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Punjab News: अमेरिका डिपोर्ट मामले में पुलिस ने एजेंट के खिलाफ लिया एक्शन, देखें वीडियो

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अमृतसरः अमेरिका से 104 भारतीयों को डिपोर्ट किया गया। इस मामले को लेकर ससंद में मुद्दा गरमाया हुआ है। दरअसल, हाथों में हथकड़ियां और पैरों में जंजीरे बांधकर डिपोर्ट किए जाने को लेकर विपक्ष ने ससंद में सख्त निंदा की है। इस मामले को लेकर अब पुलिस ने सख्त एक्शन लेते हुए एजेंट के खिलाफ कार्रवाई की है।

मिनी बस चलाने वाले अमृतसर के गांव सलेमपुर के दलेर सिंह गांव के नजदीक स्थित गांव कोटली के एजेंट सतनाम सिंह के झांसे में ही फंसकर अमेरिका गया था। उसने अमेरिका जाने के लिए 60 लाख रुपये दिए थे, जबकि उसकी बात 45 लाख रुपये में हुई थी। एजेंट ने उसे ब्राजील में किडनैप करवा दिया और 15 लाख रुपये की मांग परिवार के समक्ष रख दी। एजेंट ने उसकी पत्नी चरनजीत कौर को फोन किया कि 15 लाख रुपये और भेजो, तभी उसका पति अमेरिका में जा सकेगा। फिर क्या था पत्नी ने अपने गहने गिरवी रखे और अपने रिश्तेदारों से कर्ज लिया और वह पैसे एजेंट को भिजवाए। पैसे देने के बावजूद दलेर सिंह कई यातनाएं सहकर अमेरिका में पहुंचा था। उसे वहां जाकर उम्मीद थी कि अब उसका बुरा समय टल गया और वह काम करके अपना सारा कर्ज लौटा देगा।

दलेर सिंह बताया कि मैक्सिको से होते हुए तेजवाना बाॅर्डर पर पहुंचा और वहीं से उसकी अमेरिका में एंट्री हुई। यह 20 दिन उसके सबसे खतरनाक दिनों में से थे। खाना भी बड़ी मुश्किल से मिलता था। कई दिन तक तो बिना खाना खाए ही पनामा के जंगलों में गुजरना पड़ा। कई बार तो पानी भी नहीं मिलता था। दलेर सिंह से मिलने गए एनआरआई मंत्री कुलदीप सिंह धालीवाल ने गांव कोटली के एजेंट सतनाम सिंह के खिलाफ कार्रवाई के आदेश दिए हैं। मंत्री ने डीएसपी इंद्रजीत सिंह को हिदायत दी कि पीड़ित के बयान कलमबद्ध करें और एजेंट सतनाम सिंह के खिलाफ कार्रवाई करे। उस पर मामला दर्ज करके जल्द से जल्द गिरफ्तार करने की हिदायत भी की गई है। धालीवाल ने कहा कि पंजाब सरकार एजेंटों के खिलाफ सख्ती करेगी।

मिली जानकारी के अनुसार अमेरिका से डिपोर्ट होकर वापिस पहुंचे जिले के दलेर सिंह निवासी सलेमपुर ने पुलिस को एजेंट के बारे में जानकारी दी। जिसके बाद थाना राजासांसी पुलिस ने दलेर सिंह को अवैध रूप से अमेरिका भेजने के मामले में एजेंट सतनाम सिंह पुत्र तरसेम सिंह निवासी कोटली खैरा के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया गया है। पुलिस द्वारा मामले की जांच की जा रही है। अमृतसर पहुंचने के बाद दलेर सिंह ने अपने खतरनाक और दर्दनाक सफर की कहानी साझा की, जो अवैध प्रवास (डंकी रूट) के जरिए अमेरिका पहुंचने की कोशिश में बिताए गए महीनों की असलियत को उजागर करती है। दलेर सिंह ने बताया कि उनका सफर 15 अगस्त 2024 को शुरू हुआ था, जब वे घर से निकले थे। एक एजेंट ने उन्हें भरोसा दिलाया था कि वह एक नंबर में उन्हें अमेरिका पहुंचा देगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। पहले उन्हें दुबई ले जाया गया और फिर ब्राजील पहुंचाया गया।

ब्राजील में उन्हें 2 महीने तक रोका गया। एजेंटों ने पहले वीजा लगवाने का आश्वासन दिया, लेकिन बाद में कहा कि वीजा संभव नहीं है और अब “डंकी रूट” अपनाना पड़ेगा। अंत में हमें कहा गया कि पनामा के जंगलों से होकर जाना होगा। इस रूट को निचला डंकी रूट कहा जाता है। हमारे पास कोई और विकल्प नहीं था। हमें हां करनी पड़ी और हम पनामा के जंगलों से अमेरिका के लिए निकल पड़े। दलेर सिंह ने पनामा के जंगलों को दुनिया के सबसे खतरनाक रास्तों में से एक बताया। 120 किलोमीटर लंबे जंगल को पार करने में साढ़े तीन दिन लगते हैं। हमें अपना खाना-पीना खुद लेकर चलना पड़ता था। जो फिल्में इस सफर पर बनी हैं, वे पूरी तरह सच्ची हैं। उन्होंने बताया कि उनके ग्रुप में 8-10 लोग थे, जिनमें नेपाल के नागरिक और महिलाएं भी शामिल थीं। हमारे साथ एक गाइड (डोंकर) था, जो रास्ता दिखाता था। लेकिन यह सफर इतना खतरनाक था कि हर कदम पर जान का खतरा बना रहता था।

पनामा के जंगल को पार करने के बाद वे मैक्सिको पहुंचे और वहां से अमेरिका के तेजवाना बॉर्डर की ओर बढ़े। लेकिन 15 जनवरी 2025 को उन्हें अमेरिकी अधिकारियों ने गिरफ्तार कर लिया। हमारे सारे सपने यहीं खत्म हो गए। हमें उम्मीद थी कि हम सही तरीके से अमेरिका पहुंचेंगे, लेकिन हमें ठगा गया। दलेर सिंह ने बताया कि इस पूरे सफर में लाखों रुपए खर्च हो गए, जिनमें से अधिकांश पैसे एजेंटों ने ठगे। हमें दो एजेंटों ने धोखा दिया, एक दुबई का और एक भारत का। हमें कहा गया था कि सब कुछ सही तरीके से होगा, लेकिन हमें खतरनाक रास्ते पर धकेल दिया गया। अमेरिका में गिरफ्तारी के बाद दलेर सिंह और अन्य लोगों को कैंप में रखा गया। अमेरिका में जो भी हुआ, वे नियमों के अनुसार हुआ। हम शुक्रगुजार हैं कि हम घर वापस आ गए। लेकिन जब हमें प्लेन में बैठाया गया तो हमें नहीं पता था कि हम भारत आ रहे हैं। हमारे हाथों में हथकड़ियां और पैरों में बेडियां थी। महिलाओं के साथ भी ऐसा ही किया गया। खाना खोने के लिए भी बेड़ियों को नहीं खोला गया। लेकिन बच्चों व माइनर के साथ ऐसा नहीं किया गया।

 

 

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