फिरोजपुरः पहलगाम हमले के बाद भारत-पाकिस्तान में बढ़ते तनाव के बीच फिरोजपुर कैंट एरिया व सीमावर्ती गांवों में ब्लैकआउट की रिहर्सल को लेकर सायरन की जाएगी। इस दौरान शाम 7 बजे सिविल डिफेंस के सायरन की आवाज़ देकर जांच की जाएगी। मामले की जानकारी देते हुए डिप्टी कमिश्नर दीपशिखा ने बताया कि 7 मई यानी कल होने वाली ब्लैकआउट की रिहर्सल से पहले सिविल प्रशासन द्वारा की जा रही कड़ी तैयारियां की जा रही है। इसी को लेकर आज शाम 7 से सवा 7 बजे तक जिले में लगे सिविल डिफेंस के सायरन की जांच की जाएगी। एक बार उन्हें बजाकर देखा जाएगा कि वे सही काम कर रहे हैं या नहीं।
क्योंकि कल ब्लैक आउट मॉक ड्रिल से पहले सायरन बजाए जाएंगे ताकि लोग सायरन की आवाज सुनकर अपने घरों की लाइटें बंद कर सकें। इसको लेकर पूरी तैयारी शुरू कर दी गई है। यह ब्लैक आउट की मॉक ड्रिल कल रात नौ से साढ़े नौ बजे के दौरान की जाएगी। इस दौरान डीसी ने लोगों से पैनिक ना होने की अपील की है। बता देंकि युद्ध के समय ब्लैकआउट एक ऐसी रणनीति है, जिसमें कृत्रिम रोशनी को न्यूनतम किया जाता है। ताकि दुश्मन के विमानों या पनडुब्बियों को निशाना ढूंढने में कठिनाई हो। यह प्रथा मुख्य रूप से 20वीं सदी में द्वितीय विश्व युद्ध (1939-1945) के दौरान प्रचलित थी। ब्लैकआउट नियम घरों, कारखानों, दुकानों और वाहनों की रोशनी को नियंत्रित करते थे, जिसमें खिड़कियों को ढंकना, स्ट्रीट लाइट्स बंद करना। वाहनों की हेडलाइट्स पर काला रंग या मास्क लगाना शामिल था।
ब्लैकआउट का मुख्य उद्देश्य दुश्मन के हवाई हमलों को मुश्किल बनाना था। रात के समय शहरों की रोशनी दुश्मन के पायलटों के लिए निशाना ढूंढने में सहायक होती थी। उदाहरण के लिए, 1940 के लंदन ब्लिट्ज के दौरान, जर्मन लूफ्टवाफे ने ब्रिटिश शहरों पर रात में बमबारी की। रोशनी को कम करके नेविगेशन और टारगेटिंग को जटिल किया गया। तटीय क्षेत्रों में ब्लैकआउट जहाजों को दुश्मन की पनडुब्बियों से बचाने में मदद करता था, जो तट की रोशनी के खिलाफ जहाजों की सिल्हूट देखकर हमला करते थे।
1 सितंबर, 1939 को ब्रिटेन में युद्ध की घोषणा से पहले ब्लैकआउट नियम लागू किए गए। सभी खिड़कियों और दरवाजों को रात में भारी पर्दों, कार्डबोर्ड या काले रंग से ढंकना अनिवार्य था ताकि कोई भी रोशनी बाहर न निकले। सरकार ने इन सामग्रियों की उपलब्धता सुनिश्चित की। सड़क की सभी बत्तियां बंद कर दी जाती थीं। या उन्हें काले रंग से आंशिक रूप से रंगा जाता था ताकि रोशनी नीचे की ओर रहे। लंदन में 1 अक्टूबर, 1914 को मेट्रोपॉलिटन पुलिस कमिश्नर ने बाहरी रोशनी को बंद करने या मंद करने का आदेश दिया था।