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ऊना में प्राकृतिक खेती बनी किसानों की आर्थिक मजबूती का आधार

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हिमाचल सरकार की पहल को मिल रहा ज़मीनी समर्थन, जिले के 16858 किसानों ने अपनाई प्राकृतिक खेती

ऊना/सुशील पंडित: हिमाचल में प्राकृतिक खेती से रसायन मुक्त अन्न उपजाने और बाज़ार तक उसका उचित मूल्य दिलवाने की प्रदेश सरकार की दूरदर्शी नीति जमीनी स्तर पर प्रभावी असर दिखा रही है। ऊना जिले में अब तक 16,858 किसान प्राकृतिक खेती से जुड़ चुके हैं। यह न केवल पर्यावरण के अनुकूल है, बल्कि इससे किसानों की लागत घटने के साथ आय में भी उल्लेखनीय इजाफा हुआ है।

मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंद्र सिंह सुक्खू द्वारा प्राकृतिक खेती को स्वरोजगार का साधन बनाने और न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करने जैसे निर्णयों का सीधा लाभ किसानों को मिला है। सरकार ने प्राकृतिक गेहूं के लिए 60 रुपये प्रति किलो और मक्की के लिए 40 रुपये प्रति किलो एमएसपी निर्धारित किया है। साथ ही 2 रुपये प्रति किलो तक का परिवहन भत्ता भी दिया जा रहा है।

वहीं, सरकार ने ‘हिम भोग’ ब्रांड के तहत प्राकृतिक मक्की का आटा भी बाजार में उतारा है, जो उचित मूल्य की दुकानों के माध्यम से आमजन तक पहुंचाया जा रहा है। यह सभी प्रयास न केवल किसानों को प्राकृतिक खेती के लिए प्रोत्साहित करने में कारगर रहे हैं बल्कि इनसे उपभोक्ताओं को भी स्वास्थ्यवर्धक विकल्प मिले हैं।

प्राकृतिक खेती से सीधे लाभान्वित हो रहे ऊना के किसान, जिला में 39 किसानों ने बेची 41.66 मीट्रिक टन प्राकृतिक गेहूं और 15 किसानों ने 11.15 मीट्रिक टन प्राकृतिक मक्की

ऊना जिले के आतमा परियोजना निदेशक वीरेंद्र बग्गा बताते हैं कि ऊना जिला में बीते सीजन में 39 किसानों से 41.66 मीट्रिक टन प्राकृतिक गेहूं खरीदी गई है। इनमें अंब ब्लॉक से 4.91 मीट्रिक टन, बंगाणा ब्लॉक से 2.35 मीट्रिक टन, गगरेट ब्लॉक से 16 मीट्रिक टन, हरोली ब्लॉक से 11.15 मीट्रिक टन और ऊना ब्लॉक से  7.24 मीट्रिक टन प्राकृतिक गेहूं खरीदी गई है। उन्होंने बताया कि इन किसानों से 60 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से गेहूं खरीद की गई है और 39 किसानों को 25,83,341 रुपये की राशि सीधे उनके बैंक खाते में डाल दी गई है।

इसके अलावा पिछले वर्ष ऊना जिला में 15 किसानों से 11.15 मीट्रिक टन प्राकृतिक मक्की खरीद की गई। इनमें अंब ब्लॉक से 1.29 मीट्रिक टन, गगरेट ब्लॉक से 4.20 मीट्रिक टन, हरोली ब्लॉक से 1.49 मीट्रिक टन और ऊना ब्लॉक से 4.15 मीट्रिक टन प्राकृतिक मक्की की खरीद शामिल है। पुरानी मक्की की खरीद किसानों से 30 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से की गई है और 15 किसानों को 3,34,542 रुपये की राशि किसानों के बैंक खाते में डाली गई है। उन्होंने बताया कि वर्तमान में प्रदेश सरकार ने मक्की के न्यूनतम समर्थन मूल्य को बढ़ाकर 40 रुपये प्रति किलोग्राम कर दिया है।

उन्होंने बताया कि जिला में 2,092 हैक्टेयर भूमि पर किसानों द्वारा प्राकृतिक तकनीकी से खेती की जा रही है। जिला में 48,006 कृषक हैं जिसमें 16,858 किसान   प्रशिक्षण लेकर प्राकृतिक खेती से जुडे हैं और अपनी आजीविका कमा रहे हैं। बग्गा का कहना है कि यह खेती विधि न केवल पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित है, बल्कि इससे मिट्टी की गुणवत्ता भी बनी रहती है। साथ ही इसमें खेती की लागत शून्य होने के चलते किसानों की आय में काफी मुनाफा होता है।

सरकार दे रही सब्सिडी
वीरेंद्र बग्गा ने बताया कि प्राकृतिक खेती से जुड़ने वाले किसानों को साहीवाल, गिर, थारपरकर, सिन्धी व पहाड़न नस्ल की देसी गायें भी उपलब्ध करवाई जाती हैं, जिसमें देसी गाय खरीद पर अधिकतम सबसिडी 25 हज़ार रुपये या 50 प्रतिशत और परिवहन सबसिडी 5000 रुपये तक का प्रावधान है। प्लास्टिक ड्रम के लिए 75 प्रतिशत अनुदान, साइकल हल के लिए 1500 या 50 प्रतिशत और गाय के लिए पक्का फर्श निर्मित करने के लिए 80 प्रतिशत या अधिकतम 8 हज़ार अनुदान का प्रावधान है। उन्होंने बताया कि प्राकृतिक खेती करने के लिए सबसे पहले किसानों को दो दिवसीय प्रशिक्षण दिया जाता है जिसमें किसानों को प्रैक्टिकल करवाकर जरूरी वनस्पतियां के बारे में बताया जाता है। उन्होंने बताया कि देसी गाय तथा अन्य प्रकार की सहायता के लिए किसानों को पहले छः महीने प्राकृतिक खेती से जुड़ना पड़ता है उसके उपरांत ही किसान प्राकृतिक विधि से खेती करने के लिए किसी भी प्रकार की अन्य मदद के लिए योग्य होते हैं।

किसानों का तत्परता से सहयोग
निदेशक ने बताया कि खंड स्तर पर ब्लॉक टैक्निकल मैनेज़र और टैक्निकल मैनेजर व सहायक टैक्निकल मैनेज़र समय-समय पर प्राकृतिक विधि से उगाई गई फसलों का निरीक्षण करते रहते हैं और उन्हें प्राकृतिक खेती से संबंधित जानकारियां मुहैया करवाते रहते हैं ताकि खेती कर रहे किसानों को किसी प्रकार की दिक्कतों का सामना न करना पडे़।

उपायुक्त की किसानों से प्राकृतिक खेती अपनाने की अपील
उपायुक्त ऊना जतिन लाल ने किसानों से प्राकृतिक खेती अपनाने का आह्वान किया है। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू के निर्देशानुसार जिला प्रशासन किसानों को तकनीकी मार्गदर्शन, प्रशिक्षण और वित्तीय सहायता उपलब्ध करवा रहा है, ताकि वे रसायन मुक्त खेती की ओर अग्रसर हो सकें। उनका कहना है कि प्राकृतिक खेती न केवल किसान की ज़मीन को उपजाऊ बनाए रखती है, बल्कि स्वास्थ्य और आमदनी के लिए भी बेहद लाभकारी है।

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