धर्म: सावन के इस पावन महीने में शिव भक्त महादेव के दर्शनों के लिए ज्योर्तिलिंग में जाते हैं। ऐसे में उज्जैन में स्थित महाकालेश्वर ज्योर्तिलिंग में भी श्रद्धालुओं की काफी भीड़ होती है। आपको बता दें कि महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग ऐसा स्थान है जहां पर भगवान शिव महाकाल के तौर पर प्रकट होकर स्वयंभू दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग के तौर पर विराजमान हुए थे।
इससे जुड़ी कथा का अगर जिक्र करें तो उसमें शिवभक्त राजा चंद्रसेन, एक पांच साल के बालक की भक्ति और रामभक्त हनुमान की उपस्थिति और दूषण राक्षस का वध शामिल है। उज्जैन का महाकाल ज्योतिर्लिंग 12 ज्योतिर्लिंग में से खास स्थान रखता है। आज आपको बताते हैं कि उज्जैन में भगवान महाकालेश्वर कब विराजे हैं।
किस तरह एक पांच साल के बालक के कारण भगवान शिव महाकाल के तौर पर विराजित होने के लिए राजी हुए हैं और कैसे खुद शिवजी ने दूषण राक्षस का वध किया था। एक कथा के अनुसार, उज्जयिनी में राजा चंद्रसेन का राज था। राजा चंद्रसेन भगवान शिव के परम भक्त थे एक बार उनके मित्र शिवगण मणिभद्र ने उनको एक अनमोल चिंतामणि दी। राजा चंद्रसेन ने इसको गले में धारण कर लिया जिससे राजा का तेज और कीर्ति दूर-दूर फैल गई।
अन्य शासक भी उस मणि को पाने की इच्छा करने लगा। मणि को पाने के लिए कुछ ने चंद्रसेन पर हमला भी कर दिया। तभी राजा चंद्रसेन भगवान शिव की शरण में गए और उनके ध्यान में मग्न हो गए। चंद्रसेन जब शिव के ध्यान में मग्न थे उसी दौरान एक विधवा गोपी अपने पांच साल के छोटे बालक को साथ में लेकर दर्शन के लिए आ गई।
चंद्रसेन को शिव की भक्ति में लीन होता देखकर वो छोटा सा बालक भी भगवान शिव की भक्ति करने के लिए आतुर हो गया। बालक अपने घर में एकांत जगह में बैठकर शिवलिंग की पूजा करने लग गया। बालक की मां ने उसको भोजन के लिए बुलाया लेकिन वो नहीं आया। जब मां खुद बुलाने आई तो उसने देखा बालक शिव की भक्ति में बैठा है।
मां ने गुस्से में अपने बालक को पीटना शुरु कर दिया और सारी पूजा की सामग्री भी उठाकर फेंक डाली। उसी दौरान शिव का चमत्कार हुआ और उसी जगह पर एक सुंदर मंदिर और स्वभाविक ज्योतिर्लिंग प्रकट हो गया। उस ज्योतिर्लिंग को देखकर बालक की मां भी हैरान रह गई।
इस बात का जब राजा चंद्रसेन को पता चला तो वह शिवभक्त होने के नाते बालक के साथ मिलने के लिए पहुंचे। राजा भी वहां पर पहुंचे जहां मणि के लिए युद्ध करने पर लोग आए थे। सभी ने राजा चंद्रसेन से माफी मांगी और भगवान शिव की पूजा करने लग गए। उसी दौरान हनुमानजी प्रकट हुए और उन्होंने बालक की पूजा की प्रशंसा की। इस घटना के बाद स्वयंभू दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग स्थापित हुआ।
एक अन्य पौराणिक कथा भी है शामिल
इस स्थान से जुड़ी एक और पौराणिक कथा भी है। इस कथा के अनुसार, भगवान शिव खुद धरती को चीरकर महाकाल के तौर पर प्रकट हुए थे। प्राचीन काल में अवंती नगर हुआ करती थी जिसको आज उज्जैन के नाम से जाना जाता है यहां पर वेदप्रिय नाम के एक ब्राह्मण रहते थे वह भगवान शिव के परम भक्त थे। वो रोज पार्थिव शिवलिंग बनाकर उनकी पूजा करते थे।
उसी समय पास के रत्नमाल पर्वत पर दूषण नाम का एक राक्षस रहता था। वो राक्षस ब्राह्मणों के धार्मिक कामों को रोक कर उन पर अत्याचार करने लग गया। उससे भयभीत होकर ब्राह्मणों ने भगवान शिव से रक्षा के लिए मदद मांगी। भगवान शिव ने पहले दूषण राक्षस को चेतावनी भी दी लेकिन वो नहीं माना। जब दूषण ने ब्राह्मणों पर हमला किया तब भगवान शिव धरती फाड़कर महाकाल के तौर पर प्रकट हुए।
उन्होंने राक्षस का वध कर दिया। दूषण राक्षस का वध करने के बाद महाकाल ने राक्षस की भस्म से अपना श्रृंगार किया था। इस चमत्कारिक घटना से भयमुक्त हुए ब्राहमणों ने भगवान शिव से निवेदन किया कि वो सदा के लिए वहीं पर विराजमान रहें। भक्तों की प्रार्थना से खुश होकर भगवान शिव ने उस जगह की ही अपना निवास स्थान बना लिया। तभी से वह जगह महाकालेश्वर के नाम से प्रसिद्ध हो गई है।
सावन में दूर-दूर से आते हैं भक्त
सावन का महीना भगवान शिव की आराधना के लिए बहुत ही खास माना जाता है। उज्जैन में स्थित महाकालेश्वर मंदिर में इन दिनों भक्तों की भारी भीड़ नजर आती है। यह मंदिर सात मोक्षदायिनी नगरों में से एक उज्जैन में स्थित है। सावन के सोमवार को यहां दर्शन बहुत ही फलदायक माने जाते हैं। यहां पर लोग दर्शन के लिए बुकिंग की जरुरत नहीं होती परंतु भस्म आरती में शामिल होने के लिए पहले ऑनलाइन बुकिंग जरुरी है।
आखिर क्या है भस्म आरती की टाइमिंग?
महाकाल मंदिर में भस्म आरती रोज सुबह 4 बजे से लेकर 5 बजे तक होती है परंतु श्रद्धालु मुख्यतौर पर रात में 1 बजे से ही लाइन में लग जाते हैं। आरती में भाग लेने के लिए ऑनलाइन या फिर ऑफलाइन परमिशन जरुरी होती है जिसका प्रिंटआउट साथ रखना होता है। श्रद्धालु कई दिन पहले से ही ऑनलाइन बुकिंग करवाने लग जाते हैं क्योंकि बुकिंग नहीं मिलती। आरती से पहले शिवलिंग पर अभिषेक होता है फिर भक्तों को एक हाल में दर्शन करवाया जाता है।