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Punjab News: RSS के साथ GNDU के VC की नजदीकी को लेकर छात्र संगठनों में विरोध, रखी ये मांग, देखें वीडियो

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अमृतसरः गुरु नानक देव विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर डॉ. करमजीत सिंह द्वारा हाल ही में आरएसएस के एक कार्यक्रम में भाग लेने पर विभिन्न छात्र संगठनों ने कड़ा विरोध जताया है। आज छात्रों ने श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार को एक चिट्ठी लिखकर मामले में तुरंत कार्रवाई करने की मांग की है। मीडिया को जानकारी देते हुए छात्र संगठन के नेता जसकरण सिंह ने बताया कि डॉ. करमजीत सिंह ने हाल ही में आरएसएस द्वारा काइमटोर में आयोजित ज्ञान समय मिलन कार्यक्रम में हिस्सा लिया।

उन्होंने वहां गुरु नानक देव विश्वविद्यालय द्वारा किए गए कार्यों की रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें सिख धर्म और भारतीय ज्ञान प्रणाली को जोड़ने वाले पाठ्यक्रमों का उल्लेख था। इसके अलावा, उन्होंने सिख चेयर के संदर्भ में वेदांत और सिख धर्म के बीच संबंध स्थापित करने का प्रयास भी किया। छात्रों के अनुसार, ये सभी कदम सिख धर्म के मूल सिद्धांतों के खिलाफ हैं। उन्होंने विरोध जताते हुए कहा कि यूनिवर्सिटी श्री गुरु नानक देव के नाम पर 1969 में स्थापित हुई थी। लेकिन यह सिख धर्म के प्रचार की जगह आरएसएस की विचारधारा को बढ़ावा देने वाला केंद्र बनता जा रहा है।

चिट्ठी में यह भी उल्लेख किया गया कि पिछले दशकों में श्री अकाल तख्त साहिब द्वारा तीन बार आरएसएस के खिलाफ सिख समुदाय को चेतावनी दी जा चुकी है। जिसमें 2001, 2002 और 2004 का जिक्र किया गया। इन सभी आदेशों में आरएसएस को सिख धर्म की जड़ों पर हमला करने वाली संस्था करार दिया गया। छात्र संगठनों की मांग है कि अब चौथा, ताजा और स्पष्ट आदेश जारी करके सिख समुदाय को दिशा दी जाए। चिट्ठी में GNDU के वीसी द्वारा की गई नियुक्तियों पर भी सवाल उठाए गए, जहां आरएसएस के करीबी या बाहरी राज्यों से आए व्यक्तियों को प्राथमिकता देने की बात कही गई।

उन्होंने कहा कि पंजाब के अपने योग्य अकादमिक प्रोफेसरों की उपेक्षा करके आरएसएस पृष्ठभूमि वाले लोगों को नियुक्त किया जा रहा है, जो गंभीर चिंता का विषय है। जसकरण सिंह ने अंत में जत्थेदार सिंह साहिब से स्पष्ट रुख अपनाने की मांग की। उन्होंने मांग की कि GNDU के वर्तमान वीसी को तत्काल हटा दिया जाए और भविष्य में किसी भी संस्था में आरएसएस से जुड़े व्यक्तियों की नियुक्ति पर पूरी रोक लगाई जाए। उन्होंने सवाल किया कि अगर सिख संस्थाओं को चलाने के लिए आरएसएस के अधीन जाना पड़े, तो यह सिख धर्म की आत्मिक गुलामी से कम नहीं होगी।

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