जालंधर, ENS: शहर में भादों के महीने में शुक्ल पक्ष के 14वें दिन हर साल बाबा सिद्ध सोढल मेला आयोजित किया जाता है। इस बार सिद्ध सोढल मेला 6 सितंबर को शुरू हो रहा है। जिसको लेकर आज ही मंदिर में भारी संख्या में श्रद्धालु आने शुरू हो गए है। हर साल देशभर से लाखों श्रद्धालु इस मेले में सोढल बाबा के दर्शन करने आते हैं। पंजाब के मेलों की सूची में इनका प्रमुख स्थान है। मेला बाबा सोढल की महान आत्मा को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए आयोजित किया जाता है। सोढल मंदिर में प्रसिद्ध ऐतिहासिक सोढल सरोवर है जहां सोढल बाबा की विशाल प्रतिमा स्थापित की गई है। श्रद्धालु इस पवित्र सरोवर के जल से अपने ऊपर छिड़काव करते हैं और चरणामृत की तरह पीते हैं। इस दिन देश-विदेश से लाखों की संख्या में श्रद्धालु बाबा सोढल के दर्शन करने आते हैं। देश-विदेश से आने वाले श्रद्धालुओं के चलते एक दिन पहले ही हवन से इसकी शुरुआत हो जाती है।
आनंद-चड्ढा परिवारों की ओर से बरसों पहले शुरू की गई मेले की रीत अब सभी कौम की आस्था में बदल गया है। एक परिवार का न रहकर सभी का बन गया है। 1960 के आसपास चंद घंटों तक चलने वाला मेला अब 3 से 4 चार दिन तक दिन-रात चलता है। मान्यता के अनुसार, चड्ढा और आनंद परिवार के सदस्य एक दिन पहले ही इकट्ठे हो जाते हैं। मान्यता है कि इस तपोभूमि पर आदर्श मुनि तपस्या करते थे। बाबा सोढल की माता जी उनकी सेवा करती थीं। मुनि जी ने कहा- बेटी तुमने कभी मुझसे कुछ मांगा नहीं। इस पर माता जी ने उनसे पुत्र रत्न का वरदान मांगा। मुनि जी ने ध्यान लगाया और कहा- तुम्हारे भाग्य में औलाद सुख नहीं है। मुनि जी ने भगवान विष्णु की अराधना कर पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया। उन्होंने संतान पर कभी गुस्सा न करने की हिदायत भी दी। एक दिन बाबा जी की मां तालाब पर कपड़े धो रही थीं, तब बाबा सोढल 5 साल के थे। मां ने उन पर गुस्सा किया तो वे तालाब में गायब हो गए। मां को बिलखते देख बाबा सोढल ने नाग के रूप में दर्शन दिए और कहा- मैं सदा यहीं आपके बीच रहूंगा।
इस स्थान पर नतमस्तक होने वाले नि:संतान भक्तों को भी औलाद सुख मिलेगा। उन्होंने चड्ढा और आनंद बिरादरी के परिवारों को उनके पुनर्जन्म को स्वीकार करते हुए मट्ठी जिसे टोपा कहा जाता है चढ़ाने का निर्देश दिया। इस टोपे का सेवन केवल चड्ढा और आनंद परिवार के सदस्य ही कर सकते हैं। इस प्रसाद का सेवन परिवार में जन्मी बेटी तो कर सकती है मगर दामाद व उसके बच्चों के लिए यह वर्जित है। सोढल मेले वाले दिन श्रद्धालु पवित्र तालाब से अपने प्रत्येक पुत्र के नाम की मिट्टी 14 बार निकालते हैं। श्रद्धालु अपने-अपने घरों में पवित्र खेत्री बीजते हैं, जो हर परिवार की खुशहाली और समृद्धि का प्रतीक मानी जाती है। मेले वाले दिन इसे बाबा जी के श्रीचरणों में अर्पित करके माथा टेकते हैं। करीब 165 साल पहले शुरू हुई बाबा सोढल की मान्यता आज लाखों भक्तों की मन्नतों में बदल चुकी है। भक्त अपनी मुरादें पूरी होने पर बच्चों को और अपने सगे-संबंधियों के साथ लेकर ढोल-बाजों के साथ नाचते-गाते आते हैं।
मंदिर के चारों तरफ कई किलोमीटर में आने-जाने वाले भक्तों के लिए दिन-रात लंगर चलता है। बाबा सिद्ध सोढल के मेले को लेकर मंदिर प्रबंधक कमेटी की तैयारियां पूर्ण रूप से कर ली है। मंदिर के अंदर और बाहर पुलिस की तैनाती कर दी है। मेले में आने वाले श्रद्धालुओं को किसी भी तरह से कोई दिक्कत या परेशानी न आए उसे लेकर पुख्ता प्रबंध भी किए गए है। जानकारी देते हुए पुलिस अधिकारी ने बताया कि मेले में पुलिस के 1100 जवान तैनात किए गए है। साथ ही मंदिर परिसर के अंदर 30 और बाहर 30 कुल 60 सीसीटीवी कैमरे लगाए गए है। जिसका कंट्रोल रूम मंदिर परिसर के बाहर बनाया गया है। जहां से पुलिस शरारती तत्व और जेबकतों पर खास तौर पर ध्यान रखेगी।