भूमि शिक्षा विभाग को दी है दान,राजस्व विभाग को नहीं,छपरोह पंचायत का बंदोबस्त कार्यकाल घुघन कलां में नहीं खुलेगा:कृष्ण पाल शर्मा
ऊना/सुशील पंडित: कुटलैहड़ विधानसभा क्षेत्र के ककराना गांव के अंतर्गत आने वाले घुघनकलां गांव में स्थित राजकीय प्राथमिक स्कूल को सरकार द्वारा एक वर्ष पूर्व बंद कर दिया गया था। अब इस विद्यालय भवन में बंदोबस्त कार्यालय खोले जाने की खबर से ग्रामीणों में भारी आक्रोश है। स्थानीय ग्रामीणों ने बंगाणा उपमंडल के कार्यकारी एसडीएम अमित कुमार को ज्ञापन सौंपकर इस निर्णय का पुरजोर विरोध जताया है।
1972 में भूमि दान देने वाले ओंकार सिंह, शुभकरण सिंह, कमल सिंह, रणजीत सिंह, अशोक कुमार, राकेश सिंह, कश्मीर सिंह, गुरदयाल सिंह, गुरदेव, स्वर्ण सिंह, सोम सिंह सुरजीत सिंह,उपेन्द्र सिंह के आगे कई परिवारों के सदस्य गुरमीत सिंह, केसर सिंह, जोगिंद्र सिंह, विक्रम सिंह,सतपाल, शेर सिंह, मुनीश कुमार,धर्मपाल, आदि दर्जनों ग्रामीणों ने स्पष्ट कहा कि यह विद्यालय वर्ष 1972 में खोला गया था और उन्होंने स्वयं अपनी बीस कनाल निजी भूमि शिक्षा विभाग के नाम की थी, ताकि गांव के बच्चों को उचित और निःशुल्क शिक्षा प्राप्त हो सके। ग्रामीणों का कहना है कि विद्यालय भवन में केवल और केवल शिक्षा से जुड़ी गतिविधियां ही संचालित होनी चाहिए, अन्यथा वे अपनी भूमि वापिस लेंगे। उनका कहना है कि यदि सरकार ने स्कूल भवन को कबाड़ बनाना है या उसमें अन्य कार्यालय खोलने हैं, तो उनकी दी गई भूमि को तत्काल वापस किया जाए। स्थानीय जिला पार्षद सदस्य कृष्ण पाल शर्मा ने कहा कि प्रशासन द्वारा जो बंदोबस्त कार्यालय इस स्कूल भवन में खोलने की योजना है, वह छपरोह पंचायत के अंतर्गत आता है, न कि घुघनकलां पंचायत के, ऐसे में यह निर्णय न केवल अनुचित है, बल्कि ग्रामीणों की भावनाओं के साथ भी खिलवाड़ है।
ज्ञात हो कि घुघनकलां स्कूल को बंद कर दिए जाने के बाद अब गांव के छोटे-छोटे बच्चे लगभग पांच किलोमीटर दूर दूसरे स्कूल में शिक्षा ग्रहण करने को मजबूर हैं। इन बच्चों में तीन दिव्यांग छात्र भी शामिल हैं, जिन्हें सड़क सुविधा न होने के कारण दो किलोमीटर का कठिन रास्ता पैदल तय करके मुख्य सड़क तक पहुंचना पड़ता है। यह स्थिति न केवल शारीरिक रूप से थकाने वाली है, बल्कि बच्चों की शिक्षा में भी बाधा उत्पन्न कर रही है। ग्रामीणों ने बताया कि उन्होंने स्कूल बंद होने के निर्णय को लेकर हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय शिमला में याचिका दायर की थी। न्यायालय ने इस मामले में आदेश देते हुए स्कूल को नियमित करने के निर्देश भी दिए थे। बावजूद इसके, शिक्षा विभाग और जिला प्रशासन ने अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं की है, जिससे बच्चों का भविष्य अधर में लटक गया है।
वहीं बुजुर्गों और अभिभावकों का कहना है कि यह स्कूल पिछले 49 वर्षों से कई गरीब और जरूरतमंद बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करता आ रहा है। ग्रामीणों की स्पष्ट मांग है कि स्कूल को पुनः चालू किया जाए और इसमें किसी भी अन्य विभाग का कार्यालय न खोला जाए। अब देखना यह है कि प्रशासन ग्रामीणों की मांगों पर कितना संज्ञान लेता है और उनके बच्चों के भविष्य के लिए क्या कदम उठाए जाते हैं।