नई दिल्ली: अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन ने H-1B वर्क वीजा के पुराने लॉटरी सिस्टम को हटा दिया है। अब इसकी जगह Weighted Selection Sytem लागू करने का फैसला किया है। नए सिस्टम में रैंडम लॉटरी की जगह सैलरी और स्किल के आधार पर कैंडिडेचर तय किया जाएगा। इसका मतलब यह है कि किसी भी व्यक्ति को H-1B वीजा मिलेगा या नहीं यह बात उसकी किस्मत पर नहीं अब से उसकी स्किल और सैलरी पर निर्भर करेगी।
जारी हुआ नोटिफिकेशन
यूएस डिपॉर्टमेंट ऑफ होमलैंड सिक्योरिटी और यूएस सिटिजनशिप एंड इमिग्रेशन सर्विसेज (USCIS) की ओर से मंगलवार को यह नया नियम जारी कर दिया गया है। USCIS के स्पोक्सपर्सन ने कहा कि पुराने रैंडम लॉटरी सिस्टम का फायदा उठाकर कई अमेरिकी कम सैलेरी पर विदेशी वर्कर्स लेकर आ रही थी। यह वर्कर्स कम पैसे पर काम करने के लिए भी तैयार थे।
नियम लागू होने से आएंगे ये बदलाव
नए नियम लागू होने से अब वीजा सिलेक्शन रैंडम नहीं होगा बल्कि वेटेड होगा। सिलेक्शन में सैलेरी स्तर के आधार पर ही वेट दिया जाएगा। ज्यादा सैलेलरी वाले जॉब ऑफर वाले एप्लिकेंट्स के चांस ज्यादा होंगे। डिपॉर्टमेंट ऑफ लेबल के तय 4 वेज लेवल्स होंगे। सबसे कम लेवल पर 1 एंट्री, सबसे ऊंचे पर 4 एंट्रीज। इससे हाई पेड और हाई स्किल्ड वर्कर्स को ज्यादा फायदा मिलेगा। यह नियम 27 फरवरी 2026 से लागू हो जाएगा। इसके साथ ही फिस्कल ईयर 2027 के H-1B कैप रजिस्ट्रेशन सीजन से शुरु होगा।
इसलिए लिया ट्रंप ने फैसला
ट्रंप प्रशासन का यह कहना है कि पुराने सिस्टम का गलत इस्तेमाल हो रहा था। कंपनियां एंट्री लेवल जॉब्स दिखाकर कम सैलरी पर विदेशी वर्कर्स लाती थी। भले ही उनके पास ज्यादा एक्सपीरियंस हो पर इससे अमेरिकी वर्कर्स की जॉब्स और सैलेरी पर असर होता था। नया सिस्टम अमेरिका फर्स्ट पॉलिसी के अंतर्गत है इससे हाई स्किल्ड टैलेंट को बढ़ावा मिलेगा।
भारतीय वर्कर्स पर होगा असर
भारतीय प्रोफेशनल्स H-1B वीजा के सबसे बड़े यूजर्स हैं। इस बदलाव से एंट्री लेवल या कम सैलेरी वाले युवा भारतीयों को वीजा मिलना मुश्किल होगा। इशके अलावा हाई पेड और सीनियर रोल्स वाले एक्सपीरियंस वर्कर्स को इससे फायदा होगा। इस साल अमेजन सबसे ज्यादा (10,000+), H-1B वीजा लेने वाली कंपनी थी। इसके बाद टीसीएस, माइक्रोसॉफ्ट, एप्पल और गूगल ने जगह बनाई थी।
