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HomeEntertainmentबद्दी में मनाई गई छत्रापति शिवाजी की 393वीं जयन्ती

बद्दी में मनाई गई छत्रापति शिवाजी की 393वीं जयन्ती

5 दर्जन से अधिक मराठा परिवारों ने लिया हिस्सा

बददी/ सचिन बैंसल : बद्दी में रवीवार को छत्रापति शिवाजी महाराज का 393वाँ जन्मोत्सव बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया गया । कार्यक्रम की शुरूआत दीप प्रज्जवलित कर देश भक्ति गीत के साथ शुरू हुआ । जिसमें नन्हें नन्हें बच्चों ने छत्रापति शिवाजी की जीवनी की सुन्दर प्रस्तुति के साथ कार्यक्रम की शोभा बढ़ाई । मंच संचालन महेश माली ने किया वहीं कार्यक्रम के मुख्य आयोजक नितिन पाटील रहे । मुख्य अतिथि आर्य समाज के अध्यक्ष कुलवीर आर्य तथा विशिष्ट अतिथि अमरावती वेलफेयर सोसाईटी के अध्यक्ष सौरभ श्रीवास्तव एवं अजय कुमार रहे । मुख्य वक्ता के तौर पर मंजली माली ने विस्तार से छत्रापति शिवाजी के जीवन का परिचय देते हुए कहा कि शिवाजी महाराज जबरदस्त और शक्तिशाली शासकों में से एक थे जिन्होंने एक मजबूत और अजेय मराठा राष्ट्र की नींव रखी ।

उनकी कई विजयों के कारण, वह मराठाओं के महान योद्वा और नायक माने जाते हैं । उन्होंने कहा कि अपने बुद्वि बल, शौर्य और कुशलता के चलते उन्होंने मुगलों के नाकों तले चने चबा दिए । कहा कि शिवाजी महाराज ने हिन्दू सम्राज्य की स्थापना उस समय की जब चारों ओर मुगलों के अत्याचार से देश भय और आतंक के साये में जी रहा था । उन्होंने बताया कि शिवाजी महाराज ने 16 वर्ष की आयु में, अपनी पहली जीत टाॅमा किले पर कब्जा कर के प्राप्त की और 17 साल की उम्र में इसे जारी रखते हुए, उन्होंने कोंडाना किलों और रायगढ़ का अधिग्रहण किया । सबसे प्रसिद्व और प्रमुख लड़ाइयों में अफजल खान के विरुद्व प्रतापगढ़ की लड़ाई, पावन खिंड की लड़ाई, कोल्हापुर की लड़ाई, और विशालगढ़ की लड़ाई शामिल है । उसने अपनी उत्कृष्ठ सेनाओं, गति बुद्विमत्ता और सरासर नियोजन के साथ ये सभी युद्व और लड़ाइयां जीते । लेकिन कभी भी मुगलों के आगे हार नहीं मानी।उन्होंने बताया कि शिवाजी धार्मिक मान्यताओं के घनी थे ।

अपने धर्म की उपासना वो जिस तरह से करते थे । शिवाजी ने अपना राष्ट्रीय ध्वज नारंगी रखा था, जो हिंदुत्व का प्रतीक हैं. इसके पीछे एक कथा है, शिवाजी रामदास जी से बहुत प्रेम करते थे, जिनसे शिवाजी ने बहुत सी शिक्षा ग्रहण की थी. एक बार उनके ही साम्राज्य में रामदास जी भीख मांग रहे थे, तभी उन्हें शिवाजी ने देखा और वे इससे बहुत दुखी हुए, वे उन्हें अपने महल में ले गए और उनके चरणों में गिर उनसे आग्रह करने लगे, कि वे भीख ना मांगे, बल्कि ये सारा साम्राज्य ले लें । स्वामी रामदास शिवाजी की भक्ति देख बहुत खुश हुए, लेकिन वे सांसारिक जीवन से दूर रहना चाहते थे, जिससे उन्होंने साम्राज्य का हिस्सा बनने से तो इंकार कर दिया, लेकिन शिवाजी को कहा, कि वे अच्छे से अपने साम्राज्य को संचालित करें और उन्हें अपने वस्त्रा का एक टुकड़ा फाड़ कर दिया और बोला इसे अपना राष्ट्रीय ध्वज बनाओ, ये सदेव मेरी याद तुम्हे दिलाएगा और मेरा आशीर्वाद हमेशा तुम्हारे साथ रहेगा ।

कार्यक्रम में युवा कवी अंकित परमार ने आजस्वी कविता ‘‘गजब की सादगी है तेरे शहर में, हवाओं में ताजगी है तेरे शहर में, जब से आया हूं यहीं का हो गया हूं, अब तो नाराजगी है मेरे शहर में’’ कहकर दर्शकों की खूब तालियां बटोरी । इस अवसर पर कार्यक्रम संयोजक नीतिन पाटील, महेश माली, मंजिली माली, वैशाली पाटील, अरूणा कोलेकर, शीतल पाटील, स्वाती पाटील, अर्चना सोनवणे, जयवंत कोलेकर, मनीष पाटील, दिनेश पाटील, संदीप सोनवणे, शंकर बचाव, सुरेश सैनी, सुभाष जसवाल, कपिल सहित अनेक गणमान्य लोग मौजूद रहे ।

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