नई दिल्लीः बांग्लादेश की अदालत ने पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को निहत्थे नागरिकों पर गोली चलाने और मानवता के खिलाफ अपराध के मामले में इंटरनेशनल क्राइम्स ट्रिब्यूनल (आईसीटी) ने पूर्व पीएम शेख हसीना, पूर्व गृहमंत्री गृह मंत्री असदुज्जमां खान और पूर्व आईजीपी अब्दुल्ला अल-ममून को दोषी ठहराया है। कोर्ट ने तीनों को फांसी की सजा सुनाई है। अदालत ने पाया कि शेख हसीना ने प्रदर्शनकारियों को दबाने और मारने के लिए घातक हथियारों और ड्रोन का इस्तेमाल करने के आदेश दिए थे। इस गंभीर अपराध के चलते उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई है।
अदालत ने अपने फैसले में यह भी कहा कि शेख हसीना और उनके सहयोगियों के आदेशों पर ही मानवता के खिलाफ अपराध अंजाम दिए गए। ऐसे में ट्रिब्यूनल ने उन्हें 2024 के छात्र आंदोलन के दौरान हुई हत्याओं का मास्टरमाइंड कहा है। दरअसल, ट्रिब्यूनल ने हसीना को हत्या के लिए उकसाने और हत्या का आदेश देने में दोषी माना गया है। कोर्ट ने दूसरे आरोपी पूर्व गृह मंत्री असदुज्जमां खान को भी 12 लोगों की हत्या का दोषी माना और फांसी की सजा सुनाई। वहीं, तीसरे आरोपी पूर्व IGP अब्दुल्ला अल-ममून को 5 साल के जेल की सजा सुनाई।
ममून सरकारी गवाह बन चुके हैं। सजा का ऐलान होते ही कोर्ट रूम में मौजूद लोगों ने ताली बजाकर फैसले का स्वागत किया। कोर्ट ने हसीना और असदुज्जमां कमाल की प्रॉपर्टी जब्त करने का आदेश दिया है। फिलहाल दोनों नेता बांग्लादेश से फरार हैं और पिछले 15 महीने से भारत में रह रहे हैं। फैसले के बाद अटॉर्नी जनरल मोहम्मद असदुज्जमां ने ट्रिब्यूनल के फैसले पर खुशी जताई। उन्होंने कहा कि जुलाई क्रांति में मारे गए लोगों और देश दोनों को ही अब न्याय मिल गया है।
कोर्ट ने कुल 54 गवाहों के बयान सुने और कहा कि यह संख्या पर्याप्त है। देशभर से प्राप्त सबूतों और विभिन्न स्रोतों से मिले अतिरिक्त सबूतों की भी जांच की गई। साथ ही, यूनाइटेड नेशंस की एजेंसी की रिपोर्ट का अध्ययन किया गया और निष्कर्ष निकाला गया कि शेख हसीना और गृहमंत्री के आदेशों पर ही मानवता के खिलाफ अपराध किए गए।
ICT के मुख्य न्यायाधीश ने सुनवाई के दौरान कहा कि शेख हसीना ने विरोध कर रहे छात्रों और अन्य नागरिकों को मारने के आदेश दिए थे। अदालत ने बताया कि ढाका विश्वविद्यालय के कुलपति के साथ हुई फोन बातचीत में हसीना ने हिंसक कार्रवाई के निर्देश दिए और छात्रों को अपमानित किया, जिससे विरोध प्रदर्शन और भड़क गए। न्यायाधिकरण ने स्पष्ट किया कि हसीना के बयान अपमानजनक थे और हिंसा को भड़काने वाले थे। उन्होंने जानबूझकर अपने आदेशों के माध्यम से लोगों की जान लेने की योजना बनाई। कोर्ट के पास हसीना और विश्वविद्यालय के कुलपति के बीच हुई बातचीत के रिकॉर्ड भी मौजूद हैं, जो उनके आदेशों की पुष्टि करते हैं।