नई दिल्लीः कैसा हो अगर भारत के लोगों को सस्ती दवाएं मिलें और उसी काम से हजारों लोगों को रोजगार भी मिल जाए। इस बारे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को हिमाचल के ऊना में मास्टर प्लान शेयर किया। उन्होंने आज हरोली में बल्क ड्रग पार्क की आधारशिला रखते हुए सरकार का प्लान बताया। यह पार्क लगभग 3 साल में बनकर तैयार होगा। बल्क ड्रग पार्क में दवाएं बनाने के लिए इस्तेमाल होने वाले कच्चे माल, जिसे कि API कहा जाता है, को तैयार किया जाएगा।
अभी दवाओं की आपूर्ति हेतु कच्चे माल की जरूरतों के लिए विदेशों पर निर्भर भारत
चूंकि, अभी भारत दवाओं की आपूर्ति हेतु कच्चे माल की जरूरतों के लिए विदेशों पर निर्भर है, तो दवाएं महंगी होती हैं। यदि भारत अपनी जरूरत के लिए विदेशी कच्चे से माल से निर्भरता कम कर लेगा तो लागत में कमी आएगी। इसने बड़े स्तर पर कच्चा माल और दवाओं के निर्माण करने के लिए मैनपावर की जरूरत भी होगी। ये जरूरत इस पार्क के आसपास के लोगों के लिए रोजगार के अवसर पैदा करेगी। सरकार का अनुमान है कि 1405 एकड़ में बनने वाले इस पार्क पर लगभग 1900 करोड़ रुपये की लागत आएगी। 3 साल का समय लग सकता है। यहां पर 10,000 करोड़ रुपये से अधिक का निवेश आ सकता है। एक बार काम शुरू होने के बाद लगभग 23,000 लोगों को रोजगार मिलेगा।
कैसे मिलेंगी सस्ती दवाएं?
प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो (PIB) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, वित्त वर्ष 2021-22 में भारत में दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी फार्मा इंडस्ट्री है। भारत में एक्विट फार्मा इन्ग्रेडिएंट्स (API) अथवा बल्क ड्रग्स का उत्पादन भी होता है, मगर ये उत्पादन भारत और निर्यात की जरूरतों को पूरा करने के लिए काफी नहीं है। इसलिए भारत ने वित्त वर्ष 2021-22 में 35,249 करोड़ रुपये के कच्चे माल का निर्यात किया था। यह निर्यात विभिन्न देशों से होता है।
भारत सरकार ने विदेशों पर इस निर्भरता को कम करने के उद्देश्य से PLI जैसी महत्वपूर्ण स्कीम भी चलाई है। स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया के मुताबिक, सरकार का 2024 तक विदेशों पर से 25 फीसदी तक निर्भरता कम करने का प्लान है। देखा गया है कि दवा निर्माण के लिए भारत चीन से लगभग 53 तरह के API का आयात करता है और जाहिर है, चीन अपनी शर्तों और कीमत पर भारत को कच्चा माल मुहैया कराता है। चीन से आयातित कच्चे माल से टीबी, कैंसर, स्टेरॉयड और विटामिन की दवाओं का भी निर्माण होता है।
चीन से होता है बड़ा निर्यात
CNBC की एक रिपोर्ट के अनुसार सरकारी रिपोर्ट के हवाले से कहा गया है कि भारत चीन से अपनी जरूरत की 68 प्रतिशत API चीन से आयात करता है। माना जाता है कि भारत में इसे बनाना, आयात करने के मुकाबले महंगा पड़ता है। सरकार द्वारा समर्थित ऑर्गेनाइजेशन ट्रेड प्रमोशन काउंसिल का अनुमान है कि भारत चीन से लगभग 85 फीसदी तक API मंगाता है। दवा बनाने वाले बड़े देशों की सूची में अमेरिका का नाम भी शुमार है। अमेरिका चीन से लगभग 24 फीसदी कच्चा माल इम्पोर्ट करता है, और भारत से 19 फीसदी API मंगवाता है। यदि भारत में API बनाने का काम आगे बढ़ता है तो भारत अपनी जरूरतों को पूरा करने के साथ-साथ निर्यात में भी अग्रणी बन सकता है।
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