जालंधर, ENS: पंजाब में आई बाढ़ से शाहकोट, नकोदर और फिल्लौर इलाके बाढ़ से जूझ रहे हैं। शहर में भी बाढ़ जैसे हालात बने रहे, सैंकड़ों घर क्षतिग्रस्त हो चुके हैं, लोग सरकारी मदद की आस लगाए लगाए बैठे हैं, मगर जालंधर से सासंद बने चरणजीत सिंह चन्नी खुद कहीं और अपनी सक्रियता दिखाते नजर आ रहे हैं। जिसको लेकर लोगों में भी अब रोष पाया जा रहा है। लोगों का कहना है कि चमकौर साहिब और भदौड़ से विधानसभा सीट हारने के बाद जालंधरवासियों ने उन्हें भारी बहुमत देकर सासंद बनाया था। लेकिन अब जालंधर शहर को ही भूल गए हैं और जालंधर में आई बाढ़ से लोगों की मदद करने की बजाये चमकौर साहिब में लोगों की मदद करने में जुट गए।

वहीं अब कांग्रेस प्रदेश कमेटी ने पत्र जारी करके चरणजीत सिंह चन्नी और धर्मवीर गांधी को विशेष तौर पर अपने अपने हलके में सरगरम रहने के आदेश जारी किए है। दरअसल, चन्नी चमकौर साहब के मुद्दों को लेकर या बाढ़ ग्रस्त इलाके को लेकर अक्सर सोशल मीडिया पर पोस्ट डाल रहे हैं। जबकि वह भूल गए हैं कि अगर आज वह सांसद बने हैं तो वह जालंधर जिले से बने हैं। लेकिन जालंधर के 9 हलकों के कामों ओर मुद्दों को छोड़ अब वह अपने पुराने हल्के चमकौर को साहब के मुद्दों को लेकर अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर लाइव हो वीडियो बनाकर सहानुभूति ले रहे है।
पंजाब भर में जहां बाढ़ ने अपना प्रकोप मचाया हुआ था वहीं लोगों को उम्मीद थी कि चरणजीत चन्नी उनकी सार जानने जालंधर आएंगे। लेकिन लोगों के अरमानों पर पानी फिरता उस समय नज़र आया जब चन्नी चमकौर साहिब में बाढ़ प्रभावित इलाको में कस्सी से मिट्टी बोरियों में भरते नज़र आए ओर लोगों की सेवा करते दिखे ऐसे में जालंधर वासियों को लावारिस छोड़ा गया, चरणजीत चन्नी जालंधर के लोगों से वोट लेकर जीते पर मुसीबत में किसी के काम नहीं आए। बताया जा रहा हैकि सासंद चन्नी 2027 में मुख्यमंत्री के ख्वाब देख रहे है। लेकिन जैसे वह जालंधर के लोगों के साथ कर रहे है तो ऐसे में अगली बार लोग वोट देने से कई बार सोचेंगे।
जालंधर में हाल ही में बाढ़ के हालातों ने जनजीवन अस्त-व्यस्त कर दिया। कई इलाकों में घर गिर गए, लोग बेघर हुए और रोजमर्रा का जीवन बुरी तरह प्रभावित हुआ। ऐसी स्थिति में सांसद का फर्ज था कि वे राहत और पुनर्वास कार्यों में सक्रिय भूमिका निभाते। मगर चन्नी की चुप्पी और गैरमौजूदगी ने लोगों को गहरी निराशा में डाल दिया है। जालंधर के कई ग्रामीणों के अलावा शहरी लोगों का कहना है कि यदि उनके सांसद खुद प्रभावित गांवों व शहर के क्षेत्रों में जाकर हालात देखते तो प्रशासन पर भी काम करने का दबाव बढ़ता।