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राजनीतिक षड्यंत्र के तहत हुआ मेरा निलंबन, पंचायत के बिकास कार्यों में कोई धांधली नहीं: राकेश धीमान

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मेरी पंचायत में स्थाई पंचायत सचिव ही नहीं,पंचायत सचिव रखता है बिकास कार्यों का लेखा-जोखा 

पंचायत में चलते विकास कार्य रुकवाए, मैने जांच में किया पूरा सहयोग,दिए माकूल जवाब

ऊना/ सुशील पंडित:  उपमंडल बंगाणा की खरयालता पंचायत के प्रधान राकेश धीमान का निलंबन हाल ही में एक बड़ा विवाद बनकर सामने आया है। राकेश धीमान ने इस निलंबन को पूरी तरह राजनीति से प्रेरित षड्यंत्र बताया है और भ्रष्टाचार के सभी आरोपों को सिरे से नकारा है। उनका कहना है कि पंचायत की विकास योजनाओं की जिम्मेदारी केवल प्रधान की नहीं होती, बल्कि पंचायत सचिव की लिखित जवाबदेही होती हैं। ऐसे में केवल प्रधान पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाना, साफ तौर पर व्यक्तिगत और राजनीतिक द्वेष का परिणाम है। प्रधान राकेश धीमान का आरोप है कि उनके निलंबन के पीछे एक सोची-समझी साजिश है, जिसका मुख्य उद्देश्य खरयालता पंचायत के विकास कार्यों को रोकना है।

उन्होंने कहा कि पिछले आठ महीनों से मनरेगा मजदूरों को उनकी मजदूरी नहीं मिली है और इसका कारण है कि सीमेंट विभाग के पास जमा राशि अटकी हुई है। ऐसे में गरीब मजदूरों को आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ रहा है और इसका दोष भी उन्हें ही दिया जा रहा है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि पंचायत के विकास कार्यों के लिए फंड की भारी कमी है। इन हालातों में भ्रष्टाचार करना तो दूर, बुनियादी कार्यों को संचालित कर पाना भी एक बड़ी चुनौती बन चुका था। राकेश धीमान ने यह भी बताया कि जब उन पर जांच बैठाई गई, तो उन्होंने हर सवाल का सही और संतुलित उत्तर दिया। उनका कहना है कि उन्होंने कभी भी कोई गड़बड़ी नहीं की, इसलिए उन्हें जांच से डरने की कोई जरूरत नहीं।

वह कहते हैं कि जब कुछ गलत किया ही नहीं, तो डर किस बात का?” उनका यह आत्मविश्वास उनके खिलाफ लगाए गए आरोपों की सच्चाई पर सवाल उठाता है। उन्होंने आगे कहा कि वे अब लीगल एडवायजरी से राय लेकर अगला कदम उठाने जा रहे हैं ताकि उन्हें न्याय मिल सके और उनकी छवि को जो नुकसान पहुंचाया गया है, उसकी भरपाई हो सके। उनका दावा है कि उनके पास हर आरोप का दस्तावेजी जवाब है और यदि निष्पक्ष जांच हो, तो सच्चाई सामने आकर रहेगी। राकेश ने कहा कि यह पहला मामला नहीं है जब किसी पंचायत प्रधान को राजनीति का शिकार होना पड़ा हो। स्थानीय स्तर पर अक्सर देखा जाता है कि पंचायत चुनावों में पराजित गुट समय-समय पर सत्तारूढ़ प्रतिनिधियों के खिलाफ षड्यंत्र रचते हैं। राकेश धीमान ने कहा कि यह मेरा निलंबित  मामला भी कुछ ऐसा ही प्रतीत होता है, जिसमें वे राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के निशाने पर हैं। विकास कार्यों को रोकने, मजदूरी भुगतान में देरी, और फंड की अनुपलब्धता जैसे मसलों को आधार बनाकर उनके खिलाफ भ्रष्टाचार का आरोप लगाया गया।

राकेश धीमान ने कहा कि मैने हमेशा अपनी ईमानदारी और जनसेवा को प्राथमिकता दी है। उनके मुताबिक वे किसी भी कानूनी प्रक्रिया से नहीं डरते और उन्हें विश्वास है कि अंततः सच्चाई की जीत होगी। राकेश धीमान ने कहा कि  ग्राम पंचायतों में राजनीतिक हस्तक्षेप इतना बढ़ गया है कि वास्तविक विकास कार्य ही प्रभावित हो जाएं? क्या सच में ग्राम स्तर पर काम कर रहे जनप्रतिनिधियों को बिना सबूत सिर्फ आरोपों के आधार पर निलंबित करना एक सही प्रक्रिया है? इन सवालों के उत्तर आने वाले समय में सामने आएंगे, लेकिन राकेश धीमान का यह साहसिक रुख जरूर कई लोगों के लिए प्रेरणा बन सकता है।

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