नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के आरक्षण में कोटा बनाने के मामले में बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा है कि जनजाति के कोटे में भी कोटा हो सकता है। चीफ जस्टिस की अगुवाई वाली सात सदस्यों की बेंच ने 2004 के सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच का फैसला पलट दिया है। चिन्नैया केस में कोर्ट ने 2004 में अनुसूचित जातियों के बीच कोटे में कोटा के प्रावधान को खारिज कर दिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि अनुसूचित जाति (SC) एक सजातीय ग्रुप नहीं है और सरकारें इसके 15 प्रतिशत के आरक्षण में ज्यादा उत्पीड़न और शोषण का सामना करने वाली जातियों को फायदा पहुंचाने के लिए इसमें उप-वर्ग बना सकती हैं। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी, पंकज मित्तल, मनोज मिश्रा, सतीश सी शर्मा की बेंच ने सुप्रीम कोर्ट के 2004 के फैसले को पलट दिया है। 2004 के चिन्नैया केस में शीर्ष कोर्ट ने अनुसूचित जाति के आरक्षण में सब-कैटेगिरी के खिलाफ अपना फैसला दिया था।
कोर्ट ने कहा कि अनुसूचित जातियों के बीच सब कैटेगिरी उनके उत्पीड़न के आधार पर होनी चाहिए। इसका प्रावधान राज्य शैक्षणिक संस्थानों, सरकारी नौकरियों में उनके प्रतिनिधित्व से जुड़े डाटा के आधार पर कर सकते हैं। 7 जजों की बेंच ने 6-1 के बहुमत से अपना फैसला सुनाया है। हालांकि जस्टिस बेला त्रिवेदी ने इस पर अपनी सहमति नहीं जताई। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में यह स्पष्ट किया कि किसी भी राज्य द्वारा अनुसूचित जाति की किसी भी जाति को आरक्षण के लाभ से वंचित नहीं किया जा सकता।