नाव ही एक मात्र सहारा, लोग बोले- 76 साल बीत जाने के बावजूद भी किसी ने नहीं ली सुध
गुरदासपुरः सीमावर्ती कस्बा दीनानगर के अधीन आने वाले मकौड़ा पतन पर रावी नदी पर बना अस्थायी पुल उठाए जाने से 7 गांवों का संपर्क भारत से टूट चुका है। अब इन गांवों तक पहुंचने का एकमात्र सहारा नाव ही बचा है। आज़ादी के बाद इस रावी नदी के उस पार कुल 14 गांव बसे थे, पर आज़ादी के 76 साल बीत जाने के बावजूद इन गांवों की किसी सरकार ने सुध नहीं ली, जिससे कई लोग इन गांवों को छोड़ चुके हैं। इस समय रावी नदी के उस पार 14 में से 7 गांव ही मौजूद हैं। लोगों को रावी नदी पर पक्का पुल न होने के कारण कोई सुविधा नहीं मिलती, जिस वजह से आज भी देश की आज़ादी का इनके लिए कोई मतलब नहीं है।
रावी नदी के दूसरी पार बसे लोगों ने बताया कि भारत-पाक सीमा के करीब लगभग दर्जन भर गांव के लोग कहने को तो भारत का हिस्सा हैं, लेकिन बरसात के दिनों में ये लोग खुद को असहाय महसूस करते हैं। आज़ादी के इतने साल बीत जाने के बाद भी पुल के उस पार बसे 7 गांव के लोग खुद को गुलाम समझते हैं, क्योंकि जब भी यह अस्थायी पुल उठाया जाता है तो इन लोगों का संपर्क देश से टूट जाता है।
बरसात के मौसम में नहरी विभाग द्वारा बनवाया गया पलटून पुल उठाया जाता है और लोगों को आने-जाने के लिए एकमात्र नाव पर निर्भर रहना पड़ता है। जब नदी में पानी का स्तर अधिक होता है तो कई बार नाव भी नहीं चल पाती और रावी के उस पार बसे ये 7 गांव एक द्वीप बन जाते हैं और फिर लोगों के आने-जाने का कोई साधन नहीं रहता। रावी नदी के उस पार बसे 7 गांव भरियाल, तुरबानी, रायपुर चिब्ब, मम्मी चकरंगां, कजले, झुम्बर, लसियां आदि के लोग अक्सर हर साल सरकार से पक्के पुल की उम्मीद रखते हैं, लेकिन कुछ नहीं मिलता।