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पंजाबः इस सीट से 27 साल बाद अकेले चुनाव लड़ेगा अकाली दल 

गुरदासपुरः पंजाब में लोकसभा चुनावों अकाली दल-भाजपा के गठबंधन टूटने के बाद समीकरण काफी बदल गए है। एक ओर जहां भाजपा 13 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने के लिए उम्मीदवारों को तलाशने में जुटी हुई है, वहीं अकाली दल की मुश्किलें भी कम नहीं दिखाई दे रही। यही कारण है कि 27 साल बाद अकाली दल गुरदासपुर सीट से अकेले चुनाव लड़ने जा रही है। वहीं भाजपा भी कांग्रेस और अन्य पार्टियों को झटका देते हुए बाहरी नेताओं को टिकट देकर चुनाव लड़ा रही है। दरअसल, 1997 में अकाली दल व भाजपा के बीच हुए समझौते के बाद ये पहला लोकसभा चुनाव है, जब शिरोमणि अकाली दल (SAD) गुरदासपुर विधानसभा क्षेत्र में उतरने जा रहा है। हिंदू बहुल क्षेत्र होने के बाद भी अकाली दल ने यहां अपने पूर्व कैबिनेट मिनिस्टर व सिख चेहरे डॉ. दलजीत चीमा को उतारा है। इस सीट पर डॉ. चीमा को लोकल होने का फायदा तो मिलेगा, लेकिन जमीन बनाने के लिए कड़ी मेहनत भी करनी होगी।

विवादों से दूर रहे और वाइट कॉलर डॉ. दलजीत चीमा गुरदासपुर के अंतर्गत आते श्री हरगोबिंदपुरा से संबंधित हैं। विनोद खन्ना के देहांत के बाद स्टार हीरो सन्नी देओल से खफा गुरदासपुर वोटरों की मांग लोकल उम्मीदवार को पहल देने की शर्त अकाली दल ने पूरी कर दी है। लेकिन अभी लक्ष्य काफी दूर है। अकाली दल की टिकट के लिए यहां से पहले काहलों परिवार के बेटे माझा युवा विंग के प्रमुख रवि करण काहलों और पूर्व विधायक लखबीर सिंह लोधीनांगल का नाम था। भाजपा द्वारा टिकट ना देने से खफा कविता खन्ना को भी अकाली दल जॉइन कराने की चर्चाएं जोरों पर थी। इसके बावजूद चीमा पर दाव खेला गया है।

वहीं, काहलों परिवार और लखबीर लोधीनंगल की डॉ. चीमा को टिकट देने के बाद अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। गुरदासपुर संसदीय क्षेत्र में 9 विधानसभा सीटें हैं। जिनमें से चार भोआ, पठानकोट, सुजानपुर और दीनानगर को हिंदू बहुल क्षेत्र माना जाता है। 2019 के चुनावों में सनी देओल 82,459 वोटों से जीते थे। जिनमें से तकरीबन 70,000 इन्हीं चार विधानसभा सीटों से आई थी। दलजीत सिंह चीमा पर लोकल टैग तो लग गया, लेकिन इन 4 विधानसभा क्षेत्रों की वोट भाजपा व अकाली दल में बंट जाएगी। जो डॉ. दलजीत चीमा के लिए जीत का लक्ष्य मुश्किल करने वाली है। डॉ. चीमा चाहे गुरदासपुर से हैं, लेकिन उनका राजनीतिक सफर रोपड़ (रूप नगर) का रहा है। रोपड़ से ही वे 2012 से 2017 तक विधायक रहे और मंत्री भी चुने गए।

ऐसे में उनके पास अपनी टीम को तैयार करने के लिए सिर्फ लोकल लीडर्स का सहारा है। अगर काहलों या लखबीर सिंह लोधीनंगल बगावत करते हैं या सपोर्ट देने से मना करते हैं तो डॉ. चीमा की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। इन दोनों नामों को मनाने के अलावा उन्हें गुरदासपुर से पूर्व विधायक गुरबचन सिंह बब्बेहाली को भी साथ लेकर चलना होगा। डॉ. चीमा की बात करें तो 2007 से 2012 तक वे पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के सलाहकार रहे। पूर्व मुख्यमंत्री बादल भी जानते थे कि उनकी सलाह अकाली दल को हमेशा जोड़ने वाली रही है। 2012 में विधायक बने तो 2014 में उन्हें शिक्षा विभाग दे दिया गया। इसके बाद भी डॉ. चीमा ने स्पोक्सपर्सन व सलाहकार के तौर पर अकाली दल को समेटने का काम किया। रूठों को मनाने और पार्टी में वापसी करवाने में भी उनका योगदान अहम बताया जाता है।

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