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लोककथाओं में गुग्गा राणा- गुगा जाहर वीर

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ऊना/ सुशील पंडित:हिंदू परंपराओं में, गोगाजी, जिन्हें ‘गुग्गा जाहर वीर’ भी कहा जाता है, एक लोकप्रिय लोक देवता हैं जिनकी भारत के उत्तरी राज्यों, विशेष रूप से उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हिमाचल और पंजाब में पूरी श्रद्धा के साथ पूजा की जाती है।

इसी कड़ी में रक्षाबंधन पर्व से छत्र लेकर निकली गांव बदोली की डमरु मंडली क्षेत्र में गुग्गा गाथा सुना रही है इस मंडली में नाग देवता मंदिर के प्रबंधक राज कुमार शर्मा,व पवन शर्मा, अनमोल शर्मा, प्रवेश शर्मा व राकेश कुमार डमरू मंडली के साथ रहे।

एक व्यापक मान्यता है कि वे भाद्रपद कृष्ण पक्ष की नवमी को प्रकट हुए थे और इसलिए हिंदू भक्त उन्हें यह दिन समर्पित करते हैं। गुग्गा नवमीं भारत के उत्तरी क्षेत्रों में, विशेष रूप से हिमाचल प्रदेश, हरियाणा और पंजाब में बहुत धूमधाम और उत्साह के साथ मनाई जाती है।

गुग्गा नवमी गोगाजी के सम्मान में मनाए जाने वाले महत्वपूर्ण हिंदू त्योहारों में से एक है। किंवदंतियों के अनुसार, गुग्गा को शक्तिशाली राजपूत राजकुमार के रूप में जाना जाता है, जिनके पास विषैले सांपों को नियंत्रित करने की अलौकिक शक्तियां थीं। इन दिनों अनुष्ठानों के एक भाग के रूप में उनकी कहानियों के विभिन्न संस्करण सुनाए जाते हैं। कुछ कहानियों में उनके दिव्य जन्म, उनके विवाह, पारिवारिक जीवन, युद्ध, साँप के काटने पर उपचार करने की उनकी अविश्वसनीय कला और पृथ्वी से उनके गायब होने का वर्णन है। हिंदुओं का मानना ​​है कि इस दिन उनकी पूजा करने से वे साँपों और अन्य बुराइयों से सुरक्षित रहते हैं। इसके अलावा एक लोकप्रिय मान्यता यह भी है कि भगवान गुग्गा बच्चों को सभी नुकसानों से बचाते हैं। कुछ निःसंतान विवाहित महिलाएँ भी इस दिन संतान प्राप्ति के लिए प्रार्थना करती हैं।

गुग्गा नवमी के दिन भक्त ‘गुग्गा जी’ की मूर्ति की पूजा करते हैं। वे नीले रंग के घोड़े पर सवार दिखाई देते हैं। कुछ क्षेत्रों में गुग्गा की पूजा का अनुष्ठान ‘श्रावण पूर्णिमा’ (रक्षा बंधन का दिन) से शुरू होता है और नवमी तक नौ दिनों तक चलता है। इसी कारण इसे गुग्गा नवमीं के नाम से भी जाना जाता है। भक्त गुग्गा जी का छत्र चढ़ा कर उन की कथाओं का गुणगान पूरे क्षेत्र में करते हैं

हिमाचल में लोग उन्हें गुग्गा ,जाहिर वीर व जाहर पीर के नाम जानते हैं। यह गोरखनाथ के प्रमुख शिष्यों में से एक थे। राजस्थान के छह सिद्धों में गुग्गा जी का प्रमुख स्थान है। इनका जन्म( विक्रम संवत 1003 के आस पास) राजस्थान के चुरू जिले के ददरेवा गाँव में चौहान वंश के शासक जेबर (जेवर सिंह) की पत्नी बाशल के गर्भ से भादो सुदी नवमी को हुआ था ।

लोकमान्यता व लोककथाओं के अनुसार

गुग्गा देवता की पूजा रक्षाबंधन से शुरू होकर गुग्गा नवमीं तक चलती है। इस दौरान गुग्गा मंडली के रूप में गायकों का एक समूह घर घर जाकर गुग्गा राणा की कथा लोकभाषा और वाद्ययंत्रों के साथ सुनाते हैं।

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