धर्मः आज जहां देश भर में लोगों द्वारा दशहरा पूरे उत्साह के साथ मनाया जाएगा और भगवान राम की ओर से रावण वध के अवसर पर लोग राम नाम के जयकारें लगाएंगे, लेकिन देश का एक ऐसा भी इलाका है जहां, दशहरा आम तरीके से नहीं मनाया जाएगा और वहां रावण की पूजा होगी।
यह जगह है जोधपुर। वहां रावण के पुतलों का दहन होगा, लेकिन जब जोधपुर में दहन होगा तो रावण के चबूतरे से करीब 5 किमी दूर चांदपोल के पास कुछ लोग शोक मना रहे होंगे। यह लोग श्रीमाली ब्राह्मण के दवे गोधा ब्राह्मण, यही गोत्र रावण का है। यह रावण के वंशज के रूप में जाने जाते हैं, इसलिए वे दशहरे के दिन शोक रखते हैं। किला रोड पर रावण का मंदिर बना है। दशहरे के दिन रावण के मंदिर में पूजा-अर्चना भी होती है। इस मंदिर में रावण और मंदोदरी की मूर्ति लगी है। इस मंदिर का निर्माण भी गोधा गौत्र के श्रीमाली ब्राह्मणों की ओर से करवाया गया है। वहीं दहन के बाद स्नान कर अपनी अपनी जनेऊ भी बदलते हैं।
जानकारी देते पंडित ने बताया कि हम रावण के वंशज दवे गौधा गोत्र के लोग कभी उनका दहन नहीं देखते हैं, क्योंकि वो हमारे पूर्वज हैं। अश्वनी मास की दशमी को श्री राम ने रावण का वध किया था। इस दिन हम शोक रखते हैं। उन्होंने बताया कि कोरोना काल में दहन नहीं हुआ था तब भी शोक का क्रम जारी था। हम रावण के गुणों की पूजा करते हैं, रावण बहुत ज्ञानी और कई कलाओं में निपुण और महान शिव भक्त था, इसलिए इनके दर्शन से व्यक्ति की बुद्धि में तीव्रता आती है।
ये है मान्यता
मान्यता है कि मायासुर ने ब्रह्मा के आशीर्वाद से अपसरा हेमा के लिए मंडोर शहर का निर्माण किया था। दोनों की संतान का नाम मंदोदरी रखा। पौराणिक कथाओं के अनुसार मंडोर का नाम मंदोदरी के नाम पर रखा गया है। मंदोदरी बहुत सुंदर थी, लेकिन मंदोदरी के योग्य वर नहीं मिला तो अंत में रावण पर मायासुर की खोज समाप्त हुई. लंका के राजा, लंकाधिपति रावण जो स्वयं एक प्रतापी राजा होने के साथ-साथ एक गुणी विद्वान भी था, जिसके साथ मंदोदरी का विवाह हुआ। कहा जाता है कि जब विवाह हुआ था तब लंका से बाराती बन आए दवे गोधा गोत्र के कुछ लोग यहीं रह गए थे, जिनकी पढ़ियां वर्तमान में वंशज के रूप में जानी जाती हैं।
इस तरीके से होती है पूजा
पंडित के अनुसार जब पुतला जलाया जाता है, तो दहन के बाद स्नान करना अनिवार्य होता है। पूर्व में जलाशय होते थे तो हम सभी वहां स्नान करते थे, लेकिन आजकल घरों के बाहर स्नान किया जाता है। जनेऊ बदला जाता है। इसके बाद मंदिर में रावण व शिव की पूजा की जाती है। इस दौरान मंदोदरी की भी पूजा होती है। इसके बाद प्रसाद ग्रहण किया जाता है। उनके अनुसार गोधा गोत्र वाले रावण का दहन कभी नहीं देखते हैं। शोक की प्रथा लंबे समय से चली आ रही है।