सेहत: दुनिया में हर साल टीबी के नए मरीजों में से एक तिहाई मरीज सिर्फ दक्षिण-पूर्व एशिया में ही दिखते हैं। यह हिस्सा आबादी के लिहाज से दुनिया का सिर्फ चौथा हिस्सा है परंतु टीबी का बोझ यहां अनुपात से कहीं ज्यादा है। कुछ समय पहले जारी की गई रिपोर्ट में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस स्थिति पर चिंता जताई है। डब्ल्यूएचओ ने देशों से बीमारी को खत्म करने की दिशा में भी तेज कार्रवाई की है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की ग्लोबल ट्यूबरकुलोसिस रिपोर्ट 2025 के अनुसार, साल 2024 में करीबन 10.7 मिलियन लोग टीबी से इंफेक्टेड हुए हैं। वहीं 12.3 लाख लोगों की मौत हो गई है। इनमें सबसे ज्यादा केस भारत में करीबन 2.71 मिलियन सामने आए हैं। इसके बाद बांग्लादेश में (3.84 लाख), म्यांमार (2.63 लाख), थाईलैंड (1.04 लाख) और नेपाल (67 हजार) का नंबर आता है।
WHO ने किया अलर्ट
विश्व स्वास्थ्य संगठन साउथ-ईस्ट एशिया की ऑफिसर ने कहा कि टीबी अब भी इस क्षेत्र में स्वास्थ्य सुरक्षा और विकास के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है। सबसे ज्यादा असर इसका गरीब आबादी को हो रहा है। उनके अनुसार, बीमारी की रोकथाम, शुरुआती पहचान, तेज इलाज और मजबूत प्राथमिक स्वास्थ्य ढांचा ही सबसे असरदार उपाय रहेगा परंतु इन कदमों को बड़े पैमाने पर अब और तेजी से लागू करने की जरुरत है। रिपोर्ट्स के अनुसार, साल 2024 में क्षेत्रीय तस्वीर काफी असमान थी। म्यामांर और तिमोर-लेस्ते में टीबी दर अभी भी काफी ज्यादा है।
हर एक लाख की आबादी पर 480 से 500 मामले सामने आए हैं वहीं बांग्लादेश, भूटान, भारत, नेपाल और थाइलैंड में यह दर 146 से 269 के बीच में रहा है। श्रीलंका और मालदीव अभी भी टीबी के मामले में इतने ज्यादा प्रभावित नहीं है।
दक्षिण-पूर्व एशिया में ज्यादा हैं मामले
दक्षिण-पूर्व एशिया में सबसे बड़ी चिंता ड्रग रेजिस्टेंट टीबी बना हुआ है। साल 2024 में यहां ऐसे 1.5 लाख नए मामले अनुमानित है वहीं 2015 के बाद से क्षेत्र में टीबी इंफेक्शन के दर में 16 प्रतिशत गिरावट भी आई है। यह वैश्विक औसत से 12 प्रतिशत बेहतर है परंतु मौतों की कमी की रफ्तार अभी भी धीमी है। क्षेत्र में टीबी इन्सीडेंस रेट 201 प्रति लाख है। वहीं वैश्विक औसत 131 से कहीं ऊपर है। कुछ देशों में अच्छी प्रगति भी नजर आई है। बांग्लादेश, भारत और थाईलैंड ने कुछ केसों की तुलना में ज्यादा मरीजों की पहचान की है। इससे डिटेक्शन गैप कम हुआ है। टीबी से होने वाली मौतों में भी 2015 के मुकाबले कमी आई है।
कोविड के बाद अब टीबी के इलाज में बेहतर अनुभव मिल रहा है। एचआईवी मरीजों और घर के संपर्कों के लिए प्रिवेंटिव थेरेपी में भी तेजी से बढ़ोतरी हुई है।