नई दिल्ली: पाकिस्तान में न्यायपालिका और संविधान को लेकर विवाद और भी बढ़ता जा रहा है। शनिवार को लाहौर हाई कोर्ट के सीनियर जज जस्टिस शम्स महमूद मिर्जा ने 27वें संवैधानिक संशोधन के विरोध में अपना इस्तीफा सौंप दिया है। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट के सीनियर जज, जस्टिस सैयद मनसूर अली शाह और जस्टिस अथर मीनल्लाह भी इसी संशोधन को संविधान और न्यायपालिका पर हमला बताते हुए इस्तीफा दे चुके हैं।
मुनीर कर रहे हैं संविधान पर कब्जा
जस्टिस मिर्जा मार्च 2028 में सेवानिवृत्त होने वाले थे परंतु उन्होंने संशोधन को देश की न्याय व्यवस्था के लिए खतरनाक बताया। ऐसे में उन्होंने अपना पद छोड़ दिया। उनका यह कदम पाकिस्तान के न्यायिक तंत्र में एक ऐतिहासिक मोड़ भी माना जा रहा है क्योंकि यह पहला मौका है जब किसी हाई कोर्ट के जज ने संशोधन के विरोध में इस्तीफा दिया है। पाकिस्तान में संवैधानिक बदलाव को लेकर यहां के चीफ मार्शन आसिम मुनीर पर भी आरोप लग रहे हैं। उन पर आरोप लगा है कि वो संविधान पर कब्जा करने की कोशिश कर रहे हैं।
संवैधानिक संशोधन के कारण हो रहा विवाद
विवाद का केंद्र 27वां संवैधानिक संशोधन है। इसके अंतर्गत नई फेडरल कॉन्स्टिट्यूशनल कोर्ट बनाई गई है। यह अदालत अब संविधान से जुड़े हुए सभी बड़े मामलों की सुनवाई करेगी। ऐसे में देश की वर्तमान सुप्रीम कोर्ट को सिर्फ सिविल और आपराधिक मामलों तक ही सीमित कर दिया है। न्यायधीशों का यह कहना है कि यह संशोधन सुप्रीम कोर्ट को दूसरी पंक्ति की अदालत बना देगी।
लोकतंत्र संरचना की जड़ें होगी कमजोर
जस्टिस मनसूर अली शाह ने अपने इस्तीफे में संशोधन को संविधान पर गंभीर हमला बताया है। उनके अनुसार, यह बदलाव न्यायपालिका को कार्यपालिका के नियंत्रण में धकेल देगा और पाकिस्तान की लोकतांत्रिक संरचना की जड़ें कमजोर कर देगा। संशोधन में एक और विवादित मुद्दा यह भी है कि इसके अंतर्गत आर्मी चीफ जनरल आसिम मुनीर को 2030 तक चीफ ऑफ डिफेंस फोर्सेज के रुप में पद पर बने रहने की अनुमति दे दी गई है।
ऐसे में उनके आलोचकों का यह मानना है कि यह सेना की भूमिका और शक्तियों को बढ़ाएगा। अंतरराष्ट्रीय संस्था इंटरनेशनल कमीशन ऑफ जुरिस्ट्स ने भी इस संशोधन को न्यायिक स्वतंत्रता पर खुला हमला बताया है।