धर्म: हर साल सावन महीने की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि वाले दिन नाग पंचमी मनाई जाती है। यह दिन आमतौर पर हरियाली तीज के दो दिन बाद आता है। इस साल नाग पंचमी 29 जुलाई यानी की आज मनाई जा रही है। यह दिन भगवान शिव और नाग देवता की पूजा के लिए समर्पित होता है। ऐसा माना जाता है कि सांपों की पूजा करने से नाग देव प्रसन्न होते हैं और बुराई व सांपों के भय का नाश होता है। इसलिए महिलाएं नाग पंचमी वाले दिन भाईयों और परिवार की भलाई के लिए नाग देव का पूजन करती हैं।
मान्यताओं के अनुसार नाग पंचमी वाले दिन नाग देवता की उपासना के साथ भगवान शिव की पूजा और उनका रुद्राभिषेक करना भी बहुत ही शुभ माना जाता है। इससे जिन जातकों के जीवन में कालसर्प है वो खत्म हो जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, नागों को भगवान शिव के आभूषण के तौर पर जाना जाता है। ऐसे में महाकाल नगरी उज्जैन में स्थित नागचंद्रेशवर मंदिर भी इसी परंपरा का प्रतीक माना जाता है।
यह मंदिर पूरे साल में सिर्फ एक बार 24 घंटे के लिए नाग पंचमी वाले दिन ही खुलता है। आइए आपको आज इस मंदिर की पौराणिक मान्यता बताते हैं। नागचंद्रेशवर मंदिर उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर की तीसरी मंजिल पर स्थित है। इस मंदिर की खास बात यह है कि यह सिर्फ 24 घंटे के लिए ही श्रद्धालुओं के लिए खोला जाता है। दरअसल इस मंदिर को साल में एक बार खोले जाने को लेकर एक पौराणिक कथा बताई जाती है।
कथा की मानें तो सर्पराज तक्षक ने भगवान शिव को खुश करने के लिए घोर तपस्या की थी। सांपों के राजा तक्षक की तपस्या से खुश होकर भोलेनाथ ने उनको अमरता का वरदान दिया था परंतु इस वरदान को पाने के लिए बाद भी सांपों के राजा तक्षक खुश नहीं थे। उन्होंने भगवान शिव से कहा कि वो हमेशा उनके सानिध्य में ही रहना चाहते हैं इसलिए उन्हें महाकाल वन में ही रहना दिया जाए।
भगवान भोलेनाथ ने उन्हें महाकाल वन में रहने की अनुमति देते हुए आशीर्वाद भी दिया की उन्हें एकांत में विघ्न न हो इसी कारण से ही साल में एक बार सिर्फ नाग पंचमी के दिन ही मंदिर खोला जाएगा। श्री नागचंद्रेश्वर का दुर्लभ रुप श्री महाकालेशवर मंदिर के तीसरे तल पर स्थापित है जिसको नागराज तक्षक का निवास भी कहा जाता है। मान्यताओं के अनुसार, इस मंदिर में नागचंद्रेश्वर के दर्शन के बाद ही व्यक्ति किसी भी तरह के सर्प दोष से मुक्त हो जाता है।
नागचंद्रेशवर मंदिर के कपाट खोलने के साथ ही त्रिकाल पूजा का भी विधान है। त्रिकाल यानी की तीन अलग-अलग समय करने वाली पूजा इसमें पहली पूजा मध्य रात्रि 12 बजे पट खुलने के बाद महानिर्वाणी अखाड़े के द्वारा की जाती है। दूसरी पूजा नाग पंचमी के दिन दोपहर 12 बजे प्रशासन के द्वारा अधिकारियों के द्वारा की जाती है। तीसरी पूजा शाम को 7:30 बजे भगवान महाकाल की संध्या आरती के बाद मंदिर समिति की ओर से महाकाल मंदिर के पुरोहित पुजारी करते हैं। इसके बाद रात बारह बजे आरती के बाद मंदिर के पट फिर से एक साल के लिए बंद हो जाते हैं।
मंदिर की मान्यता
हर साल रात को 12 बजे नागचंद्रेश्वर मंदिर के कपाट खुलते ही श्रद्धालुओं का तांता लगना शुरु हो जाता है। मंदिर में सालों से महानिर्वाणी अखाड़े मंदिर के कपाट खोलने की परंपरा निभाते रहे हैं इसके अतंर्गत शैव मत के साथ नारियल बांध कर पूजन विधि खत्म करते हैं और नागचंद्रेश्वर भगवान के जयघोष के साथ मंदिर के कपाट आम लोगों के लिए खोल देते हैं।