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श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व और व्रत होगा 15 अगस्त को – पं. शशिपाल डोगरा

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कहा – इस बार बिना रोहिणी नक्षत्र के मनाया जाएगा श्रीकृष्ण जन्मोत्सव

बोले – गृहस्थ लोगों को व्रत पूजन, चंद्रमा को अर्घ देना, झूला झुलाना आदि के लिए यही दिन शुभ 

ऊना/सुशील पंडित: भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव देशभर में श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है। परंपरागत रूप से, यह पर्व अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र के संयोग में मनाया जाता है, किंतु इस वर्ष यह दुर्लभ संयोग नहीं बन पा रहा है। इस बार श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व 15 अगस्त को होगा और उसी दिन ही व्रत भी होगा।

वशिष्ठ ज्योतिष सदन के अध्यक्ष एवं जाने-माने अंक ज्योतिषाचार्य पंडित शशि पाल डोगरा ने बताया कि इस वर्ष अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र का मिलन नहीं हो रहा है। रोहिणी नक्षत्र अष्टमी के समाप्त होने के बाद प्रारंभ होगा, जिससे जन्माष्टमी की मध्यरात्रि पूजा अष्टमी तिथि में तो होगी, लेकिन रोहिणी नक्षत्र में नहीं। इसलिए इस बार श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व 15 अगस्त को ही मनाया जाएगा और उसी दिन व्रत भी होगा। उनका कहना है कि गृहस्थ लोगों को व्रत पूजन, चंद्रमा को अर्घ देना, झूला झुलाना आदि के लिए यही दिन शुभ होगा।

पंडित डोगरा कहते हैं कि ऐसी स्थिति में गृहस्थ जन अष्टमी तिथि प्रधान मानकर ही व्रत और पूजन करते हैं। भले ही रोहिणी नक्षत्र न हो, लेकिन भक्ति और निष्काम भाव से किया गया पूजन ही भगवान को प्रिय है। तिथि और नक्षत्र के योग से अधिक महत्त्व आस्था का होता है।

तिथि और समय

अष्टमी तिथि प्रारंभ: 15 अगस्त 2025, रात्रि 11:49 बजे

 अष्टमी तिथि समाप्त: 16 अगस्त 2025, रात्रि 9:34 बजे

रोहिणी नक्षत्र प्रारंभ: 17 अगस्त 2025, प्रात: 4:38 बजे

 रोहिणी नक्षत्र समाप्त: 18 अगस्त 2025, प्रातः: 3:17 बजे

इसलिए 15 अगस्त 2025 शुक्रवार को जन्माष्टमी का पर्व मनाया जाएगा।

शास्त्रीय दृष्टिकोण: पं. शशिपाल डोगरा के मुताबिक, श्रीमद्भागवत, श्री भविष्य, अग्नि आदि पुराणों तथा अन्य धर्मग्रंथों के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण का अवतार भाद्रपद कृष्ण अष्टमी तिथि, बुधवार, रोहिणी नक्षत्र और अर्धरात्रि के समय हुआ। कई बार यह संयोग नहीं बन पाता, इसलिए व्रत -निर्णायक धर्मग्रंथों ने स्मार्त और वैष्णव- दो अलग तिथियों का उल्लेख किया है।

स्मार्त परंपरा (अधिकतर गृहस्थ) – सप्तमी युक्त अर्धरात्रि व्यापिनी अष्टमी को व्रत करते हैं। यह परंपरा पंजाब, हिमाचल, जम्मू-कश्मीर, हरियाणा, दिल्ली और उत्तर-पश्चिमी राज्यों में प्रचलित है।

 वैष्णव परंपरा – उदयकालिक अष्टमी (नवमी युक्त) को ही जन्मोत्सव मानती है, चाहे अर्धरात्रि में अष्टमी हो या न हो। यह परंपरा मथुरा, वृंदावन, उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र आदि क्षेत्रों में अधिक है।

पूजा विधि

1.प्रात: स्नान के पश्चात व्रत का संकल्प लें।

2.दिन भर फलाहार करें और भगवान के भजन-कीर्तन में समय बिताएं।

3.रात्रि के निशीथ काल में भगवान श्रीकृष्ण का पंचामृत स्नान कराएं, नए वस्त्र और आभूषण पहनाएं।

4.माखन-मिश्री, धनिया-चूर्ण, तुलसी दल और पीले फूल अर्पित करें।

5.जन्म के समय शंख, घंटा और जयकारों से वातावरण को गूंजाएं।

6.व्रत का पारायण अगले दिन प्रात: दान-दक्षिणा और प्रसाद वितरण के साथ करें।

तिथि और नक्षत्र के संयोजन में अंतर होने के बावजूद, जन्माष्टमी का मुख्य भाव भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति, प्रेम और लीला का स्मरण है। आस्था, निष्ठा और श्रद्धा से किया गया पूजन ही इस पावन पर्व की आत्मा है।

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