षक माना जाता है। इसके अलावा, धनतेरस पर भगवान धन्वंतरि के साथ माता लक्ष्मी और भगवान कुबेर की भी पूजा की जाती है। यह पर्व धन, समृद्धि और स्वास्थ्य के लिए विशेष माना जाता है। प्रदोष काल में दीपदान और यम तर्पण की परंपरा भी इस दिन निभाई जाती है, ताकि अकाल मृत्यु से रक्षा हो। भागवत पुराण और विष्णु पुराण में भगवान धन्वंतरि का उल्लेख इस प्रकार है कि वे चार भुजाओं वाले, शंख, चक्र, जलौका और अमृत कलश धारण किए हुए प्रकट हुए थे। उनकी उत्पत्ति के बारे में वेदों में कहा गया है…

‘कार्तिकेकृष्ण पक्षे त्रयोदश्यां गुरोर्दिने। हस्त नक्षत्र संयुक्ते यामे प्राथमिके निशि। धन्वंतर्याख्यया चाहं धनंगुप्तमिवादते। अवतीर्णोयतस्तस्मात् सा तिथि सर्वकामदा।’

इसका अर्थ है कि भगवान धन्वंतरि का प्रादुर्भाव कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को, हस्त नक्षत्र में, रात्रि के प्रथम प्रहर (प्रदोष काल) में हुआ। इस कारण यह तिथि सभी कामनाओं को पूर्ण करने वाली मानी जाती है।

इस वजह से है भगवान धन्वंतरि का आयुर्वेद से है संबंध

भगवान धन्वंतरि को आयुर्वेद का जनक कहा जाता है। माना जाता है कि उन्होंने मानवजाति को स्वस्थ जीवन जीने की कला सिखाई। आयुर्वेद एक प्राकृतिक चिकित्सा और जीवनशैली पर आधारित है। इसका ज्ञान भगवान धन्वंतरि द्वारा ही दिया गया था। वे न केवल रोगों के उपचार, बल्कि रोगों से बचाव और स्वस्थ जीवन जीने के सिद्धांतों के प्रतीक हैं। आयुर्वेद ग्रंथों में उनकी शिक्षाओं का उल्लेख है और चरक संहिता व सुश्रुत संहिता जैसे ग्रंथ उनसे प्रेरित हैं।

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