जालंधरः कनाडा के एक गुरुद्वारा से पाठी सिंह की भावुक वीडियो सामने आई है। इसमें पाठी सिंह ने कनाडा में उनके साथ भेदभाव और टोटाटाकी के आरोप लगाए हैं। वीडियो मुताबिक, कीर्तन करते हुए रागी जत्थे में एक सिंह साहिब इमोशनल होकर कहते हैं कि वह अब टोकाटाकी के इस कल्चर में ज्यादा दिन नहीं रह पाउंगा। यहां तो बोलने की आजादी भी छीन ली गई है। हमें क्या बोलना है, किसके लिए अरदास करनी है किसके लिए नहीं, किससे सिरोपा लेना है किसको सिरोपा देना है जैसी बातों पर कंट्रोल किया जाता है।
भावुक होकर कीर्तन करते हुए सिंह ने गुरुद्वारों की सैलरी पर भी सवाल उठाया। उसने कहा कि यहां महीने के 800 डालर दिए जा रहे हैं। इतने पैसों में ही हमें गुजारा करना है। अगर हमें संगत में से कोई पैसे दे जाता है तो ये ताने सुनने को मिलते हैं कि बहुत कमाई कर रहे हो। आपको तो बिना मेहनत के ही पैसे मिल रहे हैं। हम अपने बच्चों और अपनी धरती से दूर यहां रहकर ताने सुन रहे हैं जो अब बर्दाश्त से बाहर है। इस दौरान पाठी का दुखा साफ झलक रहा था।
गुरद्वारे में कीर्तन दौरान पाठी ने पहले कहा, संगत के चरणों में विनती है कि मुझे यहां ड्यूटी करते हुए ढाई साल हो गए हैं और अब मैं यहां से पक्की छुट्टी लेना चाहता हूं। क्योंकि हर बात पर हमें टोका जाता है, हर बात पर हमें मजबूर किया जाता है। ऐसी छोटी-छोटी बातों पर हमें घेरा जाता है जिन पर बच्चे भी नहीं लड़ते। पता नहीं आज ये कैसे गुरु-घर बन गए हैं कि हम छोटी-छोटी बात पर सेवादारों को दोषी ठहराते हैं। सिरोपा उसने क्यों नहीं लिया, वह चवर सेवा नहीं करेगा, उसने जयकारा क्यों लगाया जैसी बातों पर टोकाटोकी होती है। हमारी गलतियां क्या हैं? क्या हम यहां अपनी बेइज्जती कराने के लिए आए हैं।
अरदास के समय भी हमें टोका जाता है कि आप यह नहीं बोलेंगे। ये नहीं बोलेंगे या वो नहीं बोलेंगे। क्या ये लोग हमें बताएंगे कि हमें अपना काम कैसे करना है। मैं किसी को बुरा नहीं बोलना चाहता, लेकिन इस हफ्ते के बाद दास यहां से छुट्टी ले लेगा और मैं वापस अपने घर और अपने बच्चों के पास चला जाऊंगा।
हम घरों में अपने बच्चों को एक शब्द नहीं बोल पाते कि यह क्यों किया, लेकिन यहां सेवादारों के ऊपर हजारों नियम हैं। अगर कोई हमें पैसे दे जाए, तो ताना मारा जाता है कि तुम्हारी तो बड़ी कमाई है, तुम्हें तो पैसे मिल गए, तुम्हें तो सोए-सोए पैसे मिल रहे हैं। 800 डालर महीना की सैलरी में हम गुजारा करते हैं। अगर कोई हमें कुछ दे जाए, तो उसमें भी कहा जाता है कि तुम्हें सोए-सोए पैसे मिल रहे हैं।
मैं ज्यादा कुछ नहीं कहता, बस इतना ही कि गुरु-घर आजकल सिर्फ दिखावे का अड्डा बनकर रह गए हैं। बस चौधर चाहिए और कुछ नहीं बचा। न सिखी से प्यार है, न गुरु-घर से प्यार। बस खाने-पीने और चौधर के लिए रह गए हैं। हमारे लिए बस यही गुरु-घर रह गया है और यही हमारी सिखी रह गई है। इसलिए मैं क्षमा का याचक हूं। हम परिवार से भी दूर हैं, बच्चों की बातें भी सुनते हैं। यहां बेगानों की बातें भी सुननी पड़ रही हैं।
बता दें, यह यहां की ही बात नहीं है, भारत के भी कई गुरुद्वारों में ये हाल हो चुका है। गुरुघर भेदभाव मिटाने के लिए बनाए गए थे न कि भेदभाव को बढ़ाने के लिए। शुक्रवार को भी श्री फ्तेहगढ़ साहिब में हुई शहीदी सभा में ये मुद्दा निहंग सिंह भी उठा चुके हैं। उन्होंने कहा था कि 2-2 बाटों से गुरुद्वारों में अमृत छकाया जा रहा है। एक बाटा किसी जात का तो दूसरा किसी जात है। जात-पात खत्म नहीं हो पाई है।