इंटरनेशनल डेस्क। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप के प्रशासन ने एक बड़ा फैसला लिया है। अब ऐसे लोगों को वीजा न देने के निर्देश जारी किए गए हैं, जो फैक्ट-चेकिंग, कंटेंट मॉडरेशन, कंप्लायंस या ऑनलाइन सेफ्टी से जुड़े काम करते हैं। इस बात की जानकारी समाचार एजेंसी Reuters ने अमेरिकी विदेश विभाग के एक मेमो के आधार पर दी है।
क्यों लिया गया यह फैसला
ट्रंप प्रशासन का कहना है कि सोशल मीडिया पर फ्री स्पीच (अभिव्यक्ति की आज़ादी) को बचाने के लिए यह कदम उठाया गया है। 6 जनवरी, 2021 को कैपिटल हिंसा के बाद ट्रंप के सोशल मीडिया अकाउंट्स पर लगे बैन का हवाला देते हुए सरकार ने कहा कि ऐसे काम करने वाले लोग “सेंसरशिप” में शामिल होते हैं।
सबसे ज़्यादा असर किस पर पड़ेगा
यह प्रतिबंध सभी वीजा कैटेगरी पर लागू है, लेकिन सबसे ज्यादा फोकस H-1B वीजा पर रखा गया है। H-1B वही वीजा है जिससे हजारों भारतीय टेक कर्मचारी हर साल अमेरिका में नौकरी करते हैं। भारत जैसे देशों के टेक्नोलॉजी वर्कर्स पर बड़ा असर पड़ सकता है।
खासकर वे लोग जो सोशल मीडिया कंपनियों, न्यूज प्लेटफॉर्म या किसी भी टेक कंपनी में ट्रस्ट-ऐंड-सेफ्टी, फैक्ट-चेकिंग, कंटेंट रिव्यू, पॉलिसी कंप्लायंस जैसे रोल में काम करते हैं।
कैसे की जाएगी जांच
अमेरिकी कांसुलर अधिकारी अब वीजा इंटरव्यू में आवेदक की जॉब हिस्ट्री. LinkedIn प्रोफाइल, सोशल मीडिया अकाउंट, पुरानी नौकरी की ज़िम्मेदारियां को ध्यान से जांचेंगे। अगर किसी भी तरह के काम में आवेदक को ऑनलाइन सेंसरशिप में शामिल पाया गया, तो उसका वीजा अयोग्य (ineligible) माना जा सकता है।
ट्रंप प्रशासन का पक्ष
सरकार का कहना है कि सोशल मीडिया कंपनियां अमेरिकी नागरिकों की आवाज दबाती हैं। ऐसे फैसलों से फ्री स्पीच को खतरा होता है। इसलिए “सेंसरशिप करने वालों” को देश में एंट्री न देने की नीति बनाई जा रही है