नंगल : 24 अक्तूबर को देशभर में मनाए जाने वाले दशहरा पर्व के दौरान रावण, मेधनाथ व कुंभकर्ण के पुतलों को भगवान राम द्वारा आग के हवाले किया जाता है। जिसके उपरांत बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक दशहरा पर्व संपन्न होता है। लेकिन आप को पता है कि रावण, मेधनाथ व कुंभकर्ण के पुतले बनाने में कारीगरों को कितनी कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। यूपी से लगभग एक दर्जन से भी अधिक आए कारीगर बीते लगभग 15 दिनों से श्री लक्ष्मी नरायण मन्दिर में इन विशालकाय पुतलों को बनाने में जुटे हुए है और खास बात यह भी है कि पुतले बनाने में लगे सभी कारीगर मुस्लिम समाज से आते है और इनके पूर्वजों ने इस काम को शुरू किया था।
जो पीढ़ी दर पीढी आगे बढ़ता गया। यही परिवार वर्ष 2005 से लगातार नंगल पंहुच कर इस काम को आगे बढ़ा रहा है। यहीं से जिला रूपनगर सहित पड़ोसी राज्य हिमाचल के विभिन्न शहरों में यहां भी दशहरा पर्व का मेल सजता है। वहां रावण, मेधनाथ व कुभकर्ण के पुतले बना कर भेजता है। इन कारीगरों की माने तो पुतले बनाने में आसाम से आए बांस की लकड़ी, सूतली, रंगीन पेपर, पराली के अलावा पटाखों का प्रयोग किया जाता है। इन कारीगरों ने कहा कि पुतलों का साईज देख कर ही इसके दाम तय किए जाते है।
यहां तक नंगल की बात है तो श्री सनातन धर्म सभा को तीन पुतले डेढ लाख रूपए में देने तय हुए है। कारीगर मोहम्मद जाहिर व मोहम्मद शाहिद ने कहा कि जब भी हम यहां आते है धर्म की सीमाओं से उपर उठ लोगों का भरपूर प्यार उन्हें मिलता है। इन कारीगरों ने कहा कि यह काम मात्र दशहरा पर्व तक ही होता है और उसके उपरांत वह फ्लावर डैकोरेशन का काम करते है।
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