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करवा चौथ : यहां की महिलाएं चाहकर भी नही रखती व्रत, जाने मामला

नई दिल्ली :  करवा चौथ मंगलवार 31 अक्टूबर को मनाया जाएगा। देश भर में शादीशुदा महिलाओं के लिए करवा चौथ का खास महत्व है। महिलाएं व्रत को लेकर काफी पहले से तैयारी करती हैं। वहीं दूसरी ओर उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले में एक तहसील ऐसी भी है जहां की विवाहिता चाहकर भी इस व्रत को नहीं करती हैं।  मथुरा में मांट तहसील के सुरीर बिजउ गांव के बधा क्षेत्र की विवाहित महिलाएं नहीं रखती हैं। इसका मुख्य कारण एक सती का इस क्षेत्र के लोगों को दिया गया श्राप है। गांव के बड़े बुजुुर्ग बताते हैं कि लगभग ढाई सौ वर्ष पहले घटी घटना के बाद शुरुआत में जिस महिला ने गांव में आठ नौ लोगों की मौत और महिलाओं के विधवा होने के बाद से इस क्षेत्र में इस त्योहार को मनाना बन्द हो गया। गांव की 102 वर्षीय सुनहरी देवी ने बताया कि लगभग ढाई सौ वर्ष पहले एक ब्राह्मण पति अपनी पत्नी को ससुराल से विदा कराकर बैलगाड़ी से जब अपने गांव राम नगला जा रहा था तो रास्ते में बघा क्षेत्र में उसका विवाद एक बैल को लेकर हो गया। 

गांव में आठ नौ लोगों की मौत और महिलाओं के विधवा होने के बाद से इस क्षेत्र में इस त्योहार को मनाना बन्द हो गया। जानकारी के अनुसार लगभग ढाई सौ वर्ष पहले एक ब्राह्मण पति अपनी पत्नी को ससुराल से विदा कराकर बैलगाड़ी से जब अपने गांव राम नगला जा रहा था तो रास्ते में बघा क्षेत्र में उसका विवाद एक बैल को लेकर हो गया। जहां बघा क्षेत्र के एक व्यक्ति का कहना था कि उसका यह वही बैल है जो हाल में चोरी हो गया था। वहीं ब्राह्मण कह रहा था कि यह बैल उसे ससुराल से मिला है। विवाद इतना बढ़ा कि ब्राह्मण की हत्या कर दी गई। इसके बाद उसकी पत्नी न केवल सती हो गई बल्कि सती होने के पहले उसने श्राप दिया था कि बघा क्षेत्र की जो भी महिलाएं करवा चौथ का व्रत करेंगी उसके पति की मृत्यु हो जाएगी।

जिस दिन उक्त घटना घटी  उस दिन करवा चौथ का पर्व था।  उन्होंने बताया कि यद्यपि ब्राह्मण की मृत्यु के बाद गांव में ही सती का मन्दिर बनाया गया था और विवाह के पूर्व और अन्य पर्वों पर सातों जाति इसकी पूजा करती हैं किंतु करवा चौथ मनाने एवं कुछ विवाहित युवकों की मृत्यु के कारण यह व्रत रखने की प्रथा इस गांव से स्वतः समाप्त हो गई। समाजसेवी ने बताया कि राम नगला गांव के लोग तो बघा का पानी पीने से भी परहेज करते हैं। उन्होंने यह भी बताया कि बघा में सती की पूजा देवी की तरह की जाती है। देश के कम्प्यूटर युग में पहुंच जाने के बावजूद किसी में इस प्रथा को तोड़ने की हिम्मत नहीं है क्योंकि लोग सती के श्राप को एक प्रकार से देवी का आदेश मानते हैं।

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