नई दिल्ली: स्कूलों में बच्चों को शारीरीक दंड देने पर हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कहा है बच्चों को सुधारने के लिए शारीरीक दंड देना शिक्षा का हिस्सा नहीं है, यह बच्चों के जीवन की स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है, जो संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत संरक्षित है।
यह मामला छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले का है, जहां एक स्कूल की शिक्षिका ने दो छात्राओं को शौचालय में मिलने पर उनके पहचान पत्र जब्त कर लिए थे, जिसमें से एक छात्रा ने शिक्षिका के दंड से डरकर आत्महत्या कर ली थी। इसके बाद, शिक्षिका के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला दर्ज किया गया था। शिक्षिका के वकील ने अदालत में दलील दी कि शिक्षिका का आत्महत्या के लिए उकसाने का कोई इरादा नहीं था। हालांकि, कोर्ट ने इस दावे को मानने से इंकार करते हुए याचिका को खारिज कर दिया और कहा कि शिक्षिका के खिलाफ आरोपों पर गौर किया जाना जरूरी है।