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पांडवों की भक्ति से प्रसन्न होकर शिव हुए थे इस ज्योतिर्लिंग में प्रकट, जानें पौराणिक कथा

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धर्म: भारत के सबसे मशहूर आध्यात्मिक और सांस्कृतिक केंद्रों की यदि बात करें तो उसमें केदारनाथ भी शामिल है। अपनी लोकप्रियता के कारण यह बहुत ही खास स्थान रखता है। समुद्र तल से लगभग 11,000 फीट की ऊंचाई पर बसी हुई इस घाटी की अद्भूत और प्राकृतिक सुंदरता लोगों को बहुत पसंद आती है। दुनिया भर से लोग इस मंदिर की ओर आकर्षित होते हैं। हिमालय की बर्फ से ढकी हुई ऊंची चोटियों के बीच में स्थित केदारनाथ मंदिर इस घाटी का मुख्य आकर्षण है।

हिंदू धर्म में केदारनाथ मंदिर का खास महत्व है। यह मंदिर हजारों सालों से पूजनीय है। कई किवंदतियों, कथाओं और चमत्कारों से जुड़ी इस मंदिर की खासियत ही अलग है। बहुत से लोग इस मंदिर का इतिहास और इससे जुड़ी पौराणिक कथा नहीं जानते। तो चलिए आज आपको आझ इसी बारे में बताते हैं।

पांडवों ने करवाया था मंदिर का निर्माण

बारह ज्योतिर्लिंगों में से सबसे खास केदारनाथ धाम की कथा है। ऐसा कहा जाता है कि इस प्राचीन शिव मंदिर का निर्माण पांडवों ने करवाया था। धार्मिक ग्रंथों की मानें तो केदार का अर्थ है महिष यानी की भैंसे का पिछला भाग। यह वही स्थान है जहां पर भगवान शिव धरती में लीन हो गए थे। ऐसा माना जाता है कि जब महाभारत का युद्ध खत्म हुआ तो पांडवों ने अपने ही रिश्तेदारों और भाई-बंधुओं की मृत्यु का दुख और पाप महसूस किया था। इसलिए वे भगवान शिव से क्षमा मांगने और अपने कर्मों का प्रयाश्चित करने के लिए शिव के दर्शन करना चाहते थे परंतु युद्ध के विनाश को देखकर भगवान शिव उनसे नाराज हो गए और उनके दर्शन ही नहीं करना चाहते थे।

पर पांडवों ने हार नहीं मानी और वह शिव की खोज में हिमालय की ओर चल पड़े। इसी दौरान भगवान शिव ने बैल का रुप धारण कर लिया और अन्य पशुओं के साथ जाकर मिल गए परंतु पांडवों को संदेह हो गया। उस समय भीम ने विशाल रुप धारण किया और दो पहाड़ों पर अपने पैर फैला लिए। उन्होंने पैर इसलिए फैलाए ताकि सभी पशु निकल जाए और शिव रुपी बैल पहचान में आ जाए। इस दौरान सभी पशु निकल गए पर वह खास बैल जो स्वंय शिव थे वो जाने को तैयार नहीं हुआ और भीम ने जैसे ही उस बैल को पकड़ना चाहा तो वह धरती में समाने लग गया। तभी भीम ने उसकी त्रिकोणाकार पीठ का भाग पकड़ लिया।

पांडवों की ऐसी भक्ति, समर्पण और तपस्या देखकर भगवान शिव प्रकट हुए और उन्हें उनके पापों से मुक्ति का आशीर्वाद दे दिया। पांडवों ने प्रार्थना की कि शिव इसी रुप में सदैव इस स्थान पर विराजमान रहे। भगवान शिव ने तथास्तु कहा और तब से वे केदारनाथ ज्योतिर्लिंग के तौर पर यहां पूजित हो रहे हैं।

एक अन्य मान्यता

एक अन्य कथा की मानें तो सप्तऋषियों में से दो ऋषि-नर और नारायण भगवान शिव की घोर तपस्या कर रहे थे। इसी दौरान जब भगवान शिव प्रकट हुए तो उन्होंने प्रार्थना की कि शिव जी इस स्थान पर हमेशा के लिए निवास करें। तभी से यह स्थान भगवान शिव का स्थायी निवास बन गया है।

मंदिर का इतिहास

यदि बात मंदिर के इतिहास की करें तो प्रागैतिहासिक काल से जुड़ा हुआ माना जाता है। कहा जाता है कि इसका निर्माण मूल तौर पर पांडवों के द्वारा किया गया था। महाभारत युद्ध का समय करीबन 3100 ईसा पूर्व बताया जाता है लेकिन कई इतिहासकार इसको 8वीं से 10वीं शताब्दी ईसा पूर्व के बीच में बताते हैं।

वर्तमान समय में मंदिर का पुनर्निमाण 8वीं सदी में आदि शंकराचार्य ने करवाया था। उन्होंने भारत भर में कई हिंदू तीर्थ स्थलों को पुनर्जीवित किया जिसमें चार धाम भी शामिल हैं। कुछ दस्तावेजों की मानें तो 8वीं सदी में यह मंदिर पत्थर और लकड़ी के साथ बना हुआ था परंतु उसकी दुर्गम स्थिति के चलते वह खराब हालत में चला गया। बाद में 11वीं सदी में राजा भोज ने इसका पुनर्निमाण पत्थर और संगरमरमर के साथ करवाया है।

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