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पाकिस्तान में युद्ध जैसे हालात! घर छोड़कर भागे 55 हजार लोग, लाखों कर्फ्यू में फंसे

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इस्लामाबाद: पाकिस्तान की सेना का आतंक के खिलाफ अभियान में अपने ही लोगों को टॉर्चर करने का लंबा इतिहास रहा है। पाकिस्तान की सेना फिर से वही कर रही है। पाकिस्तानी सेना ने खैबर पख्तूनख्वा के बाजौर जिले में आतंकियों के खिलाफ अभियान शुरू किया है, जिसमें हजारों लोगों को अपने घर से विस्थापित होना पड़ा है। पाकिस्तानी सेना ने तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) के खिलाफ बड़े पैमाने पर अभियान शुरू किया है, जिसके चलते करीब 55,000 लोग विस्थापित हो गए हैं।

मिली जानकारी के अनुसार यह ऑपरेशन विशेष रूप से लोई मामुंड और वार मामुंड तहसीलों में चल रहा है, जो लंबे समय से TTP का गढ़ माने जाते रहे हैं। पिछले कुछ समय से इस क्षेत्र में शांति वार्ता चल रही थी, लेकिन तालिबान कमांडरों के साथ बातचीत नाकाम होने के बाद “ऑपरेशन सरबाकफ” फिर से शुरू कर दिया गया। प्रशासन ने 27 इलाकों में 12 से 72 घंटे तक कर्फ्यू लगाया है, जिससे स्थानीय जनता की परेशानी और बढ़ गई है।

स्थानीय लोगों और राजनेताओं का कहना है कि यह कार्रवाई सीधे उनके जीवन को प्रभावित कर रही है। अवामी नेशनल पार्टी के सांसद निसार बाज ने खैबर पख्तूनख्वा विधानसभा में बताया कि कर्फ्यू के कारण लगभग 4 लाख लोग अपने घरों में फंसे हुए हैं और सुरक्षित स्थानों तक पहुंच नहीं पा रहे हैं। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि सरकार ने विस्थापित लोगों की मदद के लिए पर्याप्त इंतजाम नहीं किए हैं। बहुत से परिवारों को टेंट या सार्वजनिक इमारतों में रात बितानी पड़ रही है, जबकि परिवहन की कमी ने स्थिति को और जटिल बना दिया है।

सरकारी अधिकारियों का दावा है कि प्रभावित लोगों को सुरक्षित ठिकानों पर ले जाकर भोजन और आश्रय मुहैया कराया जा रहा है। प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के सलाहकार मुबारक खान जैब ने बताया कि कुछ स्कूलों को अस्थायी शरणस्थल के रूप में तैयार किया गया है। खैबर पख्तूनख्वा के जिला प्रशासन ने खार तहसील में 107 शैक्षणिक संस्थानों को राहत शिविरों के रूप में चिन्हित किया है ताकि विस्थापितों को बेहतर सुविधाएं मिल सकें।

यह अभियान 29 जुलाई को शुरू हुआ था, लेकिन अगले ही दिन जनजातीय जिरगा समुदाय की मध्यस्थता के कारण शांति वार्ता के लिए इसे रोक दिया गया था। इन वार्ताओं का मकसद था आतंकियों को अफगानिस्तान भेजना और क्षेत्र में स्थायी शांति स्थापित करना। हालांकि, कई दौर की बातचीत के बाद भी शुक्रवार को इस प्रयास में सफलता नहीं मिली। इसके बाद सेना ने पुनः सख्त कदम उठाते हुए ऑपरेशन फिर से शुरू कर दिया।

इस अभियान के चलते स्थानीय लोग अपने घरों को छोड़ने के लिए मजबूर हो गए हैं, जिससे वहां के सामाजिक और आर्थिक जीवन पर गहरा असर पड़ा है। कर्फ्यू और सैन्य कार्रवाई ने जनजीवन ठप्प कर दिया है और लोगों को अपने रोजमर्रा के काम-काज से दूर रखा है। विस्थापितों को प्राथमिक सुविधाएं मुहैया कराना सरकार के लिए एक चुनौती बना हुआ है।

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