ऊना/सुशील पंडित: भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान ऊना के परिसर में हिंदी पखवाड़ा के अन्तर्गत बीते सोमवार को एक भव्य काव्य-गोष्ठी ‘कलमकृति’ का आयोजन संस्थान के निदेशक प्रो० मनीष गौड़ के मार्गदर्शन में डॉ० सत्येन्द्र कुमार (हिंदी भाषा – नोडल अधिकारी, ट्रिपल आईटी ऊना) की देख रेख में सम्पन्न हुआ।
कार्यक्रम की शुरुआत संस्थान के निदेशक प्रो० मनीष गौर ने पधारे कवियों का स्वागत करते हुए की। उन्होंने अंगवस्त्र और हिमाचली कैप पहनाकर तथा पर्यावरण संदेश के रूप में पौधे भेंटकर कवियों का सम्मान किया। अपने स्वागत उद्बोधन में उन्होंने मातृभाषा हिंदी के महत्व पर विचार रखते हुए कहा कि हिंदी न केवल संवाद की भाषा है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और संवेदनाओं की आत्मा है।
मुख्य आकर्षण कार्यक्रम में डॉ० देवकला शर्मा ने हिंदी भाषा की महत्ता पर केंद्रित अपनी कविता से श्रोताओं में जोश भर दिया। उनकी पंक्तियाँ – ‘अंग्रेज़ी ए फॉर ऐपल से शुरू होती है और जेड फ़ॉर ज़ेब्रा पर ख़त्म होती है, जबकि हमारी हिंदी अ से अनपढ़ से शुरू होकर ज्ञ से ज्ञानी तक पहुँचाती है’ – ने विशेष प्रशंसा बटोरी।
दर्पण संस्था के अध्यक्ष अशोक कालिया जी और कोषाध्यक्ष रामपाल शर्मा जी ने अपनी ग़ज़लों को तरन्नुम के साथ प्रस्तुत कर महफिल चार चाँद लगा दिए। उनकी भावपूर्ण प्रस्तुति ने श्रोताओं को झूमने पर मजबूर कर दिया।
सामाजिक चेतना की कविताएँ – प्रो० योगेश चन्द्र सूद, डॉ० कल्पना रानी, अलका चावला और कुलदीप शर्मा जी ने सामाजिक ताने-बाने पर आधारित अपनी कविताओं के माध्यम से श्रोताओं को गहन चिंतन के लिए प्रेरित किया। उनकी रचनाओं में समाज की विसंगतियों और जीवन के यथार्थ का सुंदर चित्रण था।इन सबके बीच एक बहुत ही कम उम्र के नौनिहाल – मानस साकरे ने हनुमान चालीसा का पाठ करके सबका दिल जीत लिया।
डॉ० रजनीकांत शर्मा जी की ग़ज़ल ‘बाहर-भीतर बड़ी घुटन है, घर-घर में जारी टूटन है’ और संदीप जी के गीत ‘ख़ुद से अपना मकां बनाना, जैसा भी हो, अच्छा लगता है’ ने श्रोताओं की संवेदनाओं को गहराई से छुआ और उनकी धड़कनों को आंदोलित कर दिया। अन्त में डॉ० सत्येन्द्र कुमार की ग़ज़ल ‘की जो नफ़रत, मिलेगी हज़ारों गुना, प्यार मिलता कभी दो गुना भी नहीं’ सुनकर श्रोताओं ने ख़ूब लुत्फ़ उठाया।
हिंदी पखवाड़ा का महत्व – यह आयोजन हिंदी पखवाड़ा के अंतर्गत आयोजित किया गया, जो हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार और साहित्यिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से मनाया जाता है। संस्थान द्वारा इस प्रकार के आयोजनों से क्षेत्रीय साहित्यकारों को मंच मिलता है और हिंदी साहित्य के प्रति युवा पीढ़ी में रुचि जागृत होती है। कार्यक्रम में संस्थान के युवाओं – तनिष्क, प्राची, आशुतोष, यश गोयल, दीप्ति माहेश्वरी, वंशिव गर्ग, अजीत सिंह, हरमन व शौर्य सेठ ने भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया और अपनी काव्य रचनाओं की प्रस्तुति दी, जिन्हें पधारे कवियों ने प्रशस्ति पत्र प्रदान कर प्रोत्साहित किया। इस कार्यक्रम में संकाय सदस्य व भारी संख्या में छात्र श्रोताओं के रूप में उपस्थित रहे।
समापन पर प्रो० मनीष गौर ने कहा कि “हिंदी हमारी संस्कृति और पहचान की धरोहर है। साहित्य और काव्य गोष्ठियाँ न केवल भाषा के संरक्षण का माध्यम हैं, बल्कि युवा पीढ़ी को रचनात्मकता और संवेदनशीलता की ओर भी प्रेरित करती हैं। काव्य-गोष्ठी ‘कलमकृति’ की सफलता ने यह प्रमाणित किया कि हिंदी साहित्य और काव्य परंपरा आज भी जन-जन के हृदय में जीवंत है।