दून भाजपा के नए मंडलाध्यक्ष मान सिंह मैहता ने पार्टी को आशाएं

दून भाजपा के नए मंडलाध्यक्ष मान सिंह मैहता ने पार्टी को आशाएं

खंडित भाजपा को एक सूत्र में पिरोना होगा एक बडी चुनौती

पिछले पांच साल से गुटबंदी से त्रस्त है दून में भगवा पार्टी

बददी/सचिन बैंसल: दून भाजपा मंडल को मिले नए मंडलाध्यक्ष को खंडित पडी हुई भाजपा को एक सूत्र में पिरोना एक चुनौती होगा। दून भाजपा को मंडल एक दशक बाद नया प्रधान मिला है। पिछले पांच साल से दून भाजपा गुटबंदी की ज्वाला से धधकती रही। पुराने मंडल के समय में यहां पर पार्टी दो से तीन धडों में बंटी रही फलस्वरुप निष्ठावान कार्यकर्ता दोराहे पर खडे रहे। अब दून बीजेपी मंडल के नवनिर्वाचित मंडलाध्यक्ष मान सिंह मैहता के लिए एक चुनौती तो बिखरी पडी भाजपा को एकजुट करना है और सबको साथ लेकर चलना एक बडा मिशन होगा। पिछले पांच साल से गुटबंदी व दो धडों में बंटी दून भाजपा इसी कारण से विधानसभा चुनावो में 6699 मतों करारी हार का सामना करना पड़ा था। निष्ठावान, समर्पित व कर्मठ कार्यकर्ताओं का कहना है कि विस में हमारी हार इसलिए हुई क्योंकि पिछले मंडल ने धरातल पर काम करने की बजाय सिर्फ कागजों में संगठन को मजबूत रखा और हकीकत कुछ और ही थी और सिर्फ मीडीया में फोटो जारी कर सुर्खियां बटोरी जाती थी।

कागजों की नफरी पूरी करने के चक्कर में गलत आंकडे परोसे जाते थे जबकि फील्ड में कुछ था ही नहीं। जो कार्यकर्ता सच व सही बात कहता था उसको या तो किनारे कर दिया जाता था या उसको बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता था। सिर्फ उसी को मंडल में तरजीह दी जाती थी जो कि मुख्यिा के हां में हां मिलाता था और जिनकी पार्टी के प्रति कटटर प्रति विचारधारा भी हो अगर वो जी हजूरी नहीं करता था तो उसके लिए कोई जगह नहीं था। हाईकमान को चाहे पन्ना प्रमुख हो या बूथ अध्यक्ष त्रिदेव पूरा डाटा दिया जाता था लेकिन उनमें से अधिकांश 2022 के चुनावों फेल हो गए और कागजी काम कागज के पन्नों की तरह बिखर गए और 6699 वोटों से करारी हार मिली। इतनी बडी हार पर मंडल के किसी के पदाधिकारी ने तो जिम्मेदारी ली और न ही इस्तीफा दिया। अब एक ईमानदार युवा व समर्पित कार्यकर्ता मान सिंह मैहता के मंडलाध्यक्ष बनने से आम कार्यकर्ता को आस जगी है कि अब पार्टी में सिर्फ चहेतों को नहीं बल्कि सबको समान रुप से काम करने का मौका मिलेगा और काम सिर्फ कागजों में दिखाने के लिए बल्कि धरातल पर होगा ताकि लोकसभा व विस चुनाव में असली परिणाम आ सके। पांच साल की इसी गुटबंदी व कार्यकर्ताओं में अनादर की भावना से तरसेम चौधरी, प्रदीप कुमार, जस्सी, बेअंत सिंह, चंदन सिंह समेत कई निष्ठावान कार्यकर्ता पार्टी छोडकर चले गए जिसका परिणाम विस में भुगतना पड़ा।