जालंधर, ENS: पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ गया है। इसी को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार ने सुरक्षा तैयारियों को और तेज कर दिया है। बीते दिन गृह मंत्रालय ने सभी राज्यों को निर्देश जारी किए हैं कि वे सिविल डिफेंस की तैयारी करें। ऐसे में 7 मई को मॉक ड्रिल का आयोजन किया जा रहा है। जिसमें एयर रेड वॉर्निंग सायरन भी बजाया जाएगा। इसी को लेकर आज कैंट में जालंधर छावनी बोर्ड के अध्यक्ष ब्रिगेडियर सुनील सोल और सीईओ ओमपाल सिंह ने अपनी टीम के साथ फ्लैग मार्च निकाला गया। इस अवसर पर ब्रिगेडियर सुनील सोल ने क्षेत्रवासियों से अपील की कि यदि कोई व्यक्ति छावनी क्षेत्र में संदिग्ध परिस्थितियों में घूमता दिखाई दे तो तुरंत छावनी परिषद या पुलिस प्रशासन को सूचित करें।
वहीं उन्होंने कहा कि यदि दुकानदारों ने बिना पुलिस वेरिफिकेशन से अपने घरों व दुकानों में किरायेदार या नौकर रखे हैं तो वे इसकी सूचना छावनी बोर्ड व पुलिस प्रशासन को दें। ऐसा न करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी और इसकी जिम्मेदारी उस समुदाय की होगी जिसने सूचना उपलब्ध नहीं कराई। सीईओ ओमपाल सिंह ने कहा कि लोगों को डरने की जरूरत नहीं है, क्योंकि पाकिस्तान के साथ तनावपूर्ण स्थिति बनी हुई है। सभी को सतर्क रहना चाहिए और कैंट बोर्ड का सहयोग करें। उन्होंने कहा कि आज रात 8 बजे से लेकर कुछ घंटों के लिए ब्लैकआउट भी रहेगा। ऐसे में लोगों को पैनिक ना रहने की अपील की गई है।
बता देंकि युद्ध के समय ब्लैकआउट एक ऐसी रणनीति है, जिसमें कृत्रिम रोशनी को न्यूनतम किया जाता है। ताकि दुश्मन के विमानों या पनडुब्बियों को निशाना ढूंढने में कठिनाई हो। यह प्रथा मुख्य रूप से 20वीं सदी में द्वितीय विश्व युद्ध (1939-1945) के दौरान प्रचलित थी। ब्लैकआउट नियम घरों, कारखानों, दुकानों और वाहनों की रोशनी को नियंत्रित करते थे, जिसमें खिड़कियों को ढंकना, स्ट्रीट लाइट्स बंद करना। वाहनों की हेडलाइट्स पर काला रंग या मास्क लगाना शामिल था।
ब्लैकआउट का मुख्य उद्देश्य दुश्मन के हवाई हमलों को मुश्किल बनाना था। रात के समय शहरों की रोशनी दुश्मन के पायलटों के लिए निशाना ढूंढने में सहायक होती थी। उदाहरण के लिए, 1940 के लंदन ब्लिट्ज के दौरान, जर्मन लूफ्टवाफे ने ब्रिटिश शहरों पर रात में बमबारी की। रोशनी को कम करके नेविगेशन और टारगेटिंग को जटिल किया गया। तटीय क्षेत्रों में ब्लैकआउट जहाजों को दुश्मन की पनडुब्बियों से बचाने में मदद करता था, जो तट की रोशनी के खिलाफ जहाजों की सिल्हूट देखकर हमला करते थे।
1 सितंबर, 1939 को ब्रिटेन में युद्ध की घोषणा से पहले ब्लैकआउट नियम लागू किए गए। सभी खिड़कियों और दरवाजों को रात में भारी पर्दों, कार्डबोर्ड या काले रंग से ढंकना अनिवार्य था ताकि कोई भी रोशनी बाहर न निकले। सरकार ने इन सामग्रियों की उपलब्धता सुनिश्चित की। सड़क की सभी बत्तियां बंद कर दी जाती थीं। या उन्हें काले रंग से आंशिक रूप से रंगा जाता था ताकि रोशनी नीचे की ओर रहे। लंदन में 1 अक्टूबर, 1914 को मेट्रोपॉलिटन पुलिस कमिश्नर ने बाहरी रोशनी को बंद करने या मंद करने का आदेश दिया था।