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Punjab: चुनाव से एक दिन पहले बगावत करने वाले नेताओं को कांग्रेस की चेतावनी 

श्री मुक्तसर साहिबः लोकसभा चुनाव के लिए वोटिंग से एक दिन पहले कांग्रेस ने बगावत करने वाले नेताओं को चेतावनी दी है। साथ ही मुक्तसर से पूर्व विधायक स्व. सुख दर्शन सिंह मराड़ के बेटे राज बलविंदर सिंह मराड़ को पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने के आरोप में कांग्रेस पार्टी से बाहर कर दिया है। जानकारी के मुताबिक, फिरोजपुर से कांग्रेस के प्रत्याशी शेर सिंह घुबाया ने प्रदेश अध्यक्ष अमरिंदर सिंह राजा वड़िंग को राज बलविंदर सिंह के खिलाफ पत्र लिखा था जिसके बाद उनको पार्टी से निकाल दिया गया। सूत्रों से यह भी जानकारी मिली है कि राज बलविंदर सिंह फिरोजपुर से आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी जगदीप सिंह काका बराड़ की अंदरखाने सपोर्ट कर रहे थे।

गौरतलब है कि मुक्तसर से कांग्रेस के मौजूदा 10 पार्षद भी बागी चल रहे हैं। इनमें से दो पार्षद पार्टी छोड़ कर भाजपा में चले गए हैं और आठ अभी भी नाराज चल रहे हैं। ये नाराज पार्षद शेर सिंह घुबाया की कैंपेन में शामिल नहीं हुए। प्रदेश अध्यक्ष अमरिंदर सिंह राजा वड़िंग ने बागी चल रहे नेताओं की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए जिलाध्यक्ष शुभदीप सिंह बिट्टू को निर्देश दिए थे। जिसके चलते बिट्टू ने राज बलविंदर सिंह की रिपोर्ट उनको को भेजी जिसके बाद उन्हें पार्टी से बाहर किया गया। अब बाकी बागी नेताओं पर भी कार्रवाई की तलवार लटकी हुई है।

पार्टी से बाहर किए गए राज बलविंदर सिंह मराड़ कांग्रेस के दिग्गज नेता व पूर्व विधायक सुख दर्शन सिंह के बेटे हैं। सुखदर्शन सिंह मराड़ (79) की 2021 में कोरोना से मौत हो गई थी। साल 2002 में उन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव जीता था। इस चुनाव में उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री हरचरण सिंह बराड़ को हराया था। चुनाव जीतने के बाद वह कैप्टन अमरिंदर सिंह की अगुआई में कांग्रेस में शामिल हुए थे। साल 2007 के चुनावों में वो अकाली दल में शामिल हुए और अकाली दल के उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा लेकिन वह पूर्व मुख्यमंत्री हरचरण सिंह बराड़ के पुत्र कंवरजीत सिंह सन्नी बराड़ से चुनाव हार गए।

इसके बाद 2011 में मराड़ शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के चुनावों के दौरान अकाली दल से चुनाव लड़े और मुक्तसर से एसजीपीसी के सदस्य चुने गए। 2012 के विधानसभा चुनाव के दौरान वह चुनाव नहीं लड़े तथा अकाली दल की मदद की। 2017 में उन्होंने फिर से अकाली दल से अलग होकर निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा, जिसमें वह हार गए। 2017 के बाद वह कांग्रेस में शामिल हो गए थे।

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