श्रीमद्भागवत गीता से ही जीव का कल्याण : ज्ञानानंद जी
ऊना/सुशील पंडित : बाबा बाल जी आश्रम में चल रहे धार्मिक वार्षिक महोत्सव में बाबा बाल जी ने आई हुई संगतों में प्रवचन करते हुए कहा कि हर एक व्यक्ति को नहीं मिलता कथा सुनने का मौका। इसलिए भगवान में मन लगाइए भगवान का सुमिरन करिए। इस वार्षिक महोत्सव में विशेष रुप से पधारे महामंडलेश्वर गीता मनीषी स्वामी श्री ज्ञानानंद महाराज ने कहा कि श्रीमद्भागवत गीता से ही जीव का कल्याण है। आज मनुष्य तनाव के वातावरण में फंसा हुआ है। ऐसी स्थिति में श्रीमद्भागवत गीता के उपदेश से ही जीव बाहर निकल सकता है।
स्वामी श्री ज्ञानानंद महाराज बाबा बाल जी आश्रम कोटला कलां में 3 फरवरी तक पधारे हुए हैं उन्होंने भक्तों को श्रीमद्भागवत गीता के साथ जोड़ने का संदेश दिया।श्रीमद्भागवत गीता के साथ जुड़ने से मन मजबूत होता है और कष्टों से लड़ने की हिम्मत मिलती है। युवा पीढ़ी को श्रीमद्भागवत गीता के साथ जोड़ने के लिए उनकी संस्था द्वारा हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि श्रीमद्भगवत गीता योगशास्त्र है। प्राचीन काल से ही योग का अस्तित्व देखा जा सकता है, इसका प्रत्यक्ष प्रमाण श्रीमद्भगवद्गीता है, जो सभी ग्रंथों में सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है। क्योंकि इसमें व्यक्ति के जीवन का सार है और इसमे महाभारत काल से लेकर द्वापर तक श्री कृष्ण की सभी लीलाओं का वर्णन किया गया है। भगवत गीता में पहली बार योग शब्द श्रीकृष्ण (जिनको योगेश्वर श्रीकृष्ण भी कहते हैं) ने अर्जुन को अपने जीवन में असमर्थता पर काबू पाने के लिए प्रदान किया था। गीता में वर्णित 18 अध्याय हमको श्रीकृष्ण द्वारा उल्लेखित योग के बारे में बताते हैं। अठारह अध्यायों में से प्रत्येक को एक अलग नामों में नामित किया गया है क्योंकि प्रत्येक अध्याय, ”शरीर और दिमाग को प्रशिक्षित करता है”
उन्होंने कहा कि गीता के पहले अध्याय में अर्जुन विशाद योग है। चितकों को लगा कि कहीं विशाद भी योग बन सकता है। विशाद को आज की भाषा में डिप्रेशन कहते हैं। उन्होंने कहा कि गीता गोविद की वाणी है। गीता को हमें जीवन में धारण कर उसे व्यवहार में लाना चाहिए। महात्मा गांधी ने कहा कि जब मेरे जीवन में समस्या आई, या मैं कभी निराशा में गिरा, तो गीता की शरण लेता था। धर्म केवल प्रदर्शन की वस्तु नहीं है। हमारे वेदों में कहा गया है कि सत्य बोलो, धर्म को आचरण में लाओ।