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जय श्री कृष्णा, जय श्री राधे के जयकारों से गूंजी ऊना की ग्राम पंचायत वदोली

ऊना/सुशील पंडित: श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के  दूसरे दिन गांव वदोली में श्री वृन्दावन धाम से पधारे परमपूज्य संत श्री भागवत शरण जी महाराज ने कहा कि कलियुग में श्रीमद् भागवत महापुराण श्रवण कल्पवृक्ष से भी बढ़कर है। क्योंकि कल्पवृक्ष मात्र तीन वस्तु अर्थ, धर्म और काम ही दे सकता है। मुक्ति और भक्ति नही दे सकता है। लेकिन श्रीमद् भागवत तो दिव्य कल्पतरु है यह अर्थ, धर्म, काम के साथ साथ भक्ति और मुक्ति प्रदान करके जीव को परम पद प्राप्त कराता है। उन्होंने कहा कि श्रीमद् भागवत केवल पुस्तक नही साक्षात श्रीकृष्ण स्वरुप है। इसके एक एक अक्षर में श्रीकृष्ण समाये हुये है। उन्होंने कहा कि कथा सुनना समस्त दान, व्रत, तीर्थ, पुण्यादि कर्मो से बढ़कर है। धुन्धकारी जैसे शराबी, कवाबी, महापापी, प्रेतआत्मा का उद्धार हो जाता है। उन्होंने कहा कि भागवत के चार अक्षर इसका तात्पर्य यह है कि भा से भक्ति, ग से ज्ञान, व से वैराग्य और त त्याग जो हमारे जीवन में प्रदान करे उसे हम भागवत कहते है। इसके साथ साथ भागवत के छह प्रश्न, निष्काम भक्ति, 24 अवतार श्री नारद जी का पूर्व जन्म, परीक्षित जन्म, कुन्ती देवी के सुख के अवसर में भी विपत्ति की याचना करती है। क्यों कि दुख में ही तो गोविन्द का दर्शन होता है। जीवन की अन्तिम बेला में दादा भीष्म गोपाल का दर्शन करते हुये अद्भुत देह त्याग का वर्णन किया। साथ साथ परीक्षित को श्राप कैसे लगा तथा भगवान श्री शुकदेव उन्हे मुक्ति प्रदान करने के लिये कैसे प्रगट हुए इत्यादि कथाओं का भावपूर्ण वर्णन किया। नारद वृतांत पर बोलते हुए स्वामी भगवत शरण ने बताया नारद पूर्वजन्म में दासी पुत्र रहे और उनका जीवन संतों की सेवा करते हुए व्यतीत हुआ सेवा से प्रसन्न होकर ऋषियों के वरदान उपरांत उनको ब्रह्मा पुत्र होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।

स्वामी भगवत शरण ने बताया कि एक बार नारद मुनि घूमते हुए जब भगवान भोले शंकर और पार्वती माता के पास मिलने पहुंचे तो भगवान भोले शंकर उस समय ध्यान में मग्न थे तब नारद जी ने माता पार्वती से कहा की माता आजकल दुनिया में कोई किसी से प्रेम नहीं करता तो माता पार्वती ने नारद जी को उत्तर देते हुए कहा कि मेरे घर में तो वैल” भगवान भोले शंकर की सवारी है और शेर मेरी सवारी है फिर भी दोनों परस्पर प्रेम से रहते हैं दूसरी बात मेरे पुत्र गणेश का वाहन चूहा है जबकि भगवान भोले शंकर के गले में सर्प लिपटे रहते हैं वह भी परस्पर प्रेम से ही रहते हैं ऐसी कोई बात नहीं है। नारद मुनि ने माता पार्वती को एक प्रश्न किया और पूछा कि भगवान भोले शंकर के गले में जो मुंडमाल पड़ी हुई हैं उसके बारे में आपको कभी उन्होंने बताया भी है तब पार्वती माता ने कहा की इस बारे में कभी मैंने ना पूछा ना उन्होंने बताया तब नारद जी ने कहा इसीलिए माता मैं बता रहा हूं कोई किसी से प्यार नहीं करता। जिसके बाद भगवान भोलेनाथ माता को बताते हैं कि यह जो मुंडमाल है वह आपके ही शीश हैं। जब आपकी मृत्यु होती है तो मैं आपके सिर को अपने गले में धारण करता हूं यह मेरा आपसे प्रेम ही तो है। इन सारे घटनाक्रमों के बाद भगवान भोले शंकर माता पार्वती को अमर कथा सुनाते हैं जिसे एक शुक नामक तोता सुन लेता है और अमर हो जाता है यह सब कथाएं आज की भागवत में सुनाई गई। कथा 26 मई तक प्रतिदिन सुबह 9 बजे से दोपहर 1.30 बजे तक होगी। भोजन प्रसाद दोपहर डेढ़ बजे से प्रारम्भ होगा।

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